By Pooja Vrat Gupta
‘पानी बचाना है’ ये ख़्याल तब कहाँ किसी बुद्धिजीवी के दिमाग में आया था इसलिए होली से कई दिन पहले चबूतरों और छतों पर पानी के ड्रम भरकर रख दिये जाते। क्योंकि तब होली कोई दो दिनों की बात तो थी नहीं।
‘पानी बचाना है’ ये ख़्याल तब कहाँ किसी बुद्धिजीवी के दिमाग में आया था इसलिए होली से कई दिन पहले चबूतरों और छतों पर पानी के ड्रम भरकर रख दिये जाते। क्योंकि तब होली कोई दो दिनों की बात तो थी नहीं।
By Pooja Vrat Gupta
अक्टूबर आता, तो हाथों में गोबर की खुशबू समाई होती, हम स्कूल से लौटकर बस्ता पटककर सीधे उस घर के आगे जाकर खड़े हो जाते, जहाँ गाय या भैंस बंधी होती; शाम को घर के चबूतरे की दीवार पर तरैया जो बनानी होती।
अक्टूबर आता, तो हाथों में गोबर की खुशबू समाई होती, हम स्कूल से लौटकर बस्ता पटककर सीधे उस घर के आगे जाकर खड़े हो जाते, जहाँ गाय या भैंस बंधी होती; शाम को घर के चबूतरे की दीवार पर तरैया जो बनानी होती।
By Pooja Vrat Gupta
ज़माना बदला पर हमारे क़स्बे की रामलीला का स्वरूप लगभग वही है, बदलने को तो आधुनिकता के नाम पर इसे भी बदला जा सकता था, पर फिर कैसे वर्षों बाद भी ये मेरे या मेरे जैसे लोगों के ज़ेहन में ताज़ा होतीं!
ज़माना बदला पर हमारे क़स्बे की रामलीला का स्वरूप लगभग वही है, बदलने को तो आधुनिकता के नाम पर इसे भी बदला जा सकता था, पर फिर कैसे वर्षों बाद भी ये मेरे या मेरे जैसे लोगों के ज़ेहन में ताज़ा होतीं!