देश में बना विश्व का दूसरा सबसे बड़ा जीन बैंक, 10 लाख जर्मप्लाज्म के संरक्षण की क्षमता

Divendra Singh | Aug 18, 2021, 07:21 IST
राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो में दुनिया के दूसरे सबसे बड़े जीन बैंक बनाया गया है, जहां पर 4.52 लाख बीजों के जर्मप्लाज्म सुरक्षित रखे गए हैं, यह बैंक पूरी तरह से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित है।
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भविष्य में यहां रखे बीज न केवल किसानों के लिए मददगार होंगे, बल्कि वैज्ञानिकों के नए शोध में भी मदद करेंगे। भारत में विश्व का दूसरा सबसे बड़े जीन बैंक बनाया गया है।

राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, पूसा, नई दिल्ली में विश्व के दूसरे सबसे बड़े नवीनीकृत-अत्याधुनिक राष्ट्रीय जीन बैंक बनाया गया है। इस नेशनल जीन बैंक में बीज के रूप में लगभग 10 लाख जर्मप्लाज्म को संरक्षित करने की क्षमता है। राष्ट्रीय जीन बैंक का लोकार्पण केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने 16 अगस्त, 2021 को किया।

राष्ट्रीय पौध आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो की जर्मप्लाज्म संरक्षण विभाग की हेड, प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. वीना गुप्ता बताती हैं, "हमने उसी बैंक में नई तकनीकियों का इस्तेमाल करके और बेहतर बनाया है। जैसे पहले जो रेफ्रिजरेंट गैस का उपयोग करते थे वो आर22 थी, लेकिन आजकल वो बैन हो गई है, तो अब आर404 गैस को उपयोग में लाया जा रहा है। हम इसमें नई तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं।"

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राष्ट्रीय जीन बैंक के लोकार्पण के दौरान केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चौधरी, आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्र, एनबीपीजीआर के पूर्व निदेशक कुलदीप सिंह और एनबीपीजीआर में जर्मप्लाज्म संरक्षण विभाग की हेड, प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. वीना गुप्ता।

वो आगे कहती हैं, "इसमें कश्मीर से कन्याकुमारी तक और गुजरात से नॉर्थ ईस्ट तक से बीज इकट्ठा किए गए हैं। साथ ही यह पूरी तरह से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित बैंक है, इसमें वही लोग जा सकते हैं, जिनको पासवर्ड दिया जाएगा।"

पादप आनुवंशिक संसाधनों (पीजीआर) के बीजों को आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित करने के लिए साल 1996 में स्थापित नेशनल जीन बैंक में बीज के रूप में लगभग 10 लाख जर्मप्लाज्म को संरक्षित करने की क्षमता है। वर्तमान में 4.52 लाख परिग्रहण का संरक्षण कर रहा है, जिसमें 2.7 लाख भारतीय जर्मप्लाज्म है व शेष अन्य देशों से आयात किए हैं। राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, दिल्ली मुख्यालय व देश में 10 क्षेत्रीय स्टेशनों के माध्यम से इन-सीटू और एक्स-सीटू जर्मप्लाज्म संरक्षण की आवश्यकता को पूरा कर रहा है।

जीन बैंक में रखे बीज ब्रीडर को अच्छे किस्म के बीज विकसित कराने के लिए भी उपलब्ध किए जाते हैं।

बैंक में रखने से पहले बीज को लंबी प्रक्रिया से गुजरना होता है। डॉ. वीना गुप्ता बताती हैं, "बीज को बैंक में रखने से पहले उसका मॉइस्चर टेस्ट किया जाता है, उसके बाद पेस्ट कंट्रोल किया जाता है कि उसमें कोई कीट या फिर अंडा तो नहीं है, फिर उसका जर्मिनेशन टेस्ट किया जाता है, अगर 90 प्रतिशत तक जर्मिनेशन होता है तभी उसे बीज बैंक में रखा जाता है।"

लंबे समय तक संरक्षित रखने के लिए बीज -18 डिग्री सेंटीग्रेड में और विट्रो बैंक में -25 सेंटीग्रेड और क्रायोजीन बैंक में -196 डिग्री सेंटीग्रेड पर बीजों को सुरक्षित रखा गया है।

सीड जीन बैंक में धान्य फसलों के 1,69,599, मिलेट्स के 59,903, चारा फसलों के 7,390, स्यूडो धान्य के 7,879, दलहन के 67,598, तिलहन के 61,308, रेशेदार फसलों के 16,308, सब्जियों के 27,848, फलों के 295, औषधीय एवं सगंधीय फसलों के 8,470, फूलों के 680, मसालों के 3,463, कृषि वानिकी फसलों के 1,675, दोहरी सुरक्षा के नमूने 10,235 और परीक्षण सामग्री के लिए 10,771 बीज रखे गए हैं। इसी तरह विट्रो बैंक में 1,927, क्रायोबैंक में 12,011 बीज रखे गए हैं।

पूरे देश में हैं 10 क्षेत्रीय केंद्र

राष्ट्रीय पौध आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो के पूरे देश में दस और भी रीजनल सेंटर हैं। इनमें अकोला (महाराष्ट्र), भोवली (उत्तराखंड), कटक (ओडिशा), हैदराबाद (आंध्र प्रदेश), जोधपुर (राजस्थान), शिलॉन्ग (मेघालय), रांची (झारखंड), शिमला (हिमाचल प्रदेश), त्रिसूर (केरल), श्रीनगर (जम्मू कश्मीर) में भी रीजनल सेंटर हैं।

नार्वे में 'स्वालबार्ड ग्लोबल सीड वॉल्ट' है दुनिया का सबसे बड़ा बीज बैंक

सीड वॉल्ट में फसलों की 45 लाख किस्मों को स्टोर करने की क्षमता है। प्रत्येक किस्म में औसतन 500 बीज होंगे, इसलिए लॉकर में अधिकतम 2.5 बिलियन बीज रखे जा सकते हैं।

वर्तमान में, वॉल्ट में 1,000,000 से अधिक नमूने हैं, जो दुनिया के लगभग हर देश से लाए गए हैं। मक्का, चावल, गेहूं, लोबिया, और ज्वार जैसे प्रमुख अफ्रीकी और एशियाई खाद्य स्टेपल की अनूठी किस्मों से लेकर बैंगन, सलाद, जौ और आलू की यूरोपीय और दक्षिण अमेरिकी किस्मों तक इनमें शामिल हैं।

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