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घर के लिये महिलाएं ठुकराती हैं प्रमोशन, पुरुष ऐसा करेंगे?

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विज्ञान और प्रौद्योगिकी का सबसे बड़ा सम्मेलन मैसूर में हुआ। यह 103वां सबसे बड़ा वैज्ञानिकों का सम्मेलन हैं। क्या आप जानते है कि 102 साल से किसी न किसी शहर में देश के प्रमुख वैज्ञानिक और शोधकर्ता मिलकर विज्ञान के बारे में चर्चा करने, विज्ञान को बढ़ावा देने और यह तय करने कि नये वैज्ञानिक शोध और आविश्कार से देश की और अधिक तरक्की कैसे हो सकती है?

पांच दिन तक चलने वाले इस समारोह का आरम्भ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा होना था। जब मैं शताब्दी से दो घण्टे का सफर करके मैसूर पहुंची, तब आकाशवाणी की टीम मुझे मैसूर विश्वविद्यालय के उस ओपेन एयर थियेटर में ले गई, जहां अगले दिन विज्ञान कांग्रेस का सम्मेलन होना था।

10,000 की क्षमता वाले उस थियेटर में अपनी जगह देखी, जहां से मंच पर होने वाली गतिविधियों को स्पष्ट रूप से देखकर अपने सुनने वालों को बता सकूं, कहां माइक, रिकॉर्डर और अन्य रेडियो के उपकरण लगाएं, कहां से केबिल खींचे साथ ही सुरक्षाकर्मी हमें कहां से अन्दर जाने देंगे। हम और आप जब क्रिकेट या रिपब्लिक डे के कार्यक्रम का आंखों देखा हाल सुनते है, उसके पीछे काफी मेहनत लगती है।

मैंने अपनी तरफ से पूरा होमवर्क किया जो एक पत्रकार या एंकर के लिए जरूरी है। खासकर, सीधे प्रसारण में जिसमें गलती बहुत महंगी पड़ सकती है।

अगले दिन निश्चित समय पर प्रधानमंत्री मंच पर पहुचें और कार्यक्रम आरम्भ हुआ। देष- विदेश से आए गणमान्य अतिथियों जिनमें प्रमुख वैज्ञानिक और विदेश से आए नोबेल पुरस्कार विजेता थे, सभी ने 20,000 लोगों को सम्बोधित किया। एक जगह पर इतने सारे वैज्ञानिकों को मैंने पहले कभी नही देखा था।

मुझे जो अच्छा लगा वह था महिला वैज्ञानिकों का सत्र। महिला विज्ञान कांग्रेस का उद्घाटन करने के बाद मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा, ’’विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं को लेकर आज भी पूर्वाग्रह है। अनेक भेदभाव जिनके कारण लड़कियां उच्च शिक्षा नही ले पाती और विवाह-घर परिवार के बीच उनका भविष्य और करियर दबकर रह जाता है। समाज कैसे इसको सही कर सकता है, जो महिलाएं विज्ञान के क्षेत्र में काम करने आती है, उनका हौसला बढ़ाएं और हाथ बटाएं।’’

सत्र के लंच ब्रेक के दौरान मेरे सामने लखनऊ की एक महिला वैज्ञानिक बैठी थी जिन्होंने मलेरिया- फाइलेरिया जैसी बहुत सी बीमारियों के इलाज पर शोध किया है। तथा जिन्होंने अपनी मेहनत और हुनर के बल पर आज अपनी संस्था को दूसरे स्थान पर पहुंचा दिया है। हंसते हुए उन्होंने मुझसे कहा, ’’डायरेक्टर बनने का मौका मिला पर मेरी बेटी 11वीं कक्षा में पढ़ रही है। अगर मैं निदेषक बन जाती, रूतबा तो बहुत होता लेकिन वक्त भी ज्यादा देना पडे़गा और अक्सर टूर पर जाना ये सब करते हुए घर पर ध्यान देना काफी मुश्किल है। यही सोचकर मना कर दिया।’’

क्या कोई पुरुष वैज्ञानिक अपनी नौकरी में प्रमोशन को कभी न कहेगा? सिर्फ अपनी 11वीं कक्षा में पढ़ती हुई बच्ची की वजह से?

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