किसान आंदोलन नेताओं के बहकावे पर नहीं होते 

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किसान आंदोलन नेताओं  के बहकावे पर नहीं होते प्रतीकात्मक तस्वीर।

रीतू तोमर

देश में किसानों का गुस्सा उबाल पर है, तमिलनाडु, महाराष्ट्र के बाद अब मध्य प्रदेश के किसान सड़कों पर हैं और अपनी फसलों के वाजिब दाम पाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। इन किसान आंदोलनों को राजनीति से प्रेरित बताया जा रहा है, लेकिन किसान संगठनों का दो टूक जवाब है कि किसान अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं, इसे राजनीति से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।

तमिलनाडु के किसान जब कर्जमाफी और फसलों के वाजिब दाम की मांग के लिए नई दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन कर रहे थे, तो उनके आंदोलन को राजनीति से ओत-प्रोत बताया जा रहा था। इसी तरह महाराष्ट्र के किसान जब सड़कों पर उतरे और हजारों लीटर दूध बहाया तो इसके पीछे विपक्ष का हाथ बताया गया और अब यही तर्क मध्य प्रदेश के किसान आंदोलन पर दिया जा रहा है।

मध्य प्रदेश के मंदसौर में आंदोलनकारी छह किसानों को पुलिस ने गोलियों से भून दिया। अब कई किसान संगठन मृत किसानों के परिवार के लिए उचित मुआवजे की मांग पर अड़े हैं।

मध्य प्रदेश किसान आंदोलन को विपक्षी दल, खासकर कांग्रेस प्रेरित बताया जा रहा है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने मध्य प्रदेश में किसानों के आंदोलन के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया था, लेकिन भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह ने कहा, “किसान कभी किसी पार्टी या नेता के उकसावे में आकर आंदोलन नहीं करते। सरकार की कुनीतियों की वजह से किसानों को सड़कों पर उतरना पड़ता है। किसानों का यह आंदोलन राजनीति से प्रेरित नहीं है। जो ऐसा कह रहे हैं, वे देश को गुमराह कर रहे हैं। सरकार फसल के वाजिब दाम बढ़ाएं, हम सड़कों से वापस खेतों में लौट जाएंगे।”

मंदसौर में पुलिस की गोलीबारी में छह किसानों की मौत के बाद राज्य सरकार ने मृत किसानों के परिवार वालों के लिए एक-एक करोड़ रुपए की सहायता राशि का ऐलान किया था, लेकिन किसान संगठन इसे नाकाफी बताते हुए रकम बढ़ाने की मांग कर रहे हैं।

भानु प्रताप कहते हैं, “सरकार ने मृत किसानों के परिवार वालों को एक-एक करोड़ रुपए देने का ऐलान किया है, जो पर्याप्त नहीं है। सरकार को इसे बढ़ाकर प्रत्येक पीड़ित परिवार को पांच-पांच करोड़ रुपए देना चाहिए।”

वह कहते हैं, “सरकार जल्द से जल्द किसान आयोग का गठन करे। खुद किसानों को फसल का दाम तय करने की छूट मिलनी चाहिए। सरकार फसल की लागत तय नहीं कर सकती, क्योंकि उसे इस बारे में कुछ पता ही नहीं है। अगर किसान को अपनी फसल का वाजिब दाम नहीं मिलेगा तो वह कर्ज में डूबेगा ही। सरकार की किसान विरोधी नीतियों की वजह से किसानों की दुर्दशा हो रही है।”

कृषि उत्पादों की बेहतर कीमत और कर्ज माफ करने को लेकर किसानों ने एक जून को आंदोलन शुरू किया था। यह आंदोलन तब हिंसक हो उठा, जब मंदसौर जिले में छह जून को पुलिस गोलीबारी में छह किसानों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए।

भारतीय किसान संघ के क्षेत्रीय संगठन सचिव शिवकांत दीक्षित ने बताया, “किसान आंदोलन को शुरू से ही राजनीतिक रंग दिया जाता रहा है। किसान कर्ज के बोझ में दबा है, फसलों के वाजिब दाम नहीं मिल रहे हैं, हमारी तकलीफों को देखकर भी उससे मुंह मोड़ा जा रहा है, ऐसे में किसान आंदोलन नहीं करे तो और क्या करे?”

देशभर में एक के बाद एक राज्यों में किसान सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर रहे हैं। इसी कड़ी में दिल्ली के जंतर मंतर पर 15 जून को किसान संगठनों की महपंचायत होने जा रही है तो किसानों ने 16 जून को देशभर के राष्ट्रीय राजमार्ग पर चक्का जाम करने का फैसला किया है। आम किसान यूनियन के अध्यक्ष केदार सिरोही कहते हैं, किसान आंदोलन को हल्के में लेना भूल होगी, क्योंकि हम अपना हक मांग रहे हैं और यह हमारे अस्तित्व को बचाए रखने की लड़ाई है।

(ये लेखक के अपने निजी विचार हैं।)

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