यूपी: नहर टूटने से हर साल बह जाती है लाखों की फसल, ठंड के मौसम में किसानों पर बाढ़ जैसी आफत

उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर जिले में सरयू नहर के किनारे स्थित लगभग आधा दर्जन गांवों के सैकड़ों किसान परिवारों के सिर पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। नहर की दीवार टूटने से सैकड़ों एकड़ खेत में पानी भर गया है जिस कारण कारण लाखों की फसल बर्बाद हो गई है। ग्रामीणों का कहना है कि हर साल हर फसली सीजन में ऐसा होता है, फिर भी प्रशासन इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा।

Daya SagarDaya Sagar   5 Jan 2021 12:53 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo

वर्ष 2021 का पहला रविवार शीलावती देवी (44 वर्ष) पर मुसीबतों का पहाड़ बन कर आया। जनवरी की सर्द दोपहर में ठंडे पानी में खड़े होकर वह अपने खेत में लगे पानी को थालियों के सहारे निकालने की कोशिश कर रही थीं, जो कि पास में ही नहर टूटने के कारण उनकी खेत में भर गया था।

शीलावती देवी को थोड़ी भी उम्मीद नहीं है कि उनके इस प्रयास से उनकी गेहूं की फसल बच पायेगी फिर भी वह प्रयास कर रही हैं, क्योंकि इसके अलावा उनके पास कोई चारा नहीं है। पूछने पर कहती हैं, "फसल में पानी लगा है, तो देखा भी नहीं जा रहा। इसलिए अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं। इससे पहले नहर टूटने के कारण हमारी धान की फसल भी बर्बाद हो गई थी। लॉकडाउन के दौरान मजदूर पति को काम भी कम मिला है। बताइए अब हम लोग साल भर क्या खाएंगे?" शीलावती देवी अपना दर्द बयां करती हैं।

शीलावती देवी उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर के मैनसिर गांव की एक छोटी किसान हैं जिनके पास एक बीघा से भी कुछ कम (13 पाई) खेत है। वह इस खेत में रबी और खरीफ के सीजन में क्रमशः धान और गेहूं का फसल लगाती हैं, ताकि साल भर के लिए घर में खाने के लिए पर्याप्त आटा और चावल हो। बाकी तेल-सब्जी का इंतजाम उनके मजदूर पति दिहाड़ी मजदूरी करके कर लेते हैं। लेकिन पिछले दो-तीन सालों में शीलावती देवी को आटे और चावल के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है क्योंकि हर साल हर सीजन में खेत के पास में बहने वाला सरयू नहर टूट जाता है और उनकी फसल बर्बाद हो जाती है।

खेत से पानी निकालती शीलावती देवी (फोटो- दया सागर)

यह दर्द सिर्फ शीलावती देवी ही नहीं बल्की उनके जैसे सैकड़ों किसान परिवारों का है, जिनका खेत उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर जिले के दक्षिणी क्षेत्र में सरयू नहर के किनारे स्थित है। उत्तर प्रदेश के बहराईच जिले से निकल कर पूर्वी उत्तर प्रदेश के नौ जिलों से होते हुए महाराजगंज जिले तक जाने वाला 9,211 किलोमीटर का यह नहर यूं तो किसानों के मदद के लिए बनाया गया था और कहा गया था कि इससे लगभग 14 लाख हेक्टेयर जमीन की सिंचाई होगी, लेकिन यह इन किसानों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है।

दो जनवरी, शनिवार को तड़के सुबह इस नहर की कच्ची मिट्टी की दीवार क्षेत्र के तामेश्वरनाथ पुलिस चौकी के पास से टूट गई और आस-पास के लगभग आधा दर्जन गांवों, जिसमें नौरंगिया, मंझरिया, भैंसा, मैनसिर, भेड़िया और गंगा देवरिया प्रमुख हैं, के खेतों में इसका पानी फैल गया।

पानी का बहाव इतना तेज और मात्रा इतनी अधिक थी कि अभी भी कई खेतों में 2 से 5 फीट तक पानी लगा हुआ है और अगले कुछ दिनों में यह पानी निकलने की उम्मीद भी नहीं है। कुल मिलाकर इस पूरे क्षेत्र में ठंड के महीने में बाढ़ जैसा तबाही का मंजर है। बड़ी बात यह है कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। यह हर साल हर सीजन में ठीक उसी जगह से टूटता है और किसानों का सैकड़ों एकड़ का फसल बर्बाद हो जाता है। लेकिन सरकारी लापरवाही में कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया गया। इस वजह से क्षेत्र के किसानों में निराशा और दुःख के साथ-साथ काफी रोष भी है।

यह कोई नदी या नहर नहीं बल्कि किसानों का खेत है, जिसमें अब टूटे हुए नहर का पानी फैल गया है। (फोटो- दया सागर)

खेतों में पानी लगने से किसानों की सैकड़ों एकड़ की फसल बर्बाद हो गई है, जिसमें प्रमुखतः गेहूं की फसल थी। इसके अलावा कई किसानों ने सरसों, मसूर, गन्ना और कुछ ने सब्जियां भी बोई थीं। वहीं कुछ किसानों ने मछली पालन के लिए तालाब में लाखों की मछलियां पाली थीं, वह मछलियां भी पानी के बहाव में बह गई हैं।

गंगा देवरिया गांव के दीपक कुमार ने 10 बीघे (लगभग 6 एकड़) की जमीन पर 1.5 लाख रुपए का लोन लेकर मछली पालन किया था। इसके अलावा 50 हजार रुपए से अधिक की पूंजी घर से लगाई थी। उन्होंने बताय, "अभी तालाब में अधिकतर छोटी ही मछलियां ही थी, जो सब इस तबाही में बह गई। उम्मीद थी कि दो लाख रूपये की लागत लगाकर 5 लाख रूपये तक कमाएंगे, अब समझ नहीं आ रहा है कि लोन कैसे चुकता करेंगे।" दीपक के पथराई आंखों में आंसू थे, जिससे वह बार-बार अपने तालाब को देख रहे थे।

मैनसिर गांव के मनीष पाल ने भी 20 बीघे (लगभग 12 एकड़) की जमीन को पट्टे पर लेकर मछली पालन किया था, लेकिन उनकी भी मछलियां नहर के बहाव में बह गईं और उन्हें भी लगभग 5 लाख रुपए तक का नुकसान हुआ है। मनीष ने बताया कि उनका ना सिर्फ मछली पालन में बल्की खेतों में भी नुकसान हुआ है और उनके इलाके के सैकड़ों किसान इससे प्रभावित हैं।

पानी में बचे मछलियों को जाल लगाकर पकड़ने की कोशिश करते ग्रामीण (फोटो- दया सागर)

ऐसे ही एक किसान बुद्धिराम (54 वर्ष) बताते हैं, "ना आलू बचा है, ना लहसुन बचा है और ना ही गेहूं बचा है। सब खत्म हो गया। पिछले चार सालों से हर बार ऐसा हो रहा है, लेकिन सरकार-अधिकारी कोई भी कुछ ध्यान नहीं दे रहा।"

इस क्षेत्र में अधिकतर किसान निचली जाति के मझोले और छोटे किसान हैं, जो आधे से 10 बीघे तक के खेत में अपनी खेती करते हैं। कई खेतिहर मजदूर भी हैं, जो बड़े किसानों की जमीन लेकर खेती करते हैं और फसल होने पर आधी फसल जमीन मालिक को जमीन के किराये के रूप में देते हैं। खेतिहर मजदूरी की इस परंपरा को इस क्षेत्र में 'अधिया' कहा जाता है।

बुद्धिराम गेहूं-धान की पारंपरिक फसल के साथ अपने 8 बीघा (5 एकड़) के खेत में आलू, टमाटर, प्याज, लहसुन जैसी सब्जियां भी उगाते हैं और पास के ही बाजार में बेचकर अपना घर चलाते हैं। गांव कनेक्शन की टीम जब उनके गांव नौरंगिया पहुंची तो वह भी शीलावती देवी की ही तरह अपनी 'मेहनत का कुछ बचाने' की जुगत में लगे हुए थे और नहर के पानी से लबालब भरे हुए खेत से बचे हुए आलू और टमाटर को निकाल रहे थे।

बुद्धिराम बताते हैं, "जहां तीन से चार कुंतल आलू होने की उम्मीद थी, वहां अब सिर्फ तीन-चार किलो आलू बचा है, बाकी सब बर्बाद हो गया। सरकार से कुछ मुआवजा भी मिलने की उम्मीद नहीं है, क्योंकि आज तक कभी मिला नहीं। जबकि 8 बीघा जमीन पर गेहूं और सब्जियों को बोने में लगभग 50 हजार रुपए तक खर्च हो चुका था। सरकार अगर कुछ मुआवजा देती है और नहर जहां से हर बार टूटती है, उसे पक्का कर देती है, तभी हम लोगों को कुछ राहत मिलेगा। नहीं तो 55 साल के इस उम्र में भी हमें दिहाड़ी मजदूरी करने के लिए मजबूर होना होगा, क्योंकि परिवार तो चलाना ही है।"

परिवार के एक सदस्य के साथ अपने सब्जी के खेत में बचा हुआ फसल निकालते बुद्धिराम (फोटो- दया सागर)

कलावती देवी (62 वर्ष) ने दो बीघे की जमीन एक बड़े काश्तकार से अधिया पर लिया था और अपने परिवार के साथ मिलकर गेहूं, सरसों और मसूर दाल की बुवाई की थी, लेकिन वह भी पानी में बह गया। वह कहती हैं, "हम तो खेत के मेड़ पर बैठकर रो भी नहीं सकते, वहां भी पानी लगा हुआ है। दो दिन पहले गेहूं खेत में गेहूं छींटकर आई थी, मसूर भी अच्छा होने लगा था। लेकिन अब सब डूबा हुआ है।"

कलावती देवी के बगल में खड़ी बोदामा और दुर्गावती देवी भी कुछ ऐसी ही बातें कर रही थीं। बोदामा देवी ने बताया कि उनके घर में 14 लोग है। घर के पुरुष खेती के अलावा गारा-माटी की मजदूरी करते हैं या फिर दिल्ली, पंजाब बाहर जाकर कमाई करते हैं। लॉकडाउन में पहले से सब कुछ ठप है और इस मुसीबत ने हमारी मुसीबतों को और बढ़ा दिया है। इन तीनों औरतों ने बताया कि अगर सरकार अन्त्योदय योजना के तहत राशन नहीं देती तो लॉकडाउन के समय उनके परिवार के सामने भूखमरी की स्थिति आ जाती। अभी भी फसलों के नुकसान हो जाने के बाद उनकी आखिरी उम्मीद अन्त्योदय योजना ही है, ताकि उनका परिवार कम से कम गुजर-बसर तो कर सके।

कलावती देवी, बोदामा देवी और दुर्गावती देवी। इनको उम्मीद है कि सरकार की तरफ से इन्हें कुछ मुआवजा मिलेगा। (फोटो- दया सागर)

हालांकि क्षेत्र के बड़े किसानों के पास इसको लेकर अपनी ही मुसीबतें हैं। उनका कहना है कि अधिक जमीन होने के कारण वे लोग गरीबी रेखा के नीचे नहीं आते और उनको अन्तोयदय योजना का भी लाभ नहीं मिलता। पन्ना पाल (68 वर्ष) इस क्षेत्र के सबसे बड़े किसानों में से एक हैं, जिनके पास लगभग 15 बीघा (9 एकड़) जमीन है। उन्होंने बताया कि पहले गेहूं और फिर धान खराब होने के बाद उन्हें अपनी 5 बीघा (3 एकड़) जमीन बेचना पड़ा, ताकि वे अपने परिवार का गुजरा कर सकें।

एक अन्य किसान राजेश पाल (48 वर्ष) बताते हैं कि मानव निर्मित आपदा कि वजह से उन्हें फसल बीमा योजना का भी लाभ नहीं मिल पाता। पानी में डूब चूकी अपनी खेतों को दिखाते हुए वह कहते हैं, "मेरा 5580 रुपया फसल बीमा का प्रीमियम कटता है। लेकिन जब धान की फसल बर्बाद हुई तब बीमा कंपनी के एजेंट ने कहा कि चूंकि पानी का नुकसान है, इसलिए उसका क्लेम नहीं मिलेगा। खैर, चाहे बीमा कंपनी क्लेम दे या फिर सरकार मुआवजा यह कोई हल नहीं है। हम कई साल से नहर पर पक्के निर्माण की मांग कर रहे हैं, जो कि स्थायी समाधान है। सरकार और अधिकारियों को स्थायी समाधान पर ध्यान देना चाहिए।"

पन्ना पाल ने बताया कि बशर्ते हर सीजन में यह नहर टूट जाती है और उन्होंने इसको लेकर जिले के जनप्रतिनिधियों से लेकर सभी अधिकारियों तक दरख्वास्त दिया है, लेकिन कभी भी कोई गंभीर सुनवाई नहीं हुई। वह कहते हैं कि पिछले साल वे अपने कुछ किसान साथियों के साथ जिलाधिकारी के नाम एक मांग व ज्ञापन पत्र लेकर कलेक्ट्रेट ऑफिस गए थे, जहां डीएम की अनुपस्थिति में उन्होंने एसडीएम को पत्र देना चाहा, लेकिन एसडीएम ने यह कहकर चिट्ठी लेने से इनकार कर दिया कि वह पत्र डीएम के नाम पर था।

राम नाथ, जिनके पोल्ट्री फॉर्म में रखा लगभग 10 हजार रूपये का मुर्गियों का दाना और चारा बर्बाद हो गया। (फोटो- दया सागर)

इस संबंध में गांव कनेक्शन ने सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता विजय कुमार से बात की। उन्होंने कहा कि सिंचाई विभाग की टीम इलाके का सर्वे कर रही है कि कितने किसान परिवारों का कितने फसल का नुकसान हुआ है। जल्द ही रिपोर्ट तैयार कर जिला प्रशासन को दिया जाएगा। बार-बार नहर टूटने के सवाल पर उन्होंने कहा कि नहर काफी पुरानी है, हम पता कर रहे हैं कि उस विशेष जगह पर ही नहर क्यों टूट रहा है। नहर में पानी कम होने पर उस विशेष जगह की पक्की मरम्मत करवाई जाएगी ताकि भविष्य में ऐसा ना हो।

जब गांव कनेक्शन ने इस संबंध में जिलाधिकारी दिव्या मित्तल से फोन पर बात की तो उन्होंने कहा कि यह गंभीर विषय है कि एक जगह से ही नहर बार-बार टूट रहा है और किसानों को हर सीजन में नुकसान उठाना पड़ रहा है। "मेरी इस जिले में नई ज्वाइनिंग है। मैं सिंचाई विभाग के पुराने रिकॉर्डों को मंगाकर पता करने की कोशिश करूंगी कि इसमें ठेकेदार, इंजीनियर या किसकी लापरवाही है, इस हिसाब से उनकी जिम्मेदारी तय की जाएगी।"

सरयू नहर परियोजना का नक्शा। 1980 में शुरू हुई यह परियोजना 40 साल में भी अभी तक पूरी नहीं हो पाई है और किसानों का फायदा पहुंचाने की बजाय नुकसान कर रही है। (फोटो सोर्स- केंद्रीय जल आयोग वेबसाइट)

किसानों के मुआवजे के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि चूंकि यह बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा नहीं है, इसलिए ऐसी आपदाओं के लिए कोई विशेष सरकारी प्रावधान नहीं है। फिर भी किसानों को उनके हुए नुकसान का मुआवाजा मिले और इसके लिए वह कोशिश करेंगी।

(रिपोर्टिंग सहयोग- अनुज त्रिपाठी)

ये भी पढ़ें- बाढ़ के बादः बाढ़ के पानी में बह रही मोकामा दाल किसानों की आस

कई राज्यों में आलू,चना समेत कई फसलों पर पाले का कहर, ये उपाय करके किसान बचा सकते हैं अपनी फसल


    

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.