भाइयों ने दिए अपनी बहनों को मिट्टी के घड़े, पैड निस्तारण करना हो गया है आसान
Neetu Singh | Apr 10, 2017, 13:36 IST
लखनऊ। माहवारी के दौरान इस्तेमाल हुए सेनेटरी पैड या कपड़े खुले में फेंकने से पर्यावरण प्रदूषित तो होता ही है, साथ ही कई तरह की बीमारियां भी फैलतीं हैं। अगर महिलाएं-किशोरी मटका, इन्सीनरेटर या गड्ढा खोदकर कपड़े का निस्तारण करें तो कई बीमारियों से बचा जा सकता है।
लखनऊ जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर बख्शी का तालाब ब्लॉक की सीवां ग्राम पंचायत की माधुरी देवी (40 वर्ष) का कहना है, "कपड़े खेत में नहीं फेंकेंगे तो कहां फेंकेंगे, हमारे गाँव में कूड़े वाली गाड़ी तो आती नहीं है। कपड़े फेंकने की वजह से कई बार लड़ाई होती है। हमारी मजबूरी है खुले में नहीं फेंकेंगे तो कहां फेंकेंगे।"
माधुरी देवी की तरह देश की लगभग 35 करोड़ महिलाओं को माहवारी होती है, जिसमें सिर्फ 12 फीसदी तक ही सेनेटरी पैड उपलब्ध हैं। अगर इस दिशा में सरकार कोई पहल करे तो ग्रामीण महिलाएं कई बीमारियों से बच सकती हैं।
अनुसंधान क्षेत्र से जुड़े संगठन एसी नेल्सन और गैर सरकारी संस्था प्लान इंडिया के आंकड़े भारत के लिए शर्मनाक हैं, यहां 83 फीसदी महिलाओं के पास सुरक्षित साधन नहीं है। जहां सिंगापुर और जापान में 100 फीसदी, इंडोनेशिया में 88 फीसदी और चीन में 64 फीसदी को सुरक्षित साधन उपलब्ध हैं। वहीं भारत में केवल 12 फीसदी महिलाएं ही महावारी के दौरान साफ-सुथरे नैपकीन का इस्तेमाल करने में सक्षम हैं। वनस्पति वैज्ञानिक दीपक आचार्य बताते हैं, "माहवारी के दौरान इस्तेमाल किए गए कपड़े या पैड खुले में फेंकने से कई तरह की बीमारियां मच्छर-मक्खियों और पैरों के द्वारा हमारे घर तक पहुंचती हैं, जिससे बच्चों और महिलाएं को कई तरह की बीमारियां हो जाती हैं।"
वो आगे बताते हैं, "गड्ढा खोदकर कपड़े का निस्तारण ही सही तरीका है। इससे पर्यावरण भी प्रदूषित नहीं होगा और कई तरीकों की बीमारियों से भी निजात मिलेगी।" लखनऊ के माल ब्लॉक के पारा गाँव में रहने वाली विनीता देवी (19 वर्ष) ने बताया, "खुले में कपड़े फेंकने से कोई बीमारी भी होती है इसकी हमे जानकारी नहीं थी, लेकिन जब वात्सल्य संस्था के द्वारा हमें बताया गया कि शौचालय के बगल में ही छोटा सा इन्सीनरेटर (कपड़े निस्तारण की जगह) बना दिया जाए, जिसमें ज्यादा लागत नहीं आती है। हमने अपने घर में ईंट, सीमेंट, सरिया और मिट्टी का उपयोग करके छोटा सा इन्सीनरेटर बनाया।"
विनीता आगे बताती हैं, "अब हमें पैड फेंकने के लिए कहीं भटकना नहीं पड़ता हैं, इसी में डाल देते हैं।" विनीता देवी माल ब्लॉक की पहली लड़की नहीं हैं जिन्होंने अपने घर में माहवारी के कपड़ों के निस्तारण के लिए ये इन्सीनरेटर बनाया हो बल्कि गोविन्द खेड़ा, मसीरा रतन, मसीरा हमीर, पारा गाँव की 32 किशोरियों ने अपने घर में बने शौंचालयों में इन्सीनरेटर बना लिया है।
महिलाएं घर के आस-पास गड्ढा खोदकर भी कपड़े का निस्तारण कर सकती हैं। गड्ढे के ऊपर डलिया से ढंककर ईंटें रख दें, जब ये गड्ढा भर जाए इसे बंद कर दें। इसके बगल में दूसरा गड्ढा खोदकर इस्तेमाल करने लगे। पहले गड्ढे में डाले गये कपड़े तीन महीने में खाद बन जाती है, जिसे खेत में खाद के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।
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लखनऊ जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर बख्शी का तालाब ब्लॉक की सीवां ग्राम पंचायत की माधुरी देवी (40 वर्ष) का कहना है, "कपड़े खेत में नहीं फेंकेंगे तो कहां फेंकेंगे, हमारे गाँव में कूड़े वाली गाड़ी तो आती नहीं है। कपड़े फेंकने की वजह से कई बार लड़ाई होती है। हमारी मजबूरी है खुले में नहीं फेंकेंगे तो कहां फेंकेंगे।"
माधुरी देवी की तरह देश की लगभग 35 करोड़ महिलाओं को माहवारी होती है, जिसमें सिर्फ 12 फीसदी तक ही सेनेटरी पैड उपलब्ध हैं। अगर इस दिशा में सरकार कोई पहल करे तो ग्रामीण महिलाएं कई बीमारियों से बच सकती हैं।
अनुसंधान क्षेत्र से जुड़े संगठन एसी नेल्सन और गैर सरकारी संस्था प्लान इंडिया के आंकड़े भारत के लिए शर्मनाक हैं, यहां 83 फीसदी महिलाओं के पास सुरक्षित साधन नहीं है। जहां सिंगापुर और जापान में 100 फीसदी, इंडोनेशिया में 88 फीसदी और चीन में 64 फीसदी को सुरक्षित साधन उपलब्ध हैं। वहीं भारत में केवल 12 फीसदी महिलाएं ही महावारी के दौरान साफ-सुथरे नैपकीन का इस्तेमाल करने में सक्षम हैं। वनस्पति वैज्ञानिक दीपक आचार्य बताते हैं, "माहवारी के दौरान इस्तेमाल किए गए कपड़े या पैड खुले में फेंकने से कई तरह की बीमारियां मच्छर-मक्खियों और पैरों के द्वारा हमारे घर तक पहुंचती हैं, जिससे बच्चों और महिलाएं को कई तरह की बीमारियां हो जाती हैं।"
वो आगे बताते हैं, "गड्ढा खोदकर कपड़े का निस्तारण ही सही तरीका है। इससे पर्यावरण भी प्रदूषित नहीं होगा और कई तरीकों की बीमारियों से भी निजात मिलेगी।" लखनऊ के माल ब्लॉक के पारा गाँव में रहने वाली विनीता देवी (19 वर्ष) ने बताया, "खुले में कपड़े फेंकने से कोई बीमारी भी होती है इसकी हमे जानकारी नहीं थी, लेकिन जब वात्सल्य संस्था के द्वारा हमें बताया गया कि शौचालय के बगल में ही छोटा सा इन्सीनरेटर (कपड़े निस्तारण की जगह) बना दिया जाए, जिसमें ज्यादा लागत नहीं आती है। हमने अपने घर में ईंट, सीमेंट, सरिया और मिट्टी का उपयोग करके छोटा सा इन्सीनरेटर बनाया।"
विनीता आगे बताती हैं, "अब हमें पैड फेंकने के लिए कहीं भटकना नहीं पड़ता हैं, इसी में डाल देते हैं।" विनीता देवी माल ब्लॉक की पहली लड़की नहीं हैं जिन्होंने अपने घर में माहवारी के कपड़ों के निस्तारण के लिए ये इन्सीनरेटर बनाया हो बल्कि गोविन्द खेड़ा, मसीरा रतन, मसीरा हमीर, पारा गाँव की 32 किशोरियों ने अपने घर में बने शौंचालयों में इन्सीनरेटर बना लिया है।
क्या है किशोरी मटका और इन्सीनरेटर व कैसे करें उपयोग
- मिट्टी का मटका बनाकर महिलाएं अपने घरों में रख लें, इसमें माहवारी के दौरान कपड़े या पैड को इस्तेमाल करने के बाद रख दें। मटके के अंदर नीम का पत्ता रखा जाता है जो कीटाणु नाशक का काम करता है। एक-दो महीने बाद मटके में आग लगा दें, जिससे कपड़ा और पैड जल जाए। राख को खेतों में डाल दें दोबारा फिर से खाली मटके का इस्तेमाल शुरू कर सकते हैं।
- इन्सीनरेटर शौचालय से जुड़ा हुआ अंगीठी नुमा सीमेंट, सरिया, ईंट से बनाया जाता है। इसमें कपड़ा डाल दिया जाता है और तीन चार महीने बाद कुछ ईंधन इकठ्ठा करके इसमें डाल कर जला दें, इसमें ऊपर एक पाइप लगा दिया जाता है, जिससे धुआं बहार निकल सके। इन्सीनरेटर को बनाने में पांच सौ का खर्चा आता है।
इस तरह भी किया जा सकता है निस्तारण
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