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ग्रामीण बच्चों को मिल रही ऑनलाइन शिक्षा

Deepanshu Mishra | Jan 18, 2019, 12:45 IST
ग्रामीण शिक्षा की सूरत बदलने के लिए गाँव कनेक्शन फाउंडेशन की ओर से शुरू की गई पहल...
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लखनऊ। सुविधाओं के अभाव में जहां देश के लाखों ग्रामीण बच्चों को बेहतर शिक्षा नहीं मिल पाती है, वहीं गाँव कनेक्शन फाउंडेशन ने ऑनलाइन क्लास के जरिए ग्रामीण शिक्षा की सूरत बदलने की पहल की है, जिसमें देश-विदेश के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले जानकार ग्रामीण बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाएंगे।

लखनऊ से 35 किलोमीटर दूर कुनौरा गाँव स्थित भारतीय ग्रामीण विद्यालय में चली इस ऑनलाइन क्लास में चंडीगढ़‍ की मोनिता शर्मा ने ग्रामीण बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाई। मोनिता शर्मा मीडिया क्षेत्र में काम कर रही हैं।

मोनिता शर्मा बताती हैं, "गाँव के बच्चों को शहर के शिक्षकों से इंटरनेट के जरिए जोड़ना बहुत अच्छा विचार है। मैं इससे जुड़कर पहली बार हिंदी माध्यम के बच्चों को ऑनलाइन पढ़ा रही हूँ। आने वाले कुछ समय में वो बहुत अच्छी इंग्लिश सीख जाएंगे।" आगे कहा, "साथ ही देश-विदेश की हर तरह की जानकारी गाँव के बच्चों तक पहुंचेगी। इंटरनेट क्लास से एक बहुत बड़ा बदलाव आ सकता है। यह स्कूल पूरे देश के लिए एक उदाहरण बन कर खड़ा हो सकता है।"

वर्ष 2017 में लोकसभा में एक सवाल के जवाब में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने खुलासा किया था कि देश में 10,14,491 सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की जगह खाली है। माध्यमिक स्तर पर 14.9 प्रतिशत और प्राइमरी स्टार पर 17.5 प्रतिशत अध्यापकों की कमी है।



भारतीय ग्रामीण विद्यालय के संस्थापक डॉ. एसबी मिश्र बताते हैं, "आज से 46 वर्ष पहले जब इस विद्यालय की शुरुआत हुई, तब इस क्षेत्र में साक्षरता की बहुत कमी थी। यहाँ से 12 किमी. की दूरी तक कोई भी जूनियर स्कूल तक नहीं था। उस समय बस यही चिंता थी कि बच्चों को किसी भी तरह से शिक्षा दी जा सके।" वह आगे कहते हैं, "अब स्कूलों की तो कमी नहीं है, लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता में काफी कमी है। मगर आज बच्चे इंटरनेट के जरिए पढ़ रहे हैं। ऑनलाइन क्लास का यह प्रयास गाँव कनेक्शन फाउंडेशन के सहयोग से शुरू हुआ है, यह हमारे ग्रामीण बच्चों को सभी स्कूलों के समकक्ष लेकर आएगा।"

प्रथम एनजीओ की एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (एएसईआर)-2018 की रिपोर्ट के अनुसार, 10 वर्ष पहले के मुकाबले 2018 में स्कूली छात्रों के प्रदर्शन के स्तर में गिरावट आई है। साल 2008 में यह पाया गया कि कक्षा पांच के 37% छात्र गणित के बेसिक सवालों को हल कर सकते थे। लेकिन, वर्ष 2018 में ऐसे छात्रों का आंकड़ा घटकर 28% रह गया। साल 2016 में ये संख्या 26% थी।

रीडिंग में भी छात्र पिछड़ रहे हैं। साल 2008 में 8वीं कक्षा के 84.8% स्टूडेंट कक्षा 2 के स्तर की टेक्स्ट बुक पढ़ने में सक्षम थे। साल 2018 में ऐसे छात्रों की संख्या घटकर 72.8% रह गई। यानी कक्षा आठ के 27% छात्र दूसरी के स्तर की किताबें भी नहीं पढ़ सकते।



वहीं सरकारी स्कूलों के 8वीं क्लास के 56% छात्रों को बेसिक गणित नहीं आती। कक्षा 5 के 72% छात्रों को भाग करना नहीं आता। 8वीं के 27% छात्र दूसरी के स्तर की किताबें भी नहीं पढ़ पाते। तीसरी क्लास के 70% स्टूडेंट घटाना नहीं कर सकते। एएसईआर के मुताबिक बेसिक अंकगणित में लड़कियां, लड़कों से पीछे हैं। रिपोर्ट तैयार करते वक्त यह सामने आया कि 50% लड़कों के मुकाबले सिर्फ 44% लड़कियां अंकगणित के सवालों को हल कर सकती हैं। हिमाचल, पंजाब, केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में लड़कियों का प्रदर्शन बाकी राज्यों के मुकाबले बेहतर है।

प्रथम एनजीओ ने रिपोर्ट तैयार करने के लिए 28 राज्यों के 596 जिलों से डाटा जुटाए। इसके लिए 3 से 16 साल के 5.5 लाख बच्चों से सवाल-जवाब किए गए।

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यशोवर्धन सिंह बंगलौर में एक कम्पनी मैनेजर के रूप में काम कर रहे हैं। इंटरनेट क्लास से जुड़कर वो बच्चों को पढ़ा रहे हैं। यशोवर्धन बताते हैं, "ऑनलाइन क्लासेस का प्रयोग ग्रामीण क्षेत्रों के लिए नया प्रयोग है। जो अनुभवी या उच्च शिक्षित व्यक्ति अपना ज्ञान बच्चों में बांटना चाहता है, वह कहीं भी बैठकर किसी भी छात्र को यह शिक्षा दे सकता है। छात्रों को किताबों की दुनिया से बाहर निकल कर एक नया अनुभव प्राप्त होगा।"

वहीं बंगलौर में रहने वाली हिंदी शिक्षक अनुराधा भी ऑनलाइन क्लास प्रोजेक्ट से जुड़कर बच्चों को पढ़ा रही हैं। अनुराधा बताती हैं, "एक शिक्षक होने के नाते पढ़ना और पढ़ाना दोनों मुझे बहुत पसंद है, लेकिन इतनी दूर बैठ कर वीडियो कॉल के माध्यम से बच्चों को पढ़ाना यह एक सपने जैसा ही था, लेकिन यह सच हो गया। इस माध्यम से पढ़ने का जितना बच्चों का नया अनुभव था, उतना ही हमारा भी रहा।"

वह आगे कहती हैं, "यह बच्चों के लिए एक ऐसा प्लेटफ़ॉर्म है जो उनकी पढ़ाई के साथ-साथ कई समस्याओं का हल कर देगा।"

'पुराना स्कूल नई व्यवस्था के साथ आगे बढ़ेगा'

भारतीय ग्रामीण विद्यालय के संस्थापक डॉ. एसबी मिश्र बताते हैं, "शहरों और कस्बों में कंप्यूटर और इंटरनेट शिक्षा का उपयोग बराबर प्रचलित हो रहा है, लेकिन कुनौरा गाँव जैसे सुदूर क्षेत्र में इसका प्रचलन नहीं हुआ है। हमारे यहाँ अध्यापक जो अधिकतर इस विद्यालय से पढ़े हुए हैं, उनके लिए यह कार्यक्रम एक दम नया है।" उन्होंने आगे बताया, "अध्यापक के साथ-साथ छात्र भी काफी रुचि ले रहे हैं। अभी जूनियर और हायर सेकंडरी के छात्र इस कार्यक्रम का लाभ उठा रहे हैं, लेकिन आने वाले वाले समय में सभी इसका लाभ उठा पाएंगे। पुराना स्कूल नई व्यवस्था के साथ छात्रों को तैयार कर सकेगा।"

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