आठ गाँव के आदिवासियों ने 500 एकड़ बंजर जमीन पर तैयार कर दिया जंगल
Pushpendra Vaidya | Dec 24, 2019, 06:48 IST
बालाघाट(मध्य प्रदेश)। आठ गांव के आदिवासियों ने दस साल में 500 एकड़ बंजर जमीन पर हरा भरा जंगल तैयार कर दिया है। लोगों ने हर एक पौधे और पेड़ की बच्चों की तरह देखभाल की जिससे ये जंगल तैयार हो पाया।
मध्य प्रदेश के बालाघाट ज़िले में कान्हा नेशनल पार्क से लगे आठ गाँव के आदिवासियों ने अपने जज्बे से 500 एकड़ बंजर भूमि पर नया जंगल खड़ा कर दिया है। आदिवासी पिछले 10 सालों से नया जंगल तैयार करने में लगे हुए हैं।
दरअसल साल 2008 में वनरक्षक भरतलाल नेवारे ने बिरसा वन मंडल के दमोह बीज में ड्यूटी संभाली। उस समय रेलवाही, बनाथरटोला, पटेलटोला, जामटोला, परसाही, बीजाटोला, सत्ताटोला गांव की सीमाओं में जंगल नही था। इन गांवों के आदिवासियों ने जंगल का महत्व समझते हुए वनरक्षक से सलाह लेकर गांव के आसपास की सरकारी 210 हेक्टयर यानी 500 एकड़ जमीन पर पौधा रोप कर कर जंगल लगाने की शुरुआत की। पार्क के कॉरिडोर वाले जंगल से साल, साजा जामुन, बांस सहित अन्य प्रजातियों के पेड़ों के बीज से एक रोपणी बनाकर पौधे तैयार किए गए।
इसके लिए आदिवासियों ने सरकारी वनरक्षक की मदद से इलाके में पनपने योग्य पेड़ों के बीज तैयार करवाए। फिर करीब 500 एकड़ जमीन में उन्हें रोपा गया। पौधों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाए इसके लिए चौकीदार तैनात किया गया। आदिवासियों की सामूहिक जागरूकता और प्रयासों का परिणाम है कि आज इलाके में नया जंगल लहलहा रहा है।
वन रक्षक भारत लाल नेवारे कहते हैं, "आदिवासियों ने पौधों की देखरेख बच्चों की तरह की। उनकी रखवाली की जिम्मेदारी चौकीदार को दी गई। बंजर सरकारी जमीन को हरा-भरा ही नहीं किया बल्कि उसे जंगल में तब्दील कर दिखा दिया। चौकीदार पहले पौधे की देखरेख करता था अब पेड़ों की रखवाली करता है।"
चौकीदार को वेतन देने के लिए 720 घरों से हर साल छह-छह किलो धान एकत्र किया जाता है। हर साल करीब 43 कुंतल धान इकट्ठा जाता है। उसे बेचकर जंगल की रखवाली और अन्य खर्च का इंतजाम किया जाता है। 15 ग्रामीणों की एक समिति भी है जो इसका हिसाब-किताब रखती है।
ग्रामीण बताते है कि अब पूरे इलाके में जंगल तैयार होने से यहां बाघ तेंदूआ, नीलगाय, बायसन, हिरण के अलावा दूसरे जंगली जानवर दिखाई देते है। साथ हर साल बारिश भी अच्छी होने लगी है। गर्मी के दिनों में ठंड जैसा वातावरण रहने से जंगलों की तरफ पर्यटक भी घूमने आने आते है। ग्रामीणों के जंगल बचाने के संकल्प को पूरा करने में वन विभाग के वनरक्षक भरत नेवारे का सबसे अहम योगदान है।
मध्य प्रदेश के बालाघाट ज़िले में कान्हा नेशनल पार्क से लगे आठ गाँव के आदिवासियों ने अपने जज्बे से 500 एकड़ बंजर भूमि पर नया जंगल खड़ा कर दिया है। आदिवासी पिछले 10 सालों से नया जंगल तैयार करने में लगे हुए हैं।
दरअसल साल 2008 में वनरक्षक भरतलाल नेवारे ने बिरसा वन मंडल के दमोह बीज में ड्यूटी संभाली। उस समय रेलवाही, बनाथरटोला, पटेलटोला, जामटोला, परसाही, बीजाटोला, सत्ताटोला गांव की सीमाओं में जंगल नही था। इन गांवों के आदिवासियों ने जंगल का महत्व समझते हुए वनरक्षक से सलाह लेकर गांव के आसपास की सरकारी 210 हेक्टयर यानी 500 एकड़ जमीन पर पौधा रोप कर कर जंगल लगाने की शुरुआत की। पार्क के कॉरिडोर वाले जंगल से साल, साजा जामुन, बांस सहित अन्य प्रजातियों के पेड़ों के बीज से एक रोपणी बनाकर पौधे तैयार किए गए।
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इसके लिए आदिवासियों ने सरकारी वनरक्षक की मदद से इलाके में पनपने योग्य पेड़ों के बीज तैयार करवाए। फिर करीब 500 एकड़ जमीन में उन्हें रोपा गया। पौधों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाए इसके लिए चौकीदार तैनात किया गया। आदिवासियों की सामूहिक जागरूकता और प्रयासों का परिणाम है कि आज इलाके में नया जंगल लहलहा रहा है।
वन रक्षक भारत लाल नेवारे कहते हैं, "आदिवासियों ने पौधों की देखरेख बच्चों की तरह की। उनकी रखवाली की जिम्मेदारी चौकीदार को दी गई। बंजर सरकारी जमीन को हरा-भरा ही नहीं किया बल्कि उसे जंगल में तब्दील कर दिखा दिया। चौकीदार पहले पौधे की देखरेख करता था अब पेड़ों की रखवाली करता है।"
चौकीदार को वेतन देने के लिए 720 घरों से हर साल छह-छह किलो धान एकत्र किया जाता है। हर साल करीब 43 कुंतल धान इकट्ठा जाता है। उसे बेचकर जंगल की रखवाली और अन्य खर्च का इंतजाम किया जाता है। 15 ग्रामीणों की एक समिति भी है जो इसका हिसाब-किताब रखती है।
ग्रामीण बताते है कि अब पूरे इलाके में जंगल तैयार होने से यहां बाघ तेंदूआ, नीलगाय, बायसन, हिरण के अलावा दूसरे जंगली जानवर दिखाई देते है। साथ हर साल बारिश भी अच्छी होने लगी है। गर्मी के दिनों में ठंड जैसा वातावरण रहने से जंगलों की तरफ पर्यटक भी घूमने आने आते है। ग्रामीणों के जंगल बचाने के संकल्प को पूरा करने में वन विभाग के वनरक्षक भरत नेवारे का सबसे अहम योगदान है।