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समाज का विरोध झेलकर बनीं महिला डिलीवरी मैन

गाँव कनेक्शन | Sep 16, 2016, 16:11 IST
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शहर में कई ऐसे ऑफिस हैं जहां के कर्मचारी अपना लंच मंगवाने के साथ ही महिला सशक्तीकरण को सलाम करते हैं। आखिर महिला शीला जैसी हो तो हाथ खुद-ब-खुद सलाम करने को उठते हैं। जब सवाल पेट का हो तो इनसान मजबूर होकर कुछ भी करने को तैयार होता है, फिर ये तो स्वाभिमान वाली नौकरी है। ये कहना है मटियारी गाँव में रहने वाली 40 वर्ष की शीला की, जो एक डिलीवरी लेडी हैं जो करीब पांच साल से शहर के आशियाना, गोमती नगर, इंदिरा नगर और निशातगंज एरिया में दीदीज फूड के तहत टिफिन पहुंचाती हैं। इसके लिए उन्होंने ड्राइविंग भी सीखी। इस तरह वे एक दिन में करीब सात से आठ ऑफिसों में टिफिन डिलीवर करती हैं। हालांकि शीला के लिए डिलीवरी लेडी बनना इतना आसान नहीं रहा। पहले लाचारी वाली जिंदगी और फिर समाज का विरोध झेलते हुई वह सशक्त महिला बनीं।

खुद वैन चलाकर टिफिन सर्विस देने वाली शीला को कभी वैन ड्राइविंग का शौक नहीं था। उन्होंने तो इसे मजबूरियों के चलते सीखा था। शीला बताती हैं कि करीब सात साल पहले पति को लकवा हो गया तो उनके शरीर के आधे हिस्से ने काम करना बंद कर दिया था। इसके बाद तो जैसे दो वक्त की रोटी मिलना मुश्किल हो गई। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं? चार बच्चों को पालना-बड़ा करना है, ये सब कैसे होगा? मैंने कुछ घरों में काम शुरू किया। इससे भी घर का खर्चा चला पाना मुश्किल था। मैं जब भी अपने बच्चों की छोटी-छोटी आंखों में बड़े-बड़े सपने देखती थी तो मन अंदर से कचोटता था कि काश मैं इन्हें पूरा करने में उनकी मदद कर पाती लेकिन परिस्थितियों ने मुझे लाचार बना दिया था। मेरी बेटी जिस स्कूल में पढ़ती थी वहां दीदीज फूड नाम का संस्थान है जहां उन गरीब बच्चों की माताओं को भी काम मिलता है और उन्हें स्वावलंबी बनाना सिखाया जाता है। मैं भी वहां गई और बावर्ची के रूप में जुड़ गई। वहां शुरुआत में तो कैंटीन के लिए खाना बनाती थी। धीरे-धीरे ऑफिसों में लंच सर्विस शुरू किया गया तो मैंने वैन चलाना भी सीख लिया। इस तरह मैं लंच पैक कराकर ऑफिसों में पहुंचाने लगी। अब मैं महीने में करीब दस हजार रुपए कमाती हूं जिससे अपने बच्चों की मदद कर पाती हूं क्योंकि वही मेरी दुनिया है।

‘बहुत हिम्मती है शीला’

शीला ने तीन महीने में गाड़ी चलाना सीखी। उस दौरान कई लोगों ने उन पर टिप्पणी किए। ससुराल वाले ताने देते कि गाड़ी मत चलाओ, बिगड़ जाओगी। वहीं कुछ कहते कि ये लड़कियों का काम नहीं हैं लेकिन शीला ने सिर्फ और सिर्फ दिल की सुनी। दीदीज फूड की एक्सक्यूटिव डायरेक्टर वीणा आनंद बताती हैं, “हमारे यहां सभी महिलाएं कठिन हालातों का सामना करके आई हैं। शीला उन सबसे थोड़ी ज्यादा एक्टिव हैं। जब हमने डिलीवरी वाला सिस्टम रखा तो सोचा डिलीवरी बॉय नहीं लेडीज ही रखेंगें क्योंकि ये महिलाओं का संस्थान है। ऐसे में हमने सबसे पूछा कि कौन गाड़ी सीखना चाहता है तो सबसे पहले शीला ने ही हाथ उठाया।”

रिपोर्टर - शेफाली श्रीवास्तव

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