लखीमपुर खीरी में 24 घंटे में 4 बच्चों की इंसेफेलाइटिस से मौत

गाँव कनेक्शन | Aug 18, 2017, 21:13 IST
लखीमपुर खीरी
प्रतीक श्रीवास्तव

लखीमपुर खीरी। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में बच्चों की मौत पर जहां हंगामा मचा है वहीं तराई के एक और जिले से बुरी ख़बर आई है। खीरी जिले में 24 घंटे में 4 बच्चों की मौत हो गई है। इन बच्चों की मौत बुखार से हुई है। जेई यानि जापानी इंसेफेलाइटिस एक्यूप इंसेफ्लोपैथी सिंड्रोम (एईएस) ने यहां भी स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन सकते में है।

17 अगस्त को 4 बच्चों की मौत की पुष्टि करते हुए जिला अस्पताल के सीएमएस ने कहा, “बच्चे दीमागी बुखार यानि इंसेफेलटिस से पीड़ित थे। उन्होंने कहा मष्तिक में स्वास संबंधी दिक्कत होती है, जिसमें रिकवरी बहुत मुश्किल हो जाती है।’ वो आगे बताते हैं, ‘इस बीमारी में समय पर इलाज मिलना बहुत जरूरी होता है लेकिन लोग झोलाछाप डॉक्टर इलाज और झाड़फूंक कराने लगते हैं, जिससे यहां तक पहुंचते-पहुंचते बहुत देर हो जाती है।



कल (17 अगस्त) को जिन बच्चों की मौत हुई उनकी हालत इतनी बिगड़ चुकी थी कि वेंटीलेटर पर पहुंचाने से पहले ही मौत हो गई।’ मृत बच्चों के नाम मस्तराम निवासी (ईशानगर), 9 साल की शिवा, रिंकी शत्रोहन और निहाल है। जिला अस्पताल के मुख्यचिकित्सा अधीक्षक ने माना कि अगस्त महीने में 5 बच्चों की मौत हुई है। लखीमपुर में 15 दिनों में 8 बच्चों की मौत हो चुकी है। यहां जिला अस्पताल के वार्ड में 8-10 बच्चे भर्ती हैं तो एक बच्चा आईसीयू में है।

रमियाबेहड के पंडितपुरवा में रहने वाले सुभ्रांत शुक्ला ने बताया, ‘मेरे यहां भी कई जगह बच्चों को बुखार की ख़बरें आ रही हैं। लोगों को बच कर रहने की जरूरत है। गोरखपुर हादसे के बाद लोग थोड़ा सहमे हैं।’

लखीमपुर खीरी बाढ़ ग्रस्त इलाका है और ये जलजनित रोग है। उत्तर प्रदेश के संचारी निदेशक वेक्टर जनित रोग, डॉ. बद्रीविशाल बताते हैं, ‘ये बीमारी गंदा पानी पीने से होती है, इससे बचाव के लिए साफ पानी पीने की जरूरत है। बाढ़ प्रभावित इलाके के लोगों को चाहिए कि वो पानी गर्म कर पीएं और आसपास मच्छरों को पनपने न दें।’

बीमारी के लक्षण- उल्टी आना, तेज बुखार, शरीर अकड़ना, लगातार नाक का बहना संबंधित बीमारी के लक्षण हो सकते हैं।

जलजनित बीमारियों से ऐसे करें बचाव

एंट्रोवायरल से बचने के लिए डॉ आरएन सिंह (चीफ कैम्पेनर इंसेफेलाइटिस उन्मूलन अभियान, गोरखपुर) ने एक प्रोजेक्ट तैयार किया है, जिसे होलिया मॉडल का नाम दिया है। डॉ सिंह बताते हैं, “इसके लिए प्लास्टिक की बोतलों में पानी को भरकर बंद कर देते हैं। इस बोतलों को तीन की चादरों पर या काले रंग में रंगे पक्के छत पर छह घंटे तक सूरज की रोशनी में रख देंते हैं। अब यह पानी सुरक्षित हो जाता है। इस जल से जल जनित इंसेफेलाइटिस और कई जलजनित रोंगों से बचा जा सकता है।

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