ग्राउंड रिपोर्टः मशीनें बंद, काम ठप, मजदूर परेशान, मालिक हलकान, पूरा अर्थतंत्र प्रभावित

ऑटोमोबाइल सेक्टर में मंदी से ट्रैक्टर से लेकर ट्रक और 'छोटा हाथी' से लेकर दुपहिया वाहन तक की बिक्री गिरी है। जिसका सीधा असर इन्हें बनाने वाली बड़ी कंपनियों और माल सप्लाई करने वाली छोटी कंपनियों पर पड़ रहा है। झारखंड के जमशेदपुर में 1000 छोटी कंपनियों तो लखनऊ की 100 कंपनियां मंदी की चपेट में हैं। इनमे काम करने वाले हजारों कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं।

Daya Sagar

Daya Sagar   26 Aug 2019 5:37 AM GMT

"बताओ अगले महीने से कौन सा काम शुरू किया जाए? अंडे का काम सही रहेगा या सब्जी बेचने का? मोबाइल रिपेयरिंग का काम शुरू किया जाए या चौराहे पर ठेला लगाने का? या फिर गांव लौटकर फिर से खेती ही शुरू किया जाए!"

लखनऊ के चिनहट इंडस्ट्रियल एरिया स्थित टाटा मोटर्स से अपना शिफ्ट पूरा करने के बाद बाहर निकलते हुए एक कर्मचारी दूसरे कर्मचारी से अनिश्चितता से भरे यह सवाल करता है। उसके दिमाग में अनिश्चितता से भरे ये सवाल बाजार में छाई मंदी, कंपनी के उत्पादन में हो रही कमी और मीडिया में मंदी की खबरों के चलते उठ रहे हैं। हालांकि ज्यादातर कर्मचारी मीडिया से बात करने से बचते हैं।

"अगस्त के 21 दिन बीत चुके हैं लेकिन सिर्फ दस दिन ही कंपनी में काम हुआ है। बाकी दिन कंपनी बंद रही। आगे आने वाले दिनों में भी कंपनी में उत्पादन कार्य ठप रहने की सूचना है। पहले जहां एक महीने में 5000 से 7000 गाड़ियों का उत्पादन होता था, अब सिर्फ 1800-2000 गाड़ियों का उत्पादन हो रहा है।" टाटा मोटर्स, लखनऊ के एक कर्मचारी ने नाम ना बताने की शर्त पर बताया।

टाटा मोटर्स से बाहर निकले रहे कामगारों में अनिश्चितता का माहौल है। उन्हें यह भी नहीं पता कि अगले हफ्ते उनकी ड्यूटी लगेगी या नहीं।

भारतीय ऑटोमोबाइल बाजार पिछले 20 साल के सबसे खराब मंदी के दौर से गुजर रहा है। सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्यूफैक्चर्स (SIAM) के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल-जुलाई, 2019 तिमाही में भारत में वाहनों की बिक्री पिछले साल की तुलना में 21.56 फीसदी कम हुई है। जहां कॉमर्सियल गाड़ियों की बिक्री में 13.57 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई वहीं दोपहिया वाहनों की बिक्री में भी 12.93 फीसदी की कमी गई। सवारी ढोने वाले तिपहिया वाहनों की बिक्री में भी 7.43 फीसदी की कमी आई।

चूंकि बिक्री कम हो रही है इसलिए गाड़ियों का उत्पादन भी कम हो रहा है। सियाम के ही आंकड़ों के अनुसार अप्रैल-जुलाई, 2019 तिमाही में पिछले साल की तुलना में गाड़ियों के उत्पादन में 10.65 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। जहां अप्रैल से जुलाई, 2018 की तिमाही में 10,883,730 वाहनों का उत्पादन हुआ, वहीं 2019 के इसी तिमाही के दौरान सिर्फ 9,724,373 गाड़ियों का उत्पादन किया गया।

जिन चीजों का उत्पादन कम हुआ है या बिक्री में गिरावट हुई है उनका सीधा वास्ता ग्रामीण भारत से है। टाटा, होंडा और मारुती, महिद्रा जैसी बड़ी कंपनियों का उत्पादन प्रभावित होने से इन कंपनियों से जुड़ी हजारों छोटी इकाइयों में से सैकड़ों का काम ठप हो गया है। जिससे लाखों लोगों के हाथ से रोजगार छिन गया है, इनमें से ज्यादातर वो लोग हैं जो किसी रजिस्टर में दर्ज नहीं है। गाड़ियों के उत्पादन में कमी का यह सिलसिला जुलाई-सितंबर की तिमाही में भी जारी है। टाटा, मारूति सुजुकी, महिंद्रा, अशोक लेलैंड, हुंडई, होंडा, टोयोटा और हीरो जैसी बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनियां लगातार अपने उत्पादन में कमी कर रही हैं।

प्लांट और गोदाम पर गाड़ियों की कतार लगी हुई है।

उत्पादन कम होने से ये कंपनियां कॉस्ट कटिंग के नाम पर कर्मचारियों की छंटनी कर रही हैं। जमशेदपुर, पुणे, चेन्नई, आदित्यनगर, जमशेदपुर (झारखंड) और मानेसर (गुरूग्राम) जैसे बड़े ऑटोमोबाइल औधोगिक क्षेत्रों से लगातार कर्मचारियों की छंटनी की खबर आ रही है। महिंद्रा और मारूति सुजुकी ने क्रमशः 1500 और 3000 कर्मचारियों की छुट्टी की है।

फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन (FADA- फाडा) के अनुसार ऑटोमोबाइल सेक्टर में आई मंदी से इससे प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जुड़े अब तक दो लाख लोगों की नौकरी पर गाज गिरी है। फाडा का अनुमान है कि अगर स्थिति यही बनी रही तो आने वाले दो महीनों में ऑटो सेक्टर से 10 लाख लोगों को अपनी नौकरी गंवानी पड़ सकती है।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित चिनहट इंडस्ट्रियल एरिया के कामगारों में भी अनिश्चितता का माहौल है। लखनऊ के इस औधोगिक क्षेत्र में टाटा मोटर्स के बड़े कॉमर्सियल वाहनों मसलन- ट्रक, बस और पिकअप का उत्पादन होता है। इस कंपनी में 5000 से अधिक कर्मचारी काम करते हैं।

कंपनी के कर्मचारी ने बताया, "पहले यहां तीन शिफ्ट में काम होता था लेकिन अब सिर्फ एक ही शिफ्ट में काम हो रहा है। ओवरटाइम तो हो ही नहीं रहा। हम मीडिया में आ रही कई ऑटो कंपनियों में लगातार छंटनी की भी खबर सुन रहे हैं। एक-दो कर्मचारियों की आत्महत्या की भी खबर आई है। हमें नहीं पता कि अगले महीने हमारी नौकरी रहेगी या नहीं।"

कंपनी में कार्य ठप होने से सबसे अधिक नुकसान उन कामगारों का हो रहा है, जो दिहाड़ी पर काम करते हैं। कंपनी से काम कर के निकल रहे बाराबंकी के दिहाड़ी मजदूर सत्यम यादव (23) ने बताया, "आज-कल काम कम है। प्लांट कभी भी बंद हो जाता है, तो दिन भर की दिहाड़ी चली जाती है। हालांकि उम्मीद है कि जल्द ही यह सब ठीक हो जाएगा। इसी उम्मीद में हम यहां से काम छोड़ नहीं रहे हैं।"




पूरा का पूरा अर्थतंत्र प्रभावित

ऐसा नहीं है कि ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में मंदी आने से सिर्फ ऑटो सेक्टर और इससे जुड़े उद्योग प्रभावित हुए हैं बल्कि एक पूरा अर्थतंत्र ही प्रभावित हुआ है। मसलन अगर लखनऊ के चिनहट इंडस्ट्रियल एरिया की बात की जाए तो रमेश पाल के ढाबे पर जहां तीन महीने पहले एक समय में 40 से 50 लोग बैठे रहते थे, वहीं अब यह संख्या चार से पांच तक ही सिमट गई है।

ढाबे पर काम करने वाले अवधेश शर्मा ने बताया, "दोपहर दो बजे तक जहां पहले साढ़े तीन से चार हजार की बिक्री हो जाती थी, अब महज एक से डेढ़ हजार की ही बिक्री हो पा रही है। पहले दिन भर में 10 किलो तक चावल खत्म हो जाता था, अब सिर्फ दो या तीन किलो चावल पकाया जा रहा है। अवधेश ने बताया कि बिक्री कम होने से मालिक ने ढाबे पर काम करने वाले तीन आदमियों को निकाल दिया है।"

इंडस्ट्रियल एरिया के ही पास के गांव में रहने वाले बुजुर्ग रामज्ञा प्रसाद (70 साल) ने बताया, "पहले सड़क पर ट्रकों की इतनी कतार खड़ी रहती थी कि हमेशा जाम का माहौल रहता था। अब जब फैक्ट्री (टाटा मोटर्स) से गाड़ी नहीं निकल रही तो ट्रक भी कम आ रहे हैं। इसलिए ढाबे की खपत कम है, टंकी वालों का पान-मसाला कम बिक रहा है। आस-पास के गांव वालों के किराने, मोबाइल और चाय के दुकानों पर भी नरमी का माहौल है।" रामज्ञा प्रसाद आगे बताते हैं कि काम ना मिलने से कई ट्रक वाले भी परेशान हैं और महीनों से इधर-उधर अपनी गाड़ी खड़ी किए हुए हैं।

औधोगिक क्षेत्र के दुकानों, ढाबों पर भी मंदी का असर साफ देखा जा सकता है।


छोटे उद्योग लगभग बंद होने के कगार पर

मोहम्मद अबरार लखनऊ के नादरगंज औधोगिक क्षेत्र में 'नेशनल इंजीनियरिंग वर्क्स' नाम से एक छोटी सी कंपनी चलाते हैं, जो टाटा मोटर्स और अन्य ऑटो मोबाइल कंपनियों के लिए पार्ट बनाती है। वह कहते हैं कि उन्होंने अपने 40 सालों के कारोबारी जीवन में कभी ऐसी मंदी नहीं देखी।

65 साल के मोहम्मद अबरार बंद पड़ी मशीनों को दिखाते हुए बताते हैं, "पहले हमारे वहां आठ नियमित मजदूर थे, इसके अलावा चार-पांच मजदूरों को रोज दिहाड़ी पर रखा जाता था। काम अधिक होने से मजदूर ओवरटाइम भी करते थे। लेकिन अब काम इतना कम है कि अपने नियमित मजदूरों से साफ-सफाई का काम करना पड़ रहा है। दिहाड़ी और ठेके के मजदूर को अब हम नहीं रख रहे। नियमित वेतन वाले भी एक मजदूर की छंटनी कर दी है। सबको हटा भी नहीं सकते क्योंकि बाद में इतने अच्छे कारीगर मिलेंगे नहीं। किसी तरह काम चला रहे हैं, आगे का बस अल्लाह ही मालिक है।"

ऑटोमोबाइल सेक्टर में मंदी से इससे जुड़े छोटे उद्योगों को बड़ा नुकसान पहुंचा है। ये छोटे उद्योग टाटा और अन्य ऑटोमोबाइल कंपनियों के लिए नट, बोल्ट, रिम, बंपर, फ्रेम बोल्ट, क्लैम्प, स्टॉपर, सीट मेटल सहित कई बॉडी पार्ट्स बनाते हैं। इन छोटी कंपनियों में 10 से लेकर 200 आदमी काम करते हैं। कुल मिलाकर इससे जुड़े 50 हजार से अधिक कामगार सिर्फ लखनऊ इंडस्ट्रियल एरिया में प्रभावित हुए हैं। ये मजदूर लखनऊ और आस-पास के जिलों के ग्रामीण इलाकों के अलावा बिहार और झारखंड जैसे राज्यों से आते हैं।

ऑटोमोबाइल सेक्टर से जुड़ी ये कंपनियां काम ना होने से ठप पड़ी हैं। मशीनें बंद पड़ी हैं, कामगार खाली हैं और मालिक मंदी से उबरने वाले दिनों का इंतजार कर रहे हैं। कॉन्ट्रैक्ट और दिहाड़ी पर काम करने वाले मजदूरों को काम पर बुलाया ही नहीं जा रहा है। वे अब खेती या कोई अन्य दिहाड़ी मजदूरी कर रहे हैं।

छोटी उद्योगों में मशीनें बिल्कुल बंद पड़ी हुई हैं

टाटा के लिए काम करने वाली कंपनी इंजीनियरिंग इंटरप्राइजेज, लखनऊ के पुनीत अरोरा ने बताया कि टाटा में काम कम होने से उससे जुड़ी 50 लघु और मध्यम कंपनियां और इन कंपनियों से जुड़ी 50 और कंपनियां लगभग बंद होने की कगार पर हैं। कई उद्यमियों ने अपने उद्योग के लिए लोन लिया है, वे अब उसके लिए ब्याज भी नहीं जुटा पा रहे हैं।

लखनऊ से करीब 850 किलोमीटर दूर झारखंड के जमशेदपुर के आदित्यपुर इंडस्ट्रीयल एरिया में भी अब खटपट की आवाज़ कम सुनाई दे रही है। जमशेदपुर में गाड़ियों के गियर बनाने वाली एग्जियोम दो महीने से बंद पड़ी है। कंपनी में 10 लोग थे जिन्हें निकाल दिया गया है। कंपनी के मालिक बिजेंद्र सिंह गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "हमारी जैसी यहां 1000 कंपनियां हैं, जिसमें से 90 फीसदी बंद पड़ी हैं। हालत खराब हैं। पता नहीं क्या होने वाला है? पिछले वर्षों में जो कमाया था अब वो जमा पूंजी बैठकर खा रहे हैं।"

बिजेंद्र के मुताबिक पिछले दिन महीनों से जमशेदपुर की सबसे बड़ी मोटर फर्म टाटा मोटर्स में महीने में सिर्फ 15 दिन ही काम कर रही है। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट के अनुसार आदित्यपुर लौह मंडी में कम काम के चलते 30 हजार कर्मचारियों की छंटनी की ख़बर है। ये वही इलाका है जहां पिछले दिनों एक युवक ने नौकरी में छंटनी के डर से आत्महत्या कर ली थी।

टाटा मोटर्स, लखनऊ के लिए फ्रेम बनाने वाली करीब 200 कामगारों वाली कंपनी 'ओमैक्स ऑटो' के यू. के. सिंह बताते हैं कि पहले की तुलना में उत्पादन 70 फीसदी तक गिर गया है। इसलिए कंपनी को कॉस्ट कटिंग करनी पड़ रही है। इसके लिए वे कच्चा माल खरीद रहे हैं और मैनपॉवर में कमी कर रहे हैं। टाटा की सबसे बड़ी सहयोगी कंपनी में से एक ओमैक्स ऑटो ने स्वीकार किया कि उन्होंने मजदूरों की छंटनी की है और शिफ्ट भी कम किया है। हालांकि उन्होंने छंटनी किए गए मजदूरों की संख्या बनाने से इनकार किया।

टीवीएस और बजाज के लिए रिम और सीट मेटल बनाने वाले बेरी ऑटो ने भी कहा कि पहले की तुलना में सिर्फ 30 फीसदी ही काम हो पा रहा है। इसलिए वे मजबूरन दिहाड़ी के काम करने वाले मजदूरों को कोई मजदूरी नहीं दे पा रहे। 150 मजदूरों की क्षमता वाले 'बेरी ऑटो' के प्रोपराइटर ने बताया कि हमारे पास इतना भी काम नहीं है कि अपने नियमित कर्मचारियों से काम ले सकें।

मिलों में उत्पादन कार्य ठप पड़े हुए हैं


इस मामले में हमने जब टाटा मोटर्स लखनऊ के जन संपर्क विभाग में संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि, "काम प्रभावित जरुर है, लेकिन अभी तक किसी को नौकरी से निकाला नहीं गया है। हमारे यहां 5000 कर्मचारी काम करते हैं।" जब हमने शिफ्ट और उत्पादन में कटौती के बारे में पूछा तो उन्होंने फोन काट दिया।

उधर महिंद्रा एंड महिंद्रा के एमडी पवन गोयनका ने एक बयान जारी करते हुए कहा, 'एक अप्रैल से अब तक हमने करीब 1500 अस्थायी कर्मचारियों को काम से हटा दिया है। हम कोशिश कर रहे हैं कि कर्मचारियों को ना हटाना पड़े लेकिन मंदी जारी रहने के हालात में हमें और लोगों को भी काम से हटाने पर मजबूर होना पड़ेगा।"

कम मांग से निपटने के लिए ऑटो इंड्रस्ट्री से जुड़ी कंपनियां त्योहारी सीजन में कई ऑफर लेकर आ रही हैं। दोपहिया वाहन बनाने वाली बड़ी कंपनी बजाज सिर्फ 999 रुपए के डाउनपेमेंट पर अपने छोटे सेगमेंट की गाड़ी दे रही है। जबकि कई कार कंपनियां भी आकर्षक ऑफर की योजना बना रही हैं। कार और बाइक फाइनेंस करने वाली बैंक प्रोसेसिंग फीस और ईएमआई पर ब्याज दरों को घटा रही हैं।

खैर, चिनहट इंडस्ट्रियल एरिया की खाक छानते जब हम एक कबाड़ (स्क्रैप) की दुकान पर पहुंचे तो वहां हमें दुकान के मालिक अबरार अहमद सोते हुए मिले। जगाने पर कहा, "भाई कोई काम नहीं है तो सो ही रहे हैं।" धंधे के बारे में पूछने पर आख मलते हुए कहते हैं, "पहले टाटा और छोटी फैक्ट्रियों से हर महीने छह से आठ ट्रक कबाड़ और स्क्रैप मिल जाता था लेकिन अब एक से दो ट्रक ही माल मिल पा रहा है।" इतना कहकर अबरार फिर से जम्हाई लेने लगते हैं।

काम ना होने की वजह से दुकान पर सो रहे स्क्रैप के कारोबारी अबरार अहमद


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