पति की मौत के बाद शुरू किया बैग सिलाई का काम, आज हो रही अच्छी कमाई
Piyush Kant Pradhan | Oct 16, 2019, 10:05 IST
वर्धा (महाराष्ट्र)। जिस धरती से महात्मा गांधी ने स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए पहल की थी वहीं से 50 किलोमीटर की दूरी पर हिंगणघाट में एक महिला ने स्वरोजगार से मिसाल कायम की है। चारु लता बैग सिलने का काम करती हैं। वो कोई सामान्य बैग नहीं सिलती, बल्कि जिस बैग को आप दुकानों पर सजे हुए देखते हैं। उनसे बिल्कुल कम नहीं होते ये बैग।
महाराष्ट्र के वर्धा जिले के हिंगणघाट की रहने वाली चारू लता की शादी के बाद उनके पति की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी। ऐसे में एक बेटी और बेटे के साथ चारू का घर चलाना मुश्किल हो गया। चारु लता बताती हैं, "पति की बाद हम पूरी तरह से टूट गए थे, इसके बावजूद का सिलाई का काम शुरू किया, लेकिन इतनी कमाई नहीं हो पाती थी कि घर चल पाता।"
वो आगे कहती हैं, "पति राजेश की मौत के दसवें दिन एक आदमी 50 झोले सिलवाने आया। उस समय सब काम धाम बंद हो गया था और आगे भी कुछ करने का इरादा नहीं था। उसी समय एक अंजान आदमी 50 झोले सिलवाने आ गया। मैंने उसको मना करते हुए कहा था कि अब वो सिलाई का काम बंद कर चुकी हैं।"
उस समय तक उस अंजान आदमी को नहीं पता था कि चारु लता के पति की मौत हो चुकी है। जब उसे पता चला कि पति के मरने के सदमे में चारु अपना काम बंद कर रही हैं। फिर उस आदमी ने चारु को घंटो तक समझाया और उनके इरादों में जोश भरने का काम किया। उस अंजान आदमी के घंटो समय ने चारु लता को फिर से काम शुरू करने के लिए प्रेरित किया और वो झोले सिलने लगी। आज उनके झोले बड़े बड़े कंपनी वाले ले जाकर अपने ब्रॉन्ड के साथ जोड़कर बेचने का काम करते हैं।
चारु लता कहती हैं कि समाज में विधवा महिलाओं को पूरी तरह से नकार दिया जाता है लेकिन इससे उनको परेशान नहीं होना चाहिए और अपने पैरों पर खड़े होना चाहिए। वो कहती हैं। कि जब हम पैदा होते हैं तो दो हाथ और पैर समान रूप से भगवान द्वारा दिया जाता है और इसी को हथियार बनाकर अपने जीवन को जीना चाहिए। वो बताती हैं कि होनी और अनहोनी मनुष्य के हाथों में नहीं होता है इसलिए संकट की घड़ी में विधवा महिलाओं को बिल्कुल नहीं घबराना चाहिए बल्कि संकटो का सामना करना चाहिए। पति के मौत से टूटी हुई चारु विधवा महिलाओं को कहती हैं कि पति एक उम्मीद होता है एक सहारा होता है लेकिन उसके न रहने पर भी महिलाओं को जीने की आदत डाल लेनी चाहिए।
चारु लता के स्वरोजगार में टिफिन सेवा भी शामिल है वो रोज 8 लोगों के लिए खाने का टिफिन भी तैयार करती हैं। उससे भी कुछ आमदनी हो जाती है। चारू लता दो बच्चे आशुतोष और शीनू के साथ रहती हैं। इसी रोजगार के बदौलत वो आशुतोष को बीकॉम और शीनू को बारहवीं में पढ़ा रही हैं।
चारु लता बताती हैं कि उनके पति राजेश की मौत के बाद रिश्तेदारों से मदद की अपेक्षा की थी लेकिन किसी ने उनका साथ नहीं दिया और न ही कोई मदद की। दो बच्चों को लेकर वो बहुत परेशान रहती थी। पैसे की तंगी से उनके अंदर तरह तरह के विचार आते थे लेकिन उन्होंने अपने मजबूत इरादों को हथियार बनाया और सिलाई का काम शुरू किया।
महाराष्ट्र के वर्धा जिले के हिंगणघाट की रहने वाली चारू लता की शादी के बाद उनके पति की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी। ऐसे में एक बेटी और बेटे के साथ चारू का घर चलाना मुश्किल हो गया। चारु लता बताती हैं, "पति की बाद हम पूरी तरह से टूट गए थे, इसके बावजूद का सिलाई का काम शुरू किया, लेकिन इतनी कमाई नहीं हो पाती थी कि घर चल पाता।"
वो आगे कहती हैं, "पति राजेश की मौत के दसवें दिन एक आदमी 50 झोले सिलवाने आया। उस समय सब काम धाम बंद हो गया था और आगे भी कुछ करने का इरादा नहीं था। उसी समय एक अंजान आदमी 50 झोले सिलवाने आ गया। मैंने उसको मना करते हुए कहा था कि अब वो सिलाई का काम बंद कर चुकी हैं।"
उस समय तक उस अंजान आदमी को नहीं पता था कि चारु लता के पति की मौत हो चुकी है। जब उसे पता चला कि पति के मरने के सदमे में चारु अपना काम बंद कर रही हैं। फिर उस आदमी ने चारु को घंटो तक समझाया और उनके इरादों में जोश भरने का काम किया। उस अंजान आदमी के घंटो समय ने चारु लता को फिर से काम शुरू करने के लिए प्रेरित किया और वो झोले सिलने लगी। आज उनके झोले बड़े बड़े कंपनी वाले ले जाकर अपने ब्रॉन्ड के साथ जोड़कर बेचने का काम करते हैं।
चारु लता कहती हैं कि समाज में विधवा महिलाओं को पूरी तरह से नकार दिया जाता है लेकिन इससे उनको परेशान नहीं होना चाहिए और अपने पैरों पर खड़े होना चाहिए। वो कहती हैं। कि जब हम पैदा होते हैं तो दो हाथ और पैर समान रूप से भगवान द्वारा दिया जाता है और इसी को हथियार बनाकर अपने जीवन को जीना चाहिए। वो बताती हैं कि होनी और अनहोनी मनुष्य के हाथों में नहीं होता है इसलिए संकट की घड़ी में विधवा महिलाओं को बिल्कुल नहीं घबराना चाहिए बल्कि संकटो का सामना करना चाहिए। पति के मौत से टूटी हुई चारु विधवा महिलाओं को कहती हैं कि पति एक उम्मीद होता है एक सहारा होता है लेकिन उसके न रहने पर भी महिलाओं को जीने की आदत डाल लेनी चाहिए।
चारु लता के स्वरोजगार में टिफिन सेवा भी शामिल है वो रोज 8 लोगों के लिए खाने का टिफिन भी तैयार करती हैं। उससे भी कुछ आमदनी हो जाती है। चारू लता दो बच्चे आशुतोष और शीनू के साथ रहती हैं। इसी रोजगार के बदौलत वो आशुतोष को बीकॉम और शीनू को बारहवीं में पढ़ा रही हैं।
चारु लता बताती हैं कि उनके पति राजेश की मौत के बाद रिश्तेदारों से मदद की अपेक्षा की थी लेकिन किसी ने उनका साथ नहीं दिया और न ही कोई मदद की। दो बच्चों को लेकर वो बहुत परेशान रहती थी। पैसे की तंगी से उनके अंदर तरह तरह के विचार आते थे लेकिन उन्होंने अपने मजबूत इरादों को हथियार बनाया और सिलाई का काम शुरू किया।