सोशल नेटवर्किंग पर कई मिसालें भी हैं

डॉ दीपक आचार्य | Jul 14, 2017, 11:06 IST

करीब 1999 की बात है जब मेरे गृहनगर छिंदवाड़ा (मप्र) में इंटरनेट ने पहली बार कदम रखा था, देखते ही देखते शहर में 2-3 इंटरनेट कैफे भी खुल गए। 80 रुपए प्रति घंटे की दर से कोई भी व्यक्ति इंटरनेट चलाना सीख सकता था। उसी दौर में लोगों को याहू के चैट रूम्स की जानकारी मिली और फिर शहर का युवा इंटरनेट कैफे में घंटों बैठकर वर्चुअल दुनिया की सैर करने लगा, अनजाने लोगों से बतियाने लगा और अपनी जेब भी ढीली करने लगा।

चैट रूम में हर वर्ग, उम्र, विषय और पसंद के आधार पर रूम्स हुआ करते थे। एक दौर ऐसा भी आया था जब इंटरनेट कैफे में बैठने का अर्थ यही हो चुका था कि बन्दा चैटिंग कर रहा है। टेक्नोलॉजी जब भी हमारे समाज में पैर पसारती है, लोग इसका दुरुपयोग ज्यादा करने लगते हैं। उस दौर में शहर के लड़के वर्चुअल रोमांस और चैटिंग में व्यस्त थे, मैंने भी चैटिंग करी लेकिन अपने पसंद के चैट रूम 'प्लांट साइंस' में।

इसी चैट रूम में मेरी मुलाकात अमेरिकन बॉटनिस्ट और इलसट्रेशन एक्सपर्ट शेरी एम्ज़ेल से हुई थी। करीब 2 वर्षों तक हम अपने विषय और अनुभवों पर बात करते रहे और फिर हम दोनों ने एक किताब भी लिख दी। चैटिंग रूम्स में बतियाते हुए किताब लिख देने की बात कई लोगों को हज़म भी नहीं हुई थी। तब से लेकर अब तक मैंने इंटरनेट का सकारात्मक इस्तेमाल ही किया है।

पिछले एक दशक में इंटरनेट ने एक नए बदलाव को जन्म दिया है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स और फोन एप्लीकेशंस नें जबरदस्त क्रांति ले आए हैं लेकिन आज भी फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म गलत तरीकों से और गलत बातों के लिए उपयोग में लाए जा रहे हैं। फेसबुक और व्हाट्सएप से तो मैं खुद त्रस्त हो चुका हूं। सुबह होते ही गुड मॉर्निंग, नीति वचन, फूल- गुलाबों के गुच्छे, जाति, राजनीति और साधू बाबाओं के ज्ञान विचार लोग ऐसे फॉरवर्ड करते हैं जैसे एक-एक बात को वो असल जिंदगी में अमल करते हों। इस तरह के मैसेजेस देखते ही मेरा तो मूड खराब हो जाता है।

यही हाल ट्विटर और फेसबुक का है। लेकिन, सोशल नेटवर्किंग के इस दौर में मेरी उम्मीद कहीं बचती दिखाई देती है तो वो व्हाट्सएप पर 'गिरनारी मंडल' जैसे ग्रुप और फेसबुक पर 'वन वगडो' जैसे गुजराती भाषा के पेज हैं जहां इस टेक्नोलॉजी का सटीक इस्तेमाल हो रहा है। इन दोनों जगहों पर ना कभी गुड मॉर्निंग होती है ना ही नीति वचनों की बमबारी बल्कि पेड़-पौधों की पहचान, उनके उपयोग, नई किताबों और लेखों की जानकारी और मुद्दे की बातों को समेटे इन दोनों जगहों पर हर दिन कुछ नया सीखने को मिलता है। सोशल नेटवर्किंग पर ऐसी मिसालें देखकर टेक्नोलॉजी को सलाम करने का मन करता है और इन प्लेटफॉर्म पर बने रहने की इच्छा रहती है।

इन दोनों की जगहों की खासियत है कि जब भी कोई भी ग्रुप सदस्य अर्थहीन पोस्ट साझा करता है, उसे तुरंत ग्रुप से बाहर कर दिया जाता है। मुझे कई बार पौधों की पहचान के सिलसिले में भटकना पड़ता था लेकिन अब अक्सर इन ग्रुप में पौधों की तस्वीरें साझा करके एक्सपर्ट्स से जानकारियों का आदान-प्रदान हो जाता है।

आज सोशल नेटवर्किंग जिस दौर से गुजर रहा है, वहां सकारात्मक और क्रिएटिव सोच वाले ग्रुप्स से ही उम्मीदें बची हुई हैं। इसी तरह के कुछ अन्य ग्रुप और पेज हैं जिन्हें मैं बेहद पसंद करता हूं और जिनमें बने रहने पर मुझे हमेशा खुशी होती है, सीखने को मिलता है। रोज नीतिवचनों की भरमार, गुड मॉर्निंग और गुड नाइट पढ़कर पता नहीं कितने लोगों की जिंदगी में बदलाव आ चुका है, मेरी जिंदगी में तो सिवाए सिरदर्द के कुछ नहीं।

(लेखक गाँव कनेक्शन के कंसल्टिंग एडिटर हैं और हर्बल जानकार व वैज्ञानिक भी।)

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