सितंबर से लेकर मार्च तक यह किसान मशरूम से कमाता है तीन लाख रूपए, देखें वीडियो
Diti Bajpai | Feb 02, 2019, 13:37 IST
आज़मगढ़। विपिन बिहारी(35 वर्ष) ने सितंबर के महीने में बटन मशरूम की खेती करना शुरू किया था और उनको पता है कि आने वाले मार्च तक वह इस मशरूम से अच्छा कमाई कर लेंगे।
"शुरू में 50-60 रूपए लगाकर मशरूम की खेती शुरू की थी। धीरे-धीरे खेती में लाभ अब डेढ़ लाख की लगाकर तीन से चार महीने में तीन लाख से ज्यादा रूपए की कमाई हो जाती है।'' विपिन बिहारी ने गाँव कनेक्शन को बताया।
आज़मगढ़ जिले से 40 कि.मी दूर ठेकमा ब्लॉक के झिरूआ कमालपुर गाँव में विपिन अपने परिवार के साथ रहते है। पुआल और बांस के बने ढ़ाचे को दिखाते हुए विपिन बताते हैं, "मशरूम को उगाने के लिए अलग से ढ़ाचा बनाने की जरूरत नहीं होती है। गाँव में ही भूसा और धान, गेहूं के पुआल मिल जाता है। साथ ही गाय-भैंस का गोबर की खाद तैयार हो जाती है।''
पिछले कुछ वर्षों में भारतीय बाजार में मशरूम की मांग जिस तरह तेजी से बढ़ी है। वैसे ही इस व्यवसाय में किसानों ने भी रूचि ली है। बाज़ार में जिस हिसाब से मशरूम की मांग है, उस हिसाब से अभी इसका उत्पादन नहीं हो रहा है, ऐसे में किसान मशरूम की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
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मशरूम को तैयार करने के बारे में विपिन बताते हैं, ''दो बीघा से लेकर चार बीघा की जमीन में मशरूम को लगाया जा सकता है। मशरूम ठंड के महीने में निकलता है। इसलिए सिंतबर से बांस को लगाने का काम शुरू कर देते हैं। सिंतबर के आखिरी महीने में कम्पोस्ट बनाने की तैयारी करते हैं। तैयार करने के बाद एक महीने बाद बीज मगाकर बिजाई करते है। बिजाई के एक महीने के बाद अक्टूबर और नवंबर के पहले सप्ताह में मशरूम निकलना चालू हो जाता है और मार्च तक मशरूम निकलता रहता है।"
अपनी बात को जारी रखते हुए विपिन बताते हैं, ''इसमें पानी की खपत ज्यादा होती है। मशरूम को जब तोड़ना शुरू करते है तो वहां पर गड्ढा हो जाता है उस गड्ढे मे से दो- तीन दिन में फिर से मशरूम निकल आता है। ऐसे मार्च तक चलता रहता है।''
कम लागत और कम जगह में तैयार मशरूम को विपिन बाज़ार में 100 से 150 रूपए किलो में बेच रहे हैं। विपिन बताते हैं, ''मशरूम की इतनी मांग हैं कि बाजार के लिए भटकना नहीं पड़ता है और नकद रूपए भी मिल जाते है।''
''हमारे गाँव में ज्यादातर लोग मजदूरी करने के लिए शहर चले जाते थे। हमने भी वहीं काम किया लेकिन कृषि विज्ञान केंद्र ने मशरूम करने की सलाह दी। तब इस व्यवसाय को शुरू किया। आज मेरे अलावा गाँव के कई लोग इस व्यवसाय से कमा रहे है।'' विपिन ने गाँव कनेक्शन को बताया। इस व्यवसाय से विपिन आज बच्चों को अच्छी शिक्षा भी दिला पा रहे हैं।
तेजी से बढ़ रही बटन मशरूम की मांग के बारे में आज़मगढ़ जिले के कोटवा में स्थिम कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ आर.पी. सिंह बताते हैं, ''दूध में मिलावट की वजह से पनीर और खोया की अच्छी गुणवत्ता नहीं मिलती है इसलिए लोग बटन मशरूम की तरफ आर्कषित हो रहे हैं। अभी शादी, बड़े-बड़े होटलों में पनीर की बजाय मशरूम की मांग बढ़ी है।''
डॉ. सिंह आगे बताते हैं,"आज़मगढ़ के कई किसानों ने प्रशिक्षण लेकर इस व्यवसाय को शुरू किया है। जिनके पास थोड़ी सी भी ज़मीन है या फिर जिनके पास ज़मीन ही नहीं है वो भी इस व्यवसाय को शुरू कर सकते है। इसमें लागत कम लेकिन श्रम ज्यादा है और अच्छी कमाई है।''
दस किलो भूसे को 100 लीटर पानी में भिगोया जाता है, इसके लिए 150 मिली. फार्मलिन, सात ग्राम कॉर्बेंडाजिन को पानी में घोलकर इसमें दस किलो भूसा डुबोकर उसका शोधन किया जाता है। भूसा भिगोने के बाद लगभग बारह घंटे यानि अगर सुबह फैलाते हैं तो शाम को और शाम को फैलाते हैं तो सुबह निकाल लें, इसके बाद भूसे को किसी जालीदार बैग में भरकर या फिर चारपाई पर फैला देते हैं, जिससे अतिरिक्त पानी निकल जाता है। इसके बाद एक किलो सूखे भूसे को एक बैग में भरा जाता है, एक बैग में तीन लेयर लगानी होती है, एक लेयर लगाने के बाद उसमें स्पॉन की किनारे-किनारे रखकर उसपर फिर भूसा रखा जाता है, इस तरह से एक बैग में तीन लेयर लगानी होती है।
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मशरूम के बीज को स्पान कहतें हैं। बीज की गुणवत्ता का उत्पादन पर बहुत असर होता है, इसलिए खुम्बी का बीज या स्पान अच्छी भरोसेमंद दुकान से ही लेना चाहिए। बीज एक माह से अधिक पुराना भी नही होना चाहिए।
बीज की मात्रा कम्पोस्ट खाद के वजन के 2-2.5 प्रतिशत के बराबर लें। बीज को पेटी में भरी कम्पोस्ट पर बिखेर दें तथा उस पर 2 से तीन सेमी मोटी कम्पोस्ट की एक परत और चढ़ा दें। अथवा पहले पेटी में कम्पोस्ट की तीन इंच मोटी परत लगाऐं और उसपर बीज की आधी मात्रा बिखेर दे। उस पर फिर से तीन इंच मोटी कम्पोस्ट की परत बिछा दें और बाकी बचे बीज उस पर बिखेर दें। इस पर कम्पोस्ट की एक पतली परत और बिछा दें
बुवाई के बाद पेटी या थैलियों को वहां रख दें, हां पर उत्पादन करना हो। इन पर पुराने अखबार बिछाकर पानी से भिगो दें। कमरे में पर्याप्त नमी बनाने के लिए कमरे के फर्श व दीवारों पर भी पानी छिड़कते रहें। इस समय कमरे का तापमान 22 से 26 डिग्री सेंन्टीग्रेड और नमी 80 से 85 प्रतिशत के बीच होनी चाहिए। अगले 15 से 20 दिनों में खुम्बी का कवक जाल पूरी तरह से कम्पोस्ट में फैल जाएगा। इन दिनों खुम्बी को ताजा हवा नही चाहिए इसलिए कमरे को बंद ही रखें।
खुम्बी की बीजाई के 35-40 दिन बाद या मिट्टी चढ़ाने के 15-20 दिन बाद कम्पोस्ट के ऊपर मशरूम के सफेद घुंडिया देने लगती हैं, जो अगले चार-पांच दिनों में बढ़ने लगती हैं, इसको घूमाकर धीरे से तोड़ना चाहिए, इसे चाकू से भी काट सकते हैं।
"शुरू में 50-60 रूपए लगाकर मशरूम की खेती शुरू की थी। धीरे-धीरे खेती में लाभ अब डेढ़ लाख की लगाकर तीन से चार महीने में तीन लाख से ज्यादा रूपए की कमाई हो जाती है।'' विपिन बिहारी ने गाँव कनेक्शन को बताया।
आज़मगढ़ जिले से 40 कि.मी दूर ठेकमा ब्लॉक के झिरूआ कमालपुर गाँव में विपिन अपने परिवार के साथ रहते है। पुआल और बांस के बने ढ़ाचे को दिखाते हुए विपिन बताते हैं, "मशरूम को उगाने के लिए अलग से ढ़ाचा बनाने की जरूरत नहीं होती है। गाँव में ही भूसा और धान, गेहूं के पुआल मिल जाता है। साथ ही गाय-भैंस का गोबर की खाद तैयार हो जाती है।''
पिछले कुछ वर्षों में भारतीय बाजार में मशरूम की मांग जिस तरह तेजी से बढ़ी है। वैसे ही इस व्यवसाय में किसानों ने भी रूचि ली है। बाज़ार में जिस हिसाब से मशरूम की मांग है, उस हिसाब से अभी इसका उत्पादन नहीं हो रहा है, ऐसे में किसान मशरूम की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
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मशरूम को तैयार करने के बारे में विपिन बताते हैं, ''दो बीघा से लेकर चार बीघा की जमीन में मशरूम को लगाया जा सकता है। मशरूम ठंड के महीने में निकलता है। इसलिए सिंतबर से बांस को लगाने का काम शुरू कर देते हैं। सिंतबर के आखिरी महीने में कम्पोस्ट बनाने की तैयारी करते हैं। तैयार करने के बाद एक महीने बाद बीज मगाकर बिजाई करते है। बिजाई के एक महीने के बाद अक्टूबर और नवंबर के पहले सप्ताह में मशरूम निकलना चालू हो जाता है और मार्च तक मशरूम निकलता रहता है।"
अपनी बात को जारी रखते हुए विपिन बताते हैं, ''इसमें पानी की खपत ज्यादा होती है। मशरूम को जब तोड़ना शुरू करते है तो वहां पर गड्ढा हो जाता है उस गड्ढे मे से दो- तीन दिन में फिर से मशरूम निकल आता है। ऐसे मार्च तक चलता रहता है।''
कम लागत और कम जगह में तैयार मशरूम को विपिन बाज़ार में 100 से 150 रूपए किलो में बेच रहे हैं। विपिन बताते हैं, ''मशरूम की इतनी मांग हैं कि बाजार के लिए भटकना नहीं पड़ता है और नकद रूपए भी मिल जाते है।''
गाँवों के और लोगों ने भी शुरू की मशरूम की खेती
तेजी से बढ़ रही बटन मशरूम की मांग
डॉ. सिंह आगे बताते हैं,"आज़मगढ़ के कई किसानों ने प्रशिक्षण लेकर इस व्यवसाय को शुरू किया है। जिनके पास थोड़ी सी भी ज़मीन है या फिर जिनके पास ज़मीन ही नहीं है वो भी इस व्यवसाय को शुरू कर सकते है। इसमें लागत कम लेकिन श्रम ज्यादा है और अच्छी कमाई है।''
ऐसे करें शुरूआत
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बटन मशरूम की बीजाई या स्पानिंग बटन मशरूम
बीज की मात्रा कम्पोस्ट खाद के वजन के 2-2.5 प्रतिशत के बराबर लें। बीज को पेटी में भरी कम्पोस्ट पर बिखेर दें तथा उस पर 2 से तीन सेमी मोटी कम्पोस्ट की एक परत और चढ़ा दें। अथवा पहले पेटी में कम्पोस्ट की तीन इंच मोटी परत लगाऐं और उसपर बीज की आधी मात्रा बिखेर दे। उस पर फिर से तीन इंच मोटी कम्पोस्ट की परत बिछा दें और बाकी बचे बीज उस पर बिखेर दें। इस पर कम्पोस्ट की एक पतली परत और बिछा दें
बुवाई के बाद पेटी या थैलियों को वहां रख दें, हां पर उत्पादन करना हो। इन पर पुराने अखबार बिछाकर पानी से भिगो दें। कमरे में पर्याप्त नमी बनाने के लिए कमरे के फर्श व दीवारों पर भी पानी छिड़कते रहें। इस समय कमरे का तापमान 22 से 26 डिग्री सेंन्टीग्रेड और नमी 80 से 85 प्रतिशत के बीच होनी चाहिए। अगले 15 से 20 दिनों में खुम्बी का कवक जाल पूरी तरह से कम्पोस्ट में फैल जाएगा। इन दिनों खुम्बी को ताजा हवा नही चाहिए इसलिए कमरे को बंद ही रखें।