पुरानी साड़ियों का ऐसा इस्तेमाल नहीं देखा होगा

Mo. Amil | Sep 16, 2019, 11:47 IST
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एटा (उत्तर प्रदेश)। जिसके पास हुनर होता है वह किसी का मोहताज नहीं होता, पुरानी साड़ियों को बेहतरीन इस्तेमाल करने वाले अफसर अली भी इसकी एक मिसाल हैं। अफसर अली अपने हुनर से पुरानी साड़ियों को नए रूप में ढाल कर उन्हें दरी, कम्बल, पायदान जैसे जरूरतमंद सामानों का रूप दे रहे हैं।

एटा जिले के मारहरा के कम्बोह मोहल्ले में रहने वाले अफसर अली के इस काम में उनका पूरा परिवार हाथ बंटाता है। अफसर अली बताते हैं, "मैं सात पुरानी साड़ियों से एक नई दरी बना लेता हूं। इसके एवज में वह ग्राहक से 140 रुपए लेते हैं। ग्राहक का नाम पता लिखकर उसे 15 दिन का टाइम दे देते हैं, 15 दिन के बाद बन जाने के बाद वो दरी ले जाता है।

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वह इस कारीगरी और रोजगार के लिए सरकार से मदद की उम्मीद करते हैं। वह चाहते हैं कि उन्हें इस काम को बढ़ावा देने मे सरकारी मदद मिले। उनका कहना है कि यह काम हथकरघा कारोबार में आता है लेकिन उन्हें आज तक कोई सरकारी मदद के अलावा किसी योजना का लाभ नही मिला है।
वह कहते हैं कि वर्ष 1992 में उन्होंने खादी विभाग का काम किया था कई वर्षों तक काम किया लेकिन उनका मेहनताना रोक लिया गया जिसकी वजह से वह काम छोड़ना पड़ा। आज भी उनका मेहनताना नही मिला है कई बार शिकायती पत्र भी दिया था। पुरानी साड़ी को दरी का रूप देने के बारे में वह बताते हैं कि वह ग्राहक से सात साड़ियां लेते हैं, उन्हें चीड़कर पतली रिबन बना लेते हैं और उन्हें एक लकड़ी पर चढ़ा लेते हैं। फिर उसके मशीन और धागे के जरिए दरी, कम्बल व अन्य सामान बना देते हैं।

वो बताते हैं, " दरी बनाने के लिए सबसे पहले साड़ी को फाड़ा जाता है, फाड़ने के बाद उसका गोला बनाया जाता है, गोला बनाने के बाद उसे मशीन पर चढ़ाया जाता है, इसमें पूरा परिवार लगता है। खड्डी पर गोला चढ़ाते हैं, मेहनत लगती है इसमें। पहले मैं सूत का काम करता था, उसके बाद दरी बनाने का काम शुरू किया। जब सूत का काम बंद हुआ फिर दरी का काम शुरू किया तो ये बिकती नहीं थी, तब लगा कि क्या किया जाए। तब मैंने सोचा कि साड़ियों से दरी बनाने का काम शुरू किया जाए।"



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