पांच साल लड़कर पैरालिसिस को दी मात, अब गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा दे रहा ये युवा

Neetu Singh | Sep 05, 2017, 19:19 IST
युवा
स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

सहार (औरैया)। बचपन से पैरालिसिस के शिकार अनुराग ने अपनी बीमारी की परवाह न करते हुए अपने क्षेत्र के बच्चों को हमेशा आगे बढ़ाने की ठान ली है। ये चाहते हैं कि आज जैसे उनका शरीर एक बड़ी बीमारी से लाचार है और उनके काम में बाधा नहीं बन रहा है उसी प्रकार किसी भी बच्चे की पढ़ाई में गरीबी उसकी रूकावट न बने।

“कुछ परेशानियों से जिन्दगी कभी खत्म नहीं होती” अपने बिछड़े दोस्त के इन शब्दों ने अनुराग की जिंदगी बदल दी। औरैया जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर सहार ब्लाक के देवीदास गाँव में रहने वाले अनुराग सिंह (24वर्ष) का बचपन बहुत ही मुश्किलों भरा रहा, लेकिन अनुराग ने इन मुश्किलों को अपनी जिंदगी में रूकावट नहीं बनने दिया। जन्म के छह महीने बाद अनुराग को पैरालिसिस हो गया था। ये मुश्किलें अनुराग के लिए क्षणिक थी। अपनी बीमारी से लड़कर एलएलबी करने के बाद आज ये अपने दोस्तों के सहयोग से सैकड़ों बच्चों को मुफ्त में पठन सामग्री उपलब्ध कराने के साथ ही योग्य शिक्षकों द्वारा उन्हें नि:शुल्क शिक्षा भी दे रहे हैं।



ये बच्चे पढ़ते हैं यहाँ निशुल्क

पांच भाई और दो बहनों में सबसे छोटे

अनुराग अपने बारे में बताते हैं, “पांच भाई और दो बहनों में मैं सबसे छोटा हूँ। जन्म के छह महीने बाद ही मुझे पैरालिसिस हो गया था। निरंतर इलाज चला और मै डेढ़ साल की उम्र में ठीक हो गया था। पैरालिसिस ठीक तो हो गया था, लेकिन तीन साल की उम्र से ही मुझे दौरे पड़ने शुरू हो गये। इलाज चलने के साथ ही मेरी पढाई कभी बंद नहीं हुई। वर्ष 2006 में दसवीं परीक्षा पास करने के बाद मानसिक संतुलन पूरी तरह से गड़बड़ा गया।” वो आगे बताते है, “पढ़ाई के साथ-साथ इन बच्चों को समय-समय पर कई तरह की गतिविधियाँ कराते रहते हैं जिनसे ये खुश रहते हैं, इन बच्चों के बीच आकर मै अपनी बीमारी भूल जाता हूँ और खुशी का अनुभव करता हूँ।”

गल्योसिस बीमारी से पीड़ित रहे अनुराग

आईसीयू में एक महीने तक एडमिट रहने के बाद अनुराग के घर वालों को ये पता चला कि गल्योसिस नामक बीमारी है। पूरे पांच साल इस बीमारी की पीड़ा से लड़ने के बाद अनुराग जिन्दगी से हार मानने लगे थे। परिवार और दोस्तों के प्रोत्साहन से पढ़ाई लगातार जारी रही। 15 वर्ष की उम्र में ही कम्प्यूटर टीचर के तौर पर अपने कैरियर की शुरुआत की। इस कैरियर में ढाई हजार रुपये मिलने शुरू हुए और अनुराग की पढ़ाई जारी रही। सबकुछ ठीक चलना शुरू ही हुआ था कि एक बार फिर अनुराग पारिवारिक विवाद में 17 वर्ष की उम्र में सलाखों के पीछे पहुंच गये। नाबालिग होने की वजह से अनुराग दो दिन में छूट तो गये था, मगर उन्हें अपना कैरियर खत्म होते नजर आ रहा था और वो पूरी तरह से अवसाद ग्रस्त हो गये थे।पर इन्होने अपने काम में बीमारी को कभी बाधा नहीं बनने दिया।

सड़क हादसे में हो गई दोस्त की मृत्यु

अनुराग के इन मुश्किल क्षणों में सबसे जिगरी दोस्त सुमित गुप्ता ने उबारने की बहुत कोशिश की। अनुराग की आँखें ये बताते हुए भर जाती हैं कि वर्ष 2014 में एक सड़क हादसे में मेरा दोस्त नहीं रहा मगर उसके कहे शब्द “कुछ परेशानियों से जिन्दगी कभी खत्म नहीं होती” इस वाक्य ने मुझे हिम्मत दी और मैंने “आओ मिलकर करें मदद” नाम की एक संस्था खोली।

अपनी सैलरी से लगाते हैं पैसा

“आओ मिलकर करें मदद” इस संस्था का उद्देश्य गरीब बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देना, महिलाएं अपने अधिकार जाने, बेटी बचाओ जैसे तमाम मुद्दे पर कार्य करना है। अनुराग बताते हैं कि हमारे चार मित्र रोहित वर्मा, नीतेश प्रताप सिंह, आर्यन कुशवाहा और यश पूरी तरह से हमारी इस मुहिम में शामिल हैं। मैं और मेरे सभी मित्र प्राइवेट जॉब करते हैं और उससे जो पैसा कमाते हैं, उससे इस संस्था को चलाया जा रहा है।

बच्चे बेझिझक करते हैं सवाल

गरीब बच्चों को मुफ्त में मिल रही शिक्षा

इस संस्था में अब तक हजारों की संख्या में गरीब बच्चों को मुफ्त में पढ़ाया जा चुका है, जिसे आस-पास के साथी मित्र मिलकर पढ़ाते हैं। इनमें रोहित अमित, विकास, जीत पाल, विपिन, आशिफ खान, आरिफ खान मुख्य रूप से जुड़े हैं। लड़कियों की एक टीम महिलाओं को उनके मुद्दे पर जागरूक करने का कार्य कर रही हैं, जिसमें अनुराधा, कुमारी विजया, एकता जैसी कई ग्रामीण लड़कियाँ शामिल हैं। दिल्ली का मशहूर बैंड ‘अनुरागी’ के संस्थापक डॉ राजेश अनुरागी संस्था के संरक्षक हैं, वो फाइनेशियल रूप से इन बच्चों की पढ़ाई में मदद कर रहे हैं।

अभी कारवां बहुत आगे ले जाना है

अनुराग खुश होकर बताते हैं कि हमारे सभी साथी हमें बहुत सहयोग कर रहें है। ये पैसे के लिए काम नहीं कर रहे, बल्कि समाज के लिए काम कर रहे हैं। अनुराग को पत्रकारिता का बहुत शौक है। वो बहुत सारी कविताएँ और लेख भी लिखते हैं। अनुराग कहते हैं, “आज मैं अपने काम से बहुत खुश हूँ। कोशिश है कि औरैया जिले में बहुत सारा काम करूं। अभी शुरुआत है और ये कारवां बहुत आगे ले जाना है।”

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