मनरेगा में मजदूरी करने को मजबूर प्रांतीय रक्षक दल के जवान

गाँव कनेक्शन | Sep 16, 2016, 16:27 IST
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मलिहाबाद (लखनऊ)। थाने से लेकर सरकारी दफ्तरों और चौराहों की रक्षा एवं सुरक्षा में तत्पर रहने वाले पीआरडी (प्रांतीय रक्षक दल) जवान तंगहाली भरा जीवन काटने को मजबूर हैं। कई जवानों की आर्थिक स्थिति तो इतनी बद्तर हो चुकी है कि वो मनरेगा में मजदूरी करने को मजबूर हैं।

प्रदेश में इस समय 24119 पीआरडी जवान हैं। पीआरडी विभाग का गठन प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री पं. गोविन्द वल्लभ पन्त ने अपने कार्यकाल में विधानसभा और विधान परिषद में प्रस्ताव पारित करा वर्ष 1948 में किया था। तत्कालीन गृह सचिव आर दयाल ने शासनादेश संख्या 6588 जेड(1)-8-1060-वी-1947 के तहत इस विभाग को सुरक्षा, मुकदमों की विवेचना, सेक्शन 8 और 9 आईपीसी सहित अनेक अधिकार देकर इसे लागू करने की सूचना जारी की थी।

इस विभाग में सेना की भांति प्लाटून बनाये गये थे। विभाग का निदेशालय अलग से स्थापित होकर जिला और विकास खण्ड स्तर पर अधिकारियों की तैनाती की गई थी। इसमें स्वयंसेवकों, जवानों की भर्ती के साथ टोलीनायक, दलपति, हलका सरकार व ब्लाक कमाण्डर की अवैतनिक भर्ती हुई थी।

पीआरडी जवानों की ड्यूटी थाना स्तर पर लगाई जाती थी और ड्यूटी के बदले भत्ते मिलते थे। उस वक्त पीआरडी को पुलिस की बी टीम माना जाता था। अंग्रेजी शासन के समय की रायफलें और रिवाल्वरें पुलिस के साथ पीआरडी के जवानों को भी उपलब्ध कराई गई थीं लेकिन वर्तमान में ये राइफलें और अस्त्र पुलिस लाइन के शस्त्रागार मे रखी जंग खा रही हैं और ड्यूटी न मिलने से परेशान जवान दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं।

मलिहाबाद निवासी पीआरडी के जवान विजय प्रताप भदेसरमऊ गाँव में मनरेगा के तहत मजदूरी करते हैं। वो बताते हैं, "हमें तो वर्दी तक का भत्ता नहीं मिलता। ड्यूटी स्थलों की संख्या में निरन्तर कमी आ रही है। ड्यूटी के अभाव में इस विभाग के जवान कहीं मनरेगा योजना में मजदूरी या शहरों की तरफ पलायन कर परिवार का भरण भोषण करने के लिए मजदूरी करने को मजबूर हैं।"

बाद में बना था पीएसी बल

इस विभाग के गठन के बाद पीएसी बल की स्थापना हुई थी। इसी दौरान वर्ष 1962 में होमगार्ड विभाग का सरकार ने गठन करते हुए उसे इसी विभाग के साथ जोड़कर 29 अक्टूबर 1971 तक पीआरडी जवानों की भांति होमगार्डों से सुरक्षा का कार्य लिया गया। वर्ष 1973 में इस विभाग का पतन तब शुरू हुआ जब पीआरडी के साथ युवा कल्याण विभाग जोड़ दिया गया।

पीआरडी के अधिकारियों व कर्मचारियों को अपने मूल विभाग के साथ युवा कल्याण विभाग का दायित्व भी संभालना पड़ा। पीआरडी जवान दिनेश कुमार बताते हैं, "हमें ड्यूटी पाने के लिए महीनों अधिकारियों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। विभाग ने ड्यूटी भत्ते की धनराशि पहले से घटाकर करीब 10 प्रतिशत कर दी है। इसलिए विभाग से ड्यूटियां नहीं लग पा रही हैं।" पीआरडी जवानों का भत्ता सुरक्षा लेने वाला प्रतिष्ठान करता है जबकि होमगार्ड के लिए अलग से भत्ता जारी होता है।

मैं प्रशिक्षित जवानों को ड्यूटी पर लगाने के लिए विभिन्न विभागों से सम्पर्क बनाने का प्रयास कर रहे हैं। सरकार द्वारा ड्यूटी मद में बहुत ही न्यूनतम बजट दिया जा रहा है, जिससे सभी जवानों को ड्यूटी दिया जाना संभव नहीं है।

सीपी सिंह, जिला पीआरडी अधिकारी

बीते वर्ष भी जवानों के भत्तों की मद में आठ करोड़ रुपए की धनराशि जारी की गई थी, इस बार भी इतनी ही धनराशि जारी की गई है। ऐसे में ड्यूटियां तो कम होंगी ही, लेकिन जिनको ड्यूटी मिलेगी उन्हें कम से कम साढ़े सात हजार रुपए तो मिल पाएंगे।राजीव द्विवेदी, सहायक निदेशक, सह समावेष्टा, युवा कल्याण और प्रांतीय रक्षक दल, लखनऊ मुख्यालय

रिपोर्टर - सुरेन्द्र कुमार

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