आखिर फसलों को लेकर चिंता किसे है?

डॉ दीपक आचार्य | Feb 06, 2017, 15:04 IST

इन दिनों जीएम (जेनेटिकली मोडिफाइड) यानि अनुवांशिक तौर पर रूपांतरित खाद्य पदार्थों और सब्जियों-फलों की बाजार में चर्चा ज़ोरों पर है। इसे प्रोत्साहित करने वाले ना सिर्फ नीति निर्धारक और मल्टीनेशनल कंपनियां हैं, बल्कि आप और हम सब भी हैं। चूहों पर किए गए आधुनिक प्रयोगों से जानकारी मिलती है कि बीटी (बैक्टिरिया बेसिलस थुरिंजिएंसिस) और जीएम युक्त भोज्य पदार्थों को खिलाने के बाद इनमें आर्थरायटिस, अपचन, ओस्टियोपोरोसिस, स्क्लेरोसिस, कई तरह के कैंसर, एलर्जी आदि होती हैं।

अनेक शोध पत्रों में करीब 65 से ज्यादा ऐसी स्वास्थ्य समस्याओं का जिक्र किया है जो चौंकाने के लिए काफी है। चूहों में शुक्राणुओं की कमी, मृत्यु दर में तेजी, नपुंसकता जैसे दुष्परिणामों को देखा गया। गायों में दुग्ध उत्पादन में कमी और सूअरों में प्रजनन क्षमता में कमी आदि समस्याओं की भी मुख्य वजह बीटी और जीएमयुक्त भोज्य पदार्थों का सेवन ही बताया गया है।

आखिर हो क्या रहा है? बीटी और जीएम युक्त भोज्य पदार्थों को बाज़ार में आने की पैरवी करने वाले नीतिनिर्धारकों और मल्टीनेशनल कंपनी के मालिकों ने अपने खुद के लाभ और बाज़ार की कमजोरी को एक औजार की तरह इस्तेमाल किया है, और जिसका पहला और मुख्य शिकार गरीब किसान हुआ है और अन्य शिकार वे सभी लोग जो बीटी और जीएम युक्त भोज्य पदार्थों सेवन कर रहे हैं। मल्टीनेशनल कंपनियों के हितों और आवक को ध्यान में रखकर बीटी और जीएम से जुड़े कई नकारात्मक पहलुओं को दबा दिया गया है। अब क्या किया जाए?

हमें नीतियों को बदलने की पैरवी नहीं करनी चाहिए, इसमें वक्त बर्बाद होगा, नीति निर्धारकों के निर्णय का इंतजार किया जाए तो समझ लीजिए तब तक सेहत बर्बादी का भारी विस्फोट हो चुका होगा और तब तक हम मनुष्यों के शरीर में खतरनाक जीन्स का आगमन हो चुका होगा, अब बेहतर है कि आमजनों को ही इसके दुष्प्रभावों की जानकारी दी जाए, उन्हें इस विषय पर पारंगत किया जाए ताकि वो भी इस तरह के जन-जागरण के लिए सक्रिय भूमिका निभा पाएं।

सरकार पर दबाव बनाकर यह तय किया जाए कि बीटी और जीएम युक्त भोज्य पदार्थों को लेबल पर लिखकर सूचना देना अनिवार्य हो ताकि लोग सेहत और जहर में से किसी एक को खुली आंखों से चुन सकें। शोध ये बताती हैं कि जीएम फसलों में जमीन से पोषक तत्वों के अवशोषण की क्षमता भी खत्म होती जाती है। अब इन परिणामों पर गौर करें तो दो बातें मुख्य तौर पर मुझे समझ पड़ती है।

पहली बात यह कि जीएम फसलों से प्राप्त फलों में अन्य यानि बगैर जीएम इंजीनियरिंग वाली सामान्य फसलों की तुलना में पोषक तत्वों की भारी कमी होती है और दूसरी बात यह कि जब फलों और सब्जियों में पोषक तत्व ही ना होंगे तो इन पर पोषक तत्वों को अपना भोज बनाने वाले बैक्टीरिया आदि नहीं लगेंगे यानि इन सब्जियों अथवा फलों की उम्र ज्यादा हो जाएगी, चमक और ताजगी बरकरार रहेगी लेकिन सोचने की बात ये है कि जिन खाद्य पदार्थों, फलों और सब्जियों में बैक्टीरिया जैसे सूक्ष्मजीवों तक के खाने के लिए कुछ ना बचा हो, क्या खाक हम मनुष्यों के लिए होगा इनमें? बीटी स्प्रे का इस्तेमाल किसान लंबे समय से करे जा रहे हैं, चूंकि बीटी एक नेचुरल बैक्टेरियम है, एन्वायरनमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी (ईपीए) और कई बायोटेक कंपनियां दावा करती हैं कि यह मानव सेवन के लिए किसी तरह से हानिकारक नहीं है, ये पूर्णत: दिग्भ्रमित करने जैसी बात है।

कई अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान पत्रिकाओं में प्रकाशित शोध रिपोर्ट्स को देखा जाए तो जानकारी मिलती है कि ये मानव सेहत के लिए बेहद घातक साबित हो सकते हैं। चूहों पर किए गए कई प्रयोगों के परिणामों से जानकारी मिलती है कि चूहों के शरीर की कोशिकाओं में तेजी से परिवर्तन देखने में आया और आहिस्ता-आहिस्ता कई तरह की घातक बीमारियां भी इन चूहों को होती गयी। बीटी का स्प्रे करने वाले भारतीय किसानों ने अपनी त्वचा पर अजीब से दाग, लालपन और खुजली जैसी समस्याओं की बात भी कही है, कई जगहों पर बीटी का स्प्रे होने के बाद जानवरों ने पौधों को खाया तो कई जानवरों को मृत होते भी पाया गया। बीटी का स्प्रे करना मात्र इतना घातक हो सकता है तो कल्पना कीजिए की इसे पौधों की भीतर प्रविष्ट करा दिया जाए तो क्या हाल होगा।

यद्यपि मानव मृत्यु जैसी खबरें अब तक जानकारी में नहीं हैं फिर भी शोध परिणामों को नकारना भी बेवकूफी से कम नहीं। यदि बीटी स्प्रे का असर मनुष्यों पर तेजी से नहीं होता है या तो यह कह देना कि यह हानिकारक नहीं, सरासर गलत है। इसके दुष्परिणाम कुछ समय बाद देखने में आने लगेंगे, इस बात का अंदाज़ा बीटी का स्प्रे वाली फसलों को अपना भोजन बनाने वाले जानवरों को देखकर लगाया जा सकता है।

(लेखक हर्बल विषयों के जानकार हैं। ये उनके निज़ी विचार हैं।)

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