स्कूली वाहनों के चालकों की मनमर्जी से अभिभावक और बच्चे परेशान
गाँव कनेक्शन | Feb 06, 2017, 18:52 IST
स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
लखनऊ। स्कूली वाहनों को चलाने वाले चालकों की मनमर्जी से भी अभिवावक और बच्चे परेशान हैं। कई ड्राइवर तो बच्चों को सड़क में ही छोड़ देते हैं जबकि नियमत: बच्चों को घर तक छोड़ा जाना चाहिए।
आरएलबी स्कूल विकास नगर ब्रांच में कक्षा 10 में पढ़ने वाला कलश बताता है, “वैन ड्राइवर की मनमर्जी के अनुसार ही हम लोगों को चलना होता है। मेरी गली में जहां स्कार्पियो तक आ जाती है वहां ड्राइवर वैन लेकर नहीं आता और किराया देने के बावजूद सड़क पर उतार देता है। मुझे घर पहुंचने के लिए करीब आधा किमी तक पैदल चलकर आना पड़ता है। ड्राइवर से कई बार मेरी माँ ने इस बात की शिकायत की पर कोई सुनवाई नहीं हुई। चूंकि वाहन स्कूल की ओर से नहीं उपलब्ध करवाया गया है, कई बच्चों ने मिलकर प्राइवेट तौर पर किया है तो इसकी शिकायत स्कूल में कर भी नहीं सकते।”
प्रवीण मणि त्रिपाठी, बेसिक शिक्षा अधिकारी, लखनऊ
अधिकतर स्कूलों के अनुसार बच्चों को लाने-ले जाने के लिए यातायात सुविधा स्कूल की ओर से मुहैया नहीं करवाई जा रही है। लेकिन इसके बावजूद दर्जनों की संख्या में वैन स्कूलों के आसपास दिखती हैं। स्कूल प्रबंधन इन वैन को अपना कहने से इंकार करते हैं लेकिन इसके बावजूद इन वैन पर नामी स्कूलों के नाम छपे हुए हैं।
सेंट क्लेअर्स स्कूल में कक्षा 10 में पढ़ने वाली जबेरिया की माँ बताती हैं, “हम पति-पत्नी दोनों ही नौकरी करने जाते हैं। स्कूल काफी दूर है, इसलिए वैन लगवाना मजबूरी है। वैन ड्राइवर्स नियमों को ताख पर रख कर दस और इससे भी अधिक बच्चों को एक वैन में बैठाते हैं। स्कूल खुलने से कई घंटे पहले और बंद होने के कई घंटे बाद बच्चों को घर पहुंचाते हैं। आरटीओ के डर से कई बार बच्चों को वैन में बिठा कर अलग-अलग रास्तों का सहारा लिया जाता है जिससे गाड़ी की चेकिंग न हो।”
अभिभावक कल्याण संघ के अध्यक्ष प्रदीप श्रीवास्तव कहते हैं “स्कूल वैन-बस ड्राइवरों की शिकायत अक्सर अभिभावक करते रहते हैं। लेकिन जब स्कूल में शिकायत करों तो स्कूल प्रशासन सुनता नहीं है। अधिकतर स्कूल कह देते हैं कि मुझसे कोई लेना-देना नहीं है। जब भी इस बारे में शिकायत आयी है संघ की ओर यातायात पुलिस को पत्र लिखा गया है।” सेंट जोसेफ स्कूल के निदेशक अनिल अग्रवाल कहते हैं “मेरे स्कूलों में कई स्कूल वैन चलती हैं। मैंने उनकी जिम्मेदारी एक व्यक्ति को निर्धारित कर दी है लेकिन उसकी मॉनीटिरिंग हम लोग खुद करते हैं।
वैन-बस के आगे और पीछे स्कूल बस लिखा होना जरूरी है। स्पीड 40 से अधिक नहीं होनी चाहिये। वैन-बस पर स्कूल का नाम और फोन नम्बर लिखा होना चाहिये। किराये वाली वैन-बस पर ऑन स्कूल ड्यूटी लिखा होना चाहिये। वैन-बस का रंग पीला होना चाहिये। बस में ड्राइवर के अलावा बच्चों की देखरेख करने वाली अटेंन्डेंट होना चाहिये। वैन-बस में फर्स्ट एड बॉक्स व आग बुझाने के उपकरण होने चाहिये।
बीते साल 25 जुलाई को मानव रहित क्रॉसिंग पर स्कूली वैन की ट्रेन से टक्कर हो गई थी। इसमें आठ बच्चों की मौत हो गई थी। हादसे के बाद डीजीपी आफिस की ओर से प्रदेश भर के यातायात एसपी को इस बाबत निर्देश जारी किये गये थे कि वे ड्राइवरों के बारे में जानकारी करें। स्कूल बस चलाने वाले ड्राइवरों का चरित्र जांच और मेडिकल टेस्ट हो, मगर ऐसा नहीं हुआ।
This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).
लखनऊ। स्कूली वाहनों को चलाने वाले चालकों की मनमर्जी से भी अभिवावक और बच्चे परेशान हैं। कई ड्राइवर तो बच्चों को सड़क में ही छोड़ देते हैं जबकि नियमत: बच्चों को घर तक छोड़ा जाना चाहिए।
आरएलबी स्कूल विकास नगर ब्रांच में कक्षा 10 में पढ़ने वाला कलश बताता है, “वैन ड्राइवर की मनमर्जी के अनुसार ही हम लोगों को चलना होता है। मेरी गली में जहां स्कार्पियो तक आ जाती है वहां ड्राइवर वैन लेकर नहीं आता और किराया देने के बावजूद सड़क पर उतार देता है। मुझे घर पहुंचने के लिए करीब आधा किमी तक पैदल चलकर आना पड़ता है। ड्राइवर से कई बार मेरी माँ ने इस बात की शिकायत की पर कोई सुनवाई नहीं हुई। चूंकि वाहन स्कूल की ओर से नहीं उपलब्ध करवाया गया है, कई बच्चों ने मिलकर प्राइवेट तौर पर किया है तो इसकी शिकायत स्कूल में कर भी नहीं सकते।”
शिक्षा विभाग का यातायात या वाहनों से सम्बन्धित किसी भी चीज के लिए किसी तरह का कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाता है। यह बेसिक शिक्षा विभाग के कार्यक्षेत्र में नहीं आता है। वाहनों और यातायात की जिम्मेदारी यातायात पुलिस की है इसलिए उनको इस पर रोक लगानी होगी और उचित व्यवस्था करनी होगी।
अधिकतर स्कूलों के अनुसार बच्चों को लाने-ले जाने के लिए यातायात सुविधा स्कूल की ओर से मुहैया नहीं करवाई जा रही है। लेकिन इसके बावजूद दर्जनों की संख्या में वैन स्कूलों के आसपास दिखती हैं। स्कूल प्रबंधन इन वैन को अपना कहने से इंकार करते हैं लेकिन इसके बावजूद इन वैन पर नामी स्कूलों के नाम छपे हुए हैं।
सेंट क्लेअर्स स्कूल में कक्षा 10 में पढ़ने वाली जबेरिया की माँ बताती हैं, “हम पति-पत्नी दोनों ही नौकरी करने जाते हैं। स्कूल काफी दूर है, इसलिए वैन लगवाना मजबूरी है। वैन ड्राइवर्स नियमों को ताख पर रख कर दस और इससे भी अधिक बच्चों को एक वैन में बैठाते हैं। स्कूल खुलने से कई घंटे पहले और बंद होने के कई घंटे बाद बच्चों को घर पहुंचाते हैं। आरटीओ के डर से कई बार बच्चों को वैन में बिठा कर अलग-अलग रास्तों का सहारा लिया जाता है जिससे गाड़ी की चेकिंग न हो।”
अभिभावक कल्याण संघ के अध्यक्ष प्रदीप श्रीवास्तव कहते हैं “स्कूल वैन-बस ड्राइवरों की शिकायत अक्सर अभिभावक करते रहते हैं। लेकिन जब स्कूल में शिकायत करों तो स्कूल प्रशासन सुनता नहीं है। अधिकतर स्कूल कह देते हैं कि मुझसे कोई लेना-देना नहीं है। जब भी इस बारे में शिकायत आयी है संघ की ओर यातायात पुलिस को पत्र लिखा गया है।” सेंट जोसेफ स्कूल के निदेशक अनिल अग्रवाल कहते हैं “मेरे स्कूलों में कई स्कूल वैन चलती हैं। मैंने उनकी जिम्मेदारी एक व्यक्ति को निर्धारित कर दी है लेकिन उसकी मॉनीटिरिंग हम लोग खुद करते हैं।
क्या हैं नियम
डीजीपी के आदेश भी बेअसर
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