उत्तराखंड के परंपरागत लकड़ी के घर, दशकों बाद आज भी वैसे ही मजबूत
Robin Singh Chauhan | Oct 07, 2019, 11:10 IST
पुरोला, उत्तरकाशी(उत्तराखंड)। यमुना घाटी अपनी खूबसूरती के लिए जानी जाती है, लेकिन इसके साथ ही यहां की काष्ठ कला बेजोड़ है। दशकों पुराने लकड़ी के घर आज भी वैसे ही मजबूती से खड़े हैं।
उत्तराखंड में आज भी पहाड़ों पर लकड़ी के घर मिल जाएंगे, ये मकान 4 से 5 मंजिला होते हैं। हर मंजिल की अपनी खासियत होती है। सबसे बड़ी बात ये है कि कई सौ साल पहले बने ये मकान भूकंपरोधी है। उत्तरकाशी के पुरोला ब्लॉक में ऐसे कई गांव है जहां इस तरह के भवन है। लेकिन अब इन को बनाने वाले कारीगरों की कमी हो गयी है। लकड़ी मिलना मुश्किल हो रहा है इसलिए अब लोग ऐसे भवन नही बना रहे हैं।
इतिहासकार योगम्बर सिंह बर्थवाल लकड़ी के घरों के बारे में बताते हैं, "यहां जो भवन होते हैं, चार-पांच मंजिल के होते हैं और ये देवदार की की लकड़ी से बने होते हैं, पूरे के पूरे पेड़ एक भवन बनने में लग जाते हैं। और इनमें लोहे की कील की बजाए लकड़ी ही लगती है। लकड़ी के खांचे ऐसे फिट किए जाते हैं कि ये भुकम्प अवरोधी बन जाते हैं, यहां कई बार भुकम्प भी आया, लेकिन इन मकानों को कुछ नहीं हो पाया। आज भी आपको ये घर वैसे ही दिखेंगे जैसे ये पहले थे।"
स्थानीय निवासी भगवान सिंह रावत कहते हैं, "यहां पर आप जहां भी नजर दौड़ाएंगे, एक दो ही क्रंकीट के मकान दिखायी देंगे, बाकी यहां पर सारे घर लकड़ियों के ही होते हैं, इसका मुख्य कारण यहां की जलवायु ऐसी है, जब दिसम्बर-जनवरी में यहां बर्फ गिरती है तो हम कंक्रीट के घरों में नहीं रह सकते, तब यही लकड़ी के घर ही आराम देते हैं।"
इन घरों में अलग-अलग मंजिल पर अलग-अलग तरीके से बनाए जाते थे। भगवान सिंह आगे बताते हैं, "इसमें नीचे की मंजिल में बड़े पशु रहते हैं, उसके बाद की मंजिल में भेड़ बकरी, उसके ऊपर की मंजिल में लोग खुद रहते हैं, ऐसे की नीचे की दो मंजिल में पशुओं के रखने पर बहुत फायदा होता है, जैसे कि ऊपर जब बहुत ज्यादा सर्दी पड़ती है तो नीचे पशुओं को रखने से घर गर्म रहता है। सबसे ऊपर की मंजिल पर लकड़ी रखते हैं और सबसे ऊपर वाली मंजिल पर ही मंदिर भी बनाते हैं।"
उत्तराखंड में आज भी पहाड़ों पर लकड़ी के घर मिल जाएंगे, ये मकान 4 से 5 मंजिला होते हैं। हर मंजिल की अपनी खासियत होती है। सबसे बड़ी बात ये है कि कई सौ साल पहले बने ये मकान भूकंपरोधी है। उत्तरकाशी के पुरोला ब्लॉक में ऐसे कई गांव है जहां इस तरह के भवन है। लेकिन अब इन को बनाने वाले कारीगरों की कमी हो गयी है। लकड़ी मिलना मुश्किल हो रहा है इसलिए अब लोग ऐसे भवन नही बना रहे हैं।
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इतिहासकार योगम्बर सिंह बर्थवाल लकड़ी के घरों के बारे में बताते हैं, "यहां जो भवन होते हैं, चार-पांच मंजिल के होते हैं और ये देवदार की की लकड़ी से बने होते हैं, पूरे के पूरे पेड़ एक भवन बनने में लग जाते हैं। और इनमें लोहे की कील की बजाए लकड़ी ही लगती है। लकड़ी के खांचे ऐसे फिट किए जाते हैं कि ये भुकम्प अवरोधी बन जाते हैं, यहां कई बार भुकम्प भी आया, लेकिन इन मकानों को कुछ नहीं हो पाया। आज भी आपको ये घर वैसे ही दिखेंगे जैसे ये पहले थे।"
स्थानीय निवासी भगवान सिंह रावत कहते हैं, "यहां पर आप जहां भी नजर दौड़ाएंगे, एक दो ही क्रंकीट के मकान दिखायी देंगे, बाकी यहां पर सारे घर लकड़ियों के ही होते हैं, इसका मुख्य कारण यहां की जलवायु ऐसी है, जब दिसम्बर-जनवरी में यहां बर्फ गिरती है तो हम कंक्रीट के घरों में नहीं रह सकते, तब यही लकड़ी के घर ही आराम देते हैं।"
इन घरों में अलग-अलग मंजिल पर अलग-अलग तरीके से बनाए जाते थे। भगवान सिंह आगे बताते हैं, "इसमें नीचे की मंजिल में बड़े पशु रहते हैं, उसके बाद की मंजिल में भेड़ बकरी, उसके ऊपर की मंजिल में लोग खुद रहते हैं, ऐसे की नीचे की दो मंजिल में पशुओं के रखने पर बहुत फायदा होता है, जैसे कि ऊपर जब बहुत ज्यादा सर्दी पड़ती है तो नीचे पशुओं को रखने से घर गर्म रहता है। सबसे ऊपर की मंजिल पर लकड़ी रखते हैं और सबसे ऊपर वाली मंजिल पर ही मंदिर भी बनाते हैं।"