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हैकर बनाम डेवलपर: ईवीएम को लेकर नया पेंच

गाँव कनेक्शन | May 12, 2017, 09:28 IST
लखनऊ
सवाल विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की पवित्रता का है, उससे भी बड़ा, विश्वसनीयता और आरोप-प्रत्यारोप का है। सवाल यह भी नहीं कि नौ मई को दिल्ली विधानसभा के विशेष सत्र में जो हुआ वो अपराध की श्रेणी में आता है या किसी साजिश का हिस्सा? सवाल बस इतना है कि क्या हर तरीके से सुरक्षित कही और माने जाने वाली ईवीएम में छेड़खानी संभव है?

यही बात आम आदमी पार्टी सहित कई राजनैतिक दल, काफी पहले से कह रहे थे। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि 2009 में भाजपा ने भी इसे मुद्दा बनाया था। कुल मिलाकर सभी पार्टियों के निशाने पर कभी न कभी ईवीएम ही रही है। लेकिन आज दिल्ली विधानसभा के विशेष सत्र में, आम आदमी पार्टी के विधायक सौरव भारद्वाज के दिए लाइव डेमो के बाद तहलका मचना था, मचा भी आगे और मचेगा।

सवाल फिर वही कि ईवीएम कितनी सुरक्षित, उससे बड़ा सवाल यह कि तकनीक के इस खेल में कौन बड़ा, तकनीक का ईजाद करने वाला या उसका तोड़ निकालने वाला, जिसे आम तौर पर हैकर कहते हैं। कुछ भी हो, यह तो लोगों के सामने प्रश्न बनकर खड़ा ही हो गया है कि केवल कोड के सहारे चलने वाले सॉफ्टवेयर को हैक कर या डिकोड कर मनमाफिक कोडिंग करके, मनचाहे नतीजे लिए जा सकते हैं।

हालांकि शाम होते-होते ईवीएम मशीन के समर्थन में, उसकी विश्वसनीयता और किसी भी प्रकार की छेड़खानी किए जाने की बात पर चुनाव आयोग के कुछ पूर्व अधिकारी काफी तल्ख भाषा में आम आदमी पार्टी के इस डेमो पर बोलते नजर आए। लेकिन जिस संजीदगी और विश्वास के साथ सौरव ने डेमो दिया, उससे आम लोगों को यह तो समझ आता है कि तकनीक से छेड़खानी असंभव नहीं। शायद यही समझाने की कोशिश सौरव ने भी की।

सौरव का आत्मविश्वास कहें या अति उत्साह गुजरात चुनाव के पहले मशीनें मिल जाएं तो वो भी कारनामा दिखाने की बात कह उन्होंने ईवीएम के भविष्य पर, गंभीर सवाल जरूर खड़े कर दिए हैं। विधानसभा में भिंड, राजस्थान के उदाहरण दिए गए। हाल ही में उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा विकासनगर की सभी मशीनों सहित राज्य के छह और विधानसभा क्षेत्रों की मशीनों को 48 घंटे में सील करने का आदेश और परिपालन में 2446 मशीनों का सील होने को भी इसी से जोड़ा जा रहा है।

लेकिन यह भी सच है कि 2010 में जीवीएल नरसिम्हा राव जो भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता तथा चुनाव मामलों के विशेषज्ञ हैं की एक किताब सामने आई थी, जिसका नाम ‘डेमोक्रेसी एट रिस्क, कैन वी ट्रस्ट ऑर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन?’ है। इसमें भी कई गंभीर प्रश्न उठाए गए थे। इसी तरह 2009 में चुनाव परिणामों के बाद, भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने भी आरोप लगाया था कि 90 सीटों पर ईवीएम फ्रॉड के जरिए ही कांग्रेस जीत सकी थी जो असंभव था।

ईवीएम पर आम आदमी पार्टी के अलावा मायावती, लालू यादव, ममता बनर्जी और खुद भाजपा-कांग्रेस के लोग भी आरोप लगा चुके हैं। ऐसे में ये डेमो लोकतंत्र की अग्नि परीक्षा जैसे ही कहा जाएगा।

हालांकि बीते 19 अप्रैल को ही, चुनाव आयोग ने साफ कर कर दिया था कि 2019 के आम चुनाव वीवीपीएटटी मशीनों से होंगे, जिसमें मतदाता अपने वोट का प्रिंट भी देख सकेंगे जो कि एक बॉक्स में जमा होगा। इसके लिए केंद्र ने तीन हजार करोड़ रुपए देने की बात कही है।

इसमें मतदान की विश्वसनीयता मशीनी गणना और मतपर्ची दोनों से हो सकेगी। लेकिन दिल्ली विधानसभा के विशेष सत्र को लेकर अभी हंगामा होना बाकी है। ईवीएम को लेकर नया खेल तो अभी शुरू हुआ है, लेकिन सवाल भारतीय लोकतंत्र की विश्वसनीय मतदान प्रणाली पर जरूर उठ गया है, जिससे कुहासा हटाना बेहद जरूरी है।

(ये लेखक के अपने निजी विचार हैं।) (स्रोत: आईएएनएस)

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