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भूजल समाप्त हुआ तो इंसान का नामोनिशां नहीं बचेगा

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हम भूजल का बेहिसाब दोहन कर रहे हैं। खैरात की बिजली का लाभ लेकर बोरवेल और ट्यूबवेल बन रहे हैं, भूजल से मनरेगा के तालाब भरे जा रहे हैं, मछली पालन हो रहा है, उद्योग धंधों में भूजल प्रयोग हो रहा है और गिरता हुआ भूजल स्तर लगातार खतरे की घंटी बजा रहा है। पुराने लोगों को याद होगा प्रकृति द्वारा संचित इसी भूजल ने 1967-68 में अकाल से बिहार को बचाया था। विदर्भ को नहीं बचा पा रहा हैं क्योंकि वहां संचित भूजल की कमी है। जल के लिए अगला विश्वयुद्ध छिड़े इसके पहले हमें कुछ प्रभावी कदम उठाने होंगे।

भंडारित भूजल को बचाने का एक ही तरीका है कि भूतल पर उपलब्ध पानी का अधिकाधिक उपयोग किया जाए। इस उद्देश्य से सत्तर के दशक में केएल राव ने भारत की नदियों को आपस में जोड़ने का प्रस्ताव दिया था जिस पर मोरारजी देसाई की जनता पार्टी की सरकार ने 1977 में कार्यवाही आरम्भ की थी। जब कांग्रेस पार्टी को सत्ता फिर से मिली तो उसने 1982 में इस योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया। एक बार फिर 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने योजना को पुनर्जीवित करना चाहा और प्रयास किया लेकिन 2004 में उनकी सरकार जाने और कांग्रेस की सरकार आने के साथ ही योजना भी चली गई । इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि एक जीवन रक्षक योजना राजनीति का फुटबाल बनकर रह गई है।

भूजल का स्तर गिरने के साथ ही जलप्रदूषण आज की बहुत बड़ी समस्या है। धरती पर चमड़ा, पीतल, खनिज, चीनी और कागज उद्योगों तथा सीवर लाइनों का कचरा पानी को प्रदूषित कर ही रहा है, भूमिगत पानी भी प्रदूषित हो रहा है। धरती पर मौजूद पानी के प्रदूषण को तो एक बार दूर किया जा सकता है परन्तु यदि भूमिगत पानी प्रदूषित हो गया तो उसे शुद्ध नहीं किया जा सकता। वायुमंडल में मौजूद तांबा, लोहा, जस्ता, सीसा, निकिल, कोबाल्ट, मैंगनीज और कैडमियम जैसे धातुएं मौजूद हैं जो वर्षा जल मे घुलकर जल प्रदूषण का कारण बनती हैं।

उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में भी जल उपयोग के लिए जलनीति बनाने की आवश्यकता है। अमेरिका जैसे देशों में जल संसाधन नियंत्रण बोर्ड (वाटर रिसोर्स कन्ट्रोल बोर्ड) और जल अधिकार विभाग (वाटर राइट्स डिवीजन) बने हैं जिन मे जिला परिषद, कृषक मंडल, उद्योगपति और स्वयंसेवी संस्थाओं का प्रतिनिधित्व रहता है। हमारे देश में कुछ स्थानों पर पानी पंचायत के रूप में कहीं-कहीं थोड़ा नियंत्रण है परन्तु उसे कानूनी रूप देने की आवश्यकता है। मोटे तौर पर धरती के अन्दर का मीठा पानी पीने के लिए सुरक्षित रखना चाहिए और धरातल पर मौजूद नदियों, झीलों और तालाबों का पानी सिंचाई, बागबानी, मछलीपालन, पशु-उपयोग और उद्योगों के लिए उपयोग में लाना चाहिए।

यदि पर्यावरण और इकोलॉजी के नाम पर योजना का विरोध करने वाले लोग आने वाली सन्तानों को भूखे प्यासे नहीं मरने देना चाहते तो साफ जल उपलब्धता की विसंगति से निपटने और भूजल बचाने के लिए नदियों का जाल बिछाना एक अच्छा विकल्प है। बेहतर होगा कि टीवी चैनल विशेषज्ञों की खाली बहस कराएं इस विषय पर।

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