भाई की मौत ने दिखाई राह, देशभर के मरीजों के इलाज का उठाया बीड़ा
Neetu Singh | Feb 28, 2018, 11:26 IST
"हमारे परिवार ने छोटे भाई के इलाज के लिए 15 साल से ज्यादा अस्पताल के चक्कर काटे हैं। अपनी कोशिश में हर उस अस्पताल ले जाने की कोशिश की जहां उसके ठीक होने की उम्मीद थी। एक पुलिस कांस्टेबल पिता अपने बेटे का जितना इलाज करा सकते थे, उससे कई गुना ज्यादा कर्ज लेकर हमारे पिता ने इलाज करवाया पर फिर भी उसे हम बचा न सके।" ये बताते हुए रविन्द्र सिंह क्षत्री (29 वर्ष) भावुक हो गए।
पैसे के अभाव में इलाज के दौरान अपने 22 साल के भाई सुमित की असमय मौत से आहत रविन्द्र ने हर जरूरतमंद की मुफ्त इलाज करने की ठान ली है। रविन्द्र ने स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने के देश में 347 आरटीआई लगाई और एक ऐसा मोबाइल ऐप बनाया है जिसके द्वारा चिकित्सा सेवा को बेहतर किया जा सके।
रविन्द्र ने स्टार्ट अप इंडिया के थिंक रायपुर प्रोग्राम में अपना आइडिया जमा किया था। जिसमें देश भर से 6000 लोगों ने अपने आइडियाज समिट किये थे। इन छह हजार आइडियाज में 18 लोगों के आइडियाज को चुना गया था। जिसमें रविन्द्र का आइडिया पसंद किया गया और उसे दूसरा पुरस्कार मिला। उन्हें 12 जनवरी 2018 को राज्य के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह और मशहूर क्रिकेटर वीरेन्द्र सहवाग ने सम्मानित किया।
राज्य के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह और मशहूर क्रिकेटर वीरेन्द्र सहवाग ने रविन्द्र को किया सम्मानित। रविन्द्र ने ढाई साल पहले फेसबुक पर 'जीवनदीप' नाम का एक समूह बनाया। जिसमें देशभर से 62 हजार से ज्यादा लोग जुड़े हुए हैं। जब भी जीवनदीप को ऐसे किसी रोगी की जानकारी मिलती है जिसे इलाज के लिए मदद की जरूरत हो तो उसकी पूरी जानकारी इस पेज पर डाल दी जाती है।
इस समूह से जुड़े लोगअपने आस-पास रहने वाले किसी भी मरीज की जानकारी मिलते ही मदद के लिए तुरंत जुट जाते हैं। ये मरीज की तबतक देखरेख करते हैं जबतक वह पूरी तरह से ठीक न हो जाए। ये लोग सोशल मीडिया के जरिए जनता से अपील करके बीमार व्यक्ति के इलाज के लिए पैसा इकट्ठा करते हैं। जीवनदीप के प्रयास से अब तक देश के 300 से ज्यादा मरीजों की गम्भीर बीमारी की इलाज करवाकर उन्हें ठीक किया जा चुका है।
डॉ आशुतोष तिवारी के अस्पताल में पैसा नहीं बनता इलाज में बाधा रविन्द्र छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के रहने वाले हैं। इनके द्वारा शुरू हुई ये मुहिम आज देश के लगभग सभी हिस्सों में पहुंच चुकी है। इस मुहिम से जुड़े एक जाने माने अस्पताल के प्रमुख डॉ आशुतोष तिवारी ने गांव कनेक्शन संवाददाता को फोन पर बताया, "किसी गम्भीर मरीज की इलाज में पैसा यहां बाधा नहीं बनता है। जरूरतमंद मरीज की इलाज में जितना सम्भव होता है डिस्काउंट कर देता हूँ।" इस मुहिम में डॉ आशुतोष की तरह सैकड़ों डॉक्टर, पुलिसकर्मी, समाजसेवी और युवा अपनी-अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह कर रहे हैं।
रविन्द्र भाई के इलाज के समय आई चुनौतियों को याद करते हुए बताते हैं, "पापा के पुलिस विभाग ने भाई के मेडिकल खर्चे का बिल इसलिए देने से मना कर दिया कि मेरा भाई 22 साल का है और वह बालिग़ है। पापा की तनख्वाह 26 हजार महीने थी जबकि भाई के इलाज में हर महीने 40 से 50 हजार खर्चा आता था जिससे परिवार बुरी तरह से कर्जे में आ चुका था।"
रविन्द्र का छोटा भाई सुमित, जिस भाई के इलाज के लिए रविन्द्र ने पढ़ाई और नौकरी छोड़ी..पर फिर भी उसे बचा न सके घर की आर्थिक स्थिति दिनोंदिन दयनीय होती जा रही थी इन सबसे आहत सुमित ने राष्ट्रपति महोदय को इच्छा मृत्यु के लिए पत्र लिख दिया था। रविन्द्र ने भी चिकित्सा व्यवस्था को ठीक करने के लिए 100 से ज्यादा पत्र लिखे और 347 आरटीआई लगाई थी।
कुछ समय बाद रविन्द्र को राज्यपाल का पत्र आया जिसमें लिखा था। "मैं अपनी विशेष शक्तियों का प्रयोग करके तुरंत प्रभाव से इस नियम में परिवर्तन करता हूँ। अब परिवार का कोई भी सदस्य (ब्लड रिलेशन में) जो आप पर आश्रित हो, उसके इलाज का सारा खर्च राज्य सरकार ही उठाएगी, बशर्ते उसकी तनख्वाह या पेंशन 3050 रुपए से अधिक ना हो।" रविन्द्र ने बताया, "जिस दिन यह नियम बना मैं बहुत रोया क्योंकि तबतक मेरा भाई हम सबसे बहुत दूर जा चुका था। मन को शांति जरुर मिली थी कि अब किसी और को पैसे के लिए भटकना नहीं पड़ेगा।"
जीवनदीप समूह से जुड़ा हर साथी अपनी जिम्मेदारी निभाता है। जीवनदीप का फेसबुक पेज बनने के बाद रविन्द्र ने दो साल पहले अपने भाई के नाम से सुमित फाउंडेशन 'जीवनदीप' नाम की एक गैर सरकारी संस्था की नींव रखी। जिसका मुख्य उद्देश्य भारत में इलाज के अभाव में हो रही असमय मौत पर काबू पाना है। जीवनदीप आने वाले पांच वर्षों में एक ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय अस्पताल की स्थापना करना चाहता है, जहां पर हर प्रकार की चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई जा सके। यहां कागजी दस्तावेज़ पूरे करने की बजाए जान बचाने को प्राथमिकता दी जाए। अगर आप भी इस ग्रुप से जुड़कर अपने आस-पास के लोगों की मदद करना चाहते हैं तो आप इनके फेसबुक पेजhttps://www.facebook.com/groups/JivandeepCGbilaspur/ पर क्लिक करके जुड़ सकते हैं।
इलाज में ठीक हुई बच्ची रविन्द्र के साथ है खुश
पैसे के अभाव में इलाज के दौरान अपने 22 साल के भाई सुमित की असमय मौत से आहत रविन्द्र ने हर जरूरतमंद की मुफ्त इलाज करने की ठान ली है। रविन्द्र ने स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने के देश में 347 आरटीआई लगाई और एक ऐसा मोबाइल ऐप बनाया है जिसके द्वारा चिकित्सा सेवा को बेहतर किया जा सके।
रविन्द्र ने स्टार्ट अप इंडिया के थिंक रायपुर प्रोग्राम में अपना आइडिया जमा किया था। जिसमें देश भर से 6000 लोगों ने अपने आइडियाज समिट किये थे। इन छह हजार आइडियाज में 18 लोगों के आइडियाज को चुना गया था। जिसमें रविन्द्र का आइडिया पसंद किया गया और उसे दूसरा पुरस्कार मिला। उन्हें 12 जनवरी 2018 को राज्य के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह और मशहूर क्रिकेटर वीरेन्द्र सहवाग ने सम्मानित किया।
राज्य के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह और मशहूर क्रिकेटर वीरेन्द्र सहवाग ने रविन्द्र को किया सम्मानित। रविन्द्र ने ढाई साल पहले फेसबुक पर 'जीवनदीप' नाम का एक समूह बनाया। जिसमें देशभर से 62 हजार से ज्यादा लोग जुड़े हुए हैं। जब भी जीवनदीप को ऐसे किसी रोगी की जानकारी मिलती है जिसे इलाज के लिए मदद की जरूरत हो तो उसकी पूरी जानकारी इस पेज पर डाल दी जाती है।
इस समूह से जुड़े लोगअपने आस-पास रहने वाले किसी भी मरीज की जानकारी मिलते ही मदद के लिए तुरंत जुट जाते हैं। ये मरीज की तबतक देखरेख करते हैं जबतक वह पूरी तरह से ठीक न हो जाए। ये लोग सोशल मीडिया के जरिए जनता से अपील करके बीमार व्यक्ति के इलाज के लिए पैसा इकट्ठा करते हैं। जीवनदीप के प्रयास से अब तक देश के 300 से ज्यादा मरीजों की गम्भीर बीमारी की इलाज करवाकर उन्हें ठीक किया जा चुका है।
डॉ आशुतोष तिवारी के अस्पताल में पैसा नहीं बनता इलाज में बाधा रविन्द्र छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के रहने वाले हैं। इनके द्वारा शुरू हुई ये मुहिम आज देश के लगभग सभी हिस्सों में पहुंच चुकी है। इस मुहिम से जुड़े एक जाने माने अस्पताल के प्रमुख डॉ आशुतोष तिवारी ने गांव कनेक्शन संवाददाता को फोन पर बताया, "किसी गम्भीर मरीज की इलाज में पैसा यहां बाधा नहीं बनता है। जरूरतमंद मरीज की इलाज में जितना सम्भव होता है डिस्काउंट कर देता हूँ।" इस मुहिम में डॉ आशुतोष की तरह सैकड़ों डॉक्टर, पुलिसकर्मी, समाजसेवी और युवा अपनी-अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह कर रहे हैं।
रविन्द्र भाई के इलाज के समय आई चुनौतियों को याद करते हुए बताते हैं, "पापा के पुलिस विभाग ने भाई के मेडिकल खर्चे का बिल इसलिए देने से मना कर दिया कि मेरा भाई 22 साल का है और वह बालिग़ है। पापा की तनख्वाह 26 हजार महीने थी जबकि भाई के इलाज में हर महीने 40 से 50 हजार खर्चा आता था जिससे परिवार बुरी तरह से कर्जे में आ चुका था।"
रविन्द्र का छोटा भाई सुमित, जिस भाई के इलाज के लिए रविन्द्र ने पढ़ाई और नौकरी छोड़ी..पर फिर भी उसे बचा न सके घर की आर्थिक स्थिति दिनोंदिन दयनीय होती जा रही थी इन सबसे आहत सुमित ने राष्ट्रपति महोदय को इच्छा मृत्यु के लिए पत्र लिख दिया था। रविन्द्र ने भी चिकित्सा व्यवस्था को ठीक करने के लिए 100 से ज्यादा पत्र लिखे और 347 आरटीआई लगाई थी।
कुछ समय बाद रविन्द्र को राज्यपाल का पत्र आया जिसमें लिखा था। "मैं अपनी विशेष शक्तियों का प्रयोग करके तुरंत प्रभाव से इस नियम में परिवर्तन करता हूँ। अब परिवार का कोई भी सदस्य (ब्लड रिलेशन में) जो आप पर आश्रित हो, उसके इलाज का सारा खर्च राज्य सरकार ही उठाएगी, बशर्ते उसकी तनख्वाह या पेंशन 3050 रुपए से अधिक ना हो।" रविन्द्र ने बताया, "जिस दिन यह नियम बना मैं बहुत रोया क्योंकि तबतक मेरा भाई हम सबसे बहुत दूर जा चुका था। मन को शांति जरुर मिली थी कि अब किसी और को पैसे के लिए भटकना नहीं पड़ेगा।"
जीवनदीप समूह से जुड़ा हर साथी अपनी जिम्मेदारी निभाता है। जीवनदीप का फेसबुक पेज बनने के बाद रविन्द्र ने दो साल पहले अपने भाई के नाम से सुमित फाउंडेशन 'जीवनदीप' नाम की एक गैर सरकारी संस्था की नींव रखी। जिसका मुख्य उद्देश्य भारत में इलाज के अभाव में हो रही असमय मौत पर काबू पाना है। जीवनदीप आने वाले पांच वर्षों में एक ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय अस्पताल की स्थापना करना चाहता है, जहां पर हर प्रकार की चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई जा सके। यहां कागजी दस्तावेज़ पूरे करने की बजाए जान बचाने को प्राथमिकता दी जाए। अगर आप भी इस ग्रुप से जुड़कर अपने आस-पास के लोगों की मदद करना चाहते हैं तो आप इनके फेसबुक पेजhttps://www.facebook.com/groups/JivandeepCGbilaspur/ पर क्लिक करके जुड़ सकते हैं।
इलाज में ठीक हुई बच्ची रविन्द्र के साथ है खुश