इस स्कूल में खेती-किसानी के साथ ही कानून और अधिकारों की भी लगती है क्लास

Akankhya Rout | Sep 23, 2024, 18:45 IST
कभी साइकिल से अखबार बाँटा करते थे, जिससे वो अपनी पढ़ाई का खर्च निकाल सकें। उनकी मेहनत ही थी जो आज उन्हें इस मुकाम तक लेकर आयी और राष्ट्रपति ने उन्हें राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित किया।
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इस स्कूल के बच्चों को अपनी सिलेबस के साथ ही खेती-किसानी का भी ज्ञान है, यही नहीं अब तो यहाँ के बच्चे कानून और अधिकारों के बारे में भी जानते हैं, इसका श्रेय जाता है यहाँ के शिक्षक द्विति चंद्र साहू को।

द्विति चंद्र साहू, ओडिशा के रायगड़ा जिले के सरकारी हाई स्कूल बिल्लेसु में शिक्षक हैं। उन्हें इस साल राष्ट्रपति से शिक्षक पुरस्कार मिला है। लेकिन द्विती चंद्र साहू को यहाँ तक पहुँचने के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी।

द्विति चंद्र साहू, गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “सुबह सुबह उठकर मैं साइकिल लेकर अखबार की गठरी पकड़ गलियों में जाकर अखबार बाँटता था। जो भी पैसे आते थे, उसी से हमारा खर्चा चलता था। पढ़ाई के साथ-साथ मैंने अखबार बाँटने का काम किया ताकि अपना खर्च उठा सकूँ। घर से पैसे माँगना अच्छा नहीं लगता था, क्योंकि मेरी माँ भी घर-घर जाकर काम करती थीं और उसी से हमें पढ़ाई का खर्च मिलता था।"

जब साहू ने पत्रकारिता की पढ़ाई शुरू की, उन्हें हमेशा पैसों की कमी रहती थी। उन्होंने गरीबी और कठिनाइयों को नजदीक से देखा था, और यही कारण है कि वे चाहते थे कि कोई और बच्चा ऐसी कठिनाइयों का सामना न करे। साहू का मानना है कि निम्न मध्यम वर्ग के अभिभावकों के लिए अपने बच्चों को पढ़ाना कितना कठिन होता है। उन्होंने यह संकल्प लिया कि कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे और उसे दुनिया की हर चीज़ की जानकारी हो ताकि वह अपने जीवन में सफल हो सके और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सके।

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उनके इनोवेटिव आइडियाज और चीज़ों को समझाने के अनोखे तरीके, और पढ़ाई के साथ-साथ सह-पाठयक्रम गतिविधियों पर ध्यान देते हुए बच्चों को अपने अंदाज से सिखाने की कोशिशों ने आज उन्हें इस मुकाम पर पहुंचाया है।

आज, उसी माँ का बेटा, जिसने घर-घर जाकर काम किया, राष्ट्रपति से राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार प्राप्त कर चुका है। उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण ने उन्हें इस मुकाम तक पहुँचाया है, और उनकी यह प्रेरणा उनके छात्रों को भी जीवन में ऊँचाइयों तक पहुँचाने में मदद करेगी।

साहू ने कई किताबें भी लिखी हैं और वे एक प्रसिद्ध कॉलमनिस्ट हैं। उनके छात्र उनसे प्रेरणा लेकर कई नए क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर रहे हैं। वे अपने विद्यार्थियों को न केवल कैरियर काउंसलिंग देते हैं बल्कि उन्हें विभिन्न पेशों का प्रैक्टिकल ज्ञान भी प्रदान करते हैं। उनका उद्देश्य है कि कोई भी बच्चा जीवन में कहीं भी कभी रुके न, और वह अपने जीवन में कुछ बड़ा कर सके।

साहू ने पत्रकारिता को चुना, लेकिन फिर उन्होंने शिक्षक बनने का निर्णय लिया और शिक्षक प्रवेश परीक्षा दी, जिसमें वे सफल हुए। तब से वे शिक्षक के रूप में बच्चों को हर संभव अवसर देने की कोशिश करते आ रहे हैं। उनका मानना है कि पढ़ाई में रुचि न होने पर भी बच्चे अन्य कामों से आत्मनिर्भर बन सकते हैं, जैसे खेती करना या फिनाइल बनाना।

उनके स्कूल में बच्चे 24*7 उनके साथ रहते हैं, उनके स्कूल में 600 से ज्यादा बच्चे हैं, क्योंकि वह एक छात्रावास भी है। साहू अनुसूचित जनजाति के बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए प्रयास करते हैं।

उन्होंने बच्चों के लिए 'चाइल्ड रिपोर्टिंग क्लब' की शुरुआत की, जहाँ बच्चे रिपोर्टिंग और पत्रकारिता सीखते हैं। बच्चों की क्षमताओं को पहचानने और उन्हें सही दिशा में विकसित करने के लिए साहू कई पहल करते हैं।

साहू का मानना है कि बच्चों को प्रत्येक क्षेत्र का व्यावहारिक ज्ञान मिलना चाहिए। उनके स्कूल में 'मॉक पार्लियामेंट', 'बाल अदालत', 'बाल मैगज़ीन', 'आमअ बैंक', 'को-ऑपरेटिव स्टोर', और 'परिमल पाठशाला' जैसी सह-पाठयक्रम गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं, जिनसे बच्चों को वास्तविक जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करने की तैयारी मिलती है। इसके अलावा, साहू बच्चों को फिनाइल बनाना, खेती करना, और पर्यावरण संरक्षण के उपाय सिखाते हैं ताकि वे आत्मनिर्भर हो सकें।

“उनका लक्ष्य बच्चों को हर उस पेशे का ज्ञान देना है, जो उन्हें कभी असफल नहीं होने देगा। बच्चों के विकास और आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहित करने के लिए वे हर संभव प्रयास कर रहे हैं, ”साहू समझाते हुए कहते हैं।

‘ज्ञान बाँटने से ज्ञान बढ़ता है' द्विती ने अपने पत्रकारिता की पढ़ाई और अनुभव को व्यर्थ नहीं जाने दिया, बल्कि उसे बच्चों के साथ साझा किया। जहाँ कभी बच्चों को समझ नहीं होती कि रिपोर्टिंग क्या होती है, वहाँ उन्होंने उन्हें सिखाया 'चाइल्ड रिपोर्टिंग क्लब' की शुरुआत की।

"मेरा मानना है कि कोई भी बच्चा बेरोज़गार न हो। मेरी कोशिश रहती है कि बच्चों को हर वह पेशा और अनुभव दूँ जो ज़िंदगी में उन्हें कभी हारने नहीं देगा। कुछ ऐसा सिखा दूँ, जिससे वे जीवन में कामयाबी हासिल कर सकें और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो सकें। यही सोच मुझे इतनी सारी गतिविधियाँ करवाने के लिए प्रेरित करती है।"

"मेरे लिए शनिवार और रविवार एक जैसे होते हैं। मार्च ड्रिल के बाद स्टूडेंट कैबिनेट की बैठक होती है, जिसमें बच्चे तय करते हैं कि पूरे हफ्ते उन्हें क्या-क्या करना है। मैंने कभी भी स्कूल के नियमित क्लासेज़ को रोककर कोई काम नहीं किया। हमेशा शनिवार को ही करता हूँ, ताकि क्लासेज़ मिस न हों और बच्चे सीख भी जाएँ।"

"मॉक पार्लियामेंट"
"मॉक पार्लियामेंट में बच्चे अलग-अलग मंत्रालय के मंत्री बनते हैं और उनका निर्णय लेते हैं। इससे बच्चे समझ जाते हैं कि हमारे देश में कितने मंत्रालय हैं, उनके काम क्या होते हैं, वे कैसे चलते हैं। बच्चे स्कूल के सभी निर्णय खुद से लेते हैं। जैसे, कोर्स ख़त्म नहीं हुआ तो अतिरिक्त क्लासेज़ लगाना, सफाई के लिए झाड़ू का इंतज़ाम करना, और स्कूल के लिए बजट तैयार करना। इसी साल जब बजट हुआ था, हमने अपने स्कूल में भी यह किया ताकि बच्चों को बजट सत्र का अनुभव हो। हम बच्चों को एक बजट देते हैं और उनसे पूछते हैं कि वे इसे कैसे इस्तेमाल करेंगे ताकि जनता को फायदा हो। इन गतिविधियों से बच्चों को भारत की आर्थिक स्थिति और प्रति व्यक्ति आय की समझ बढ़ती है, और उन्हें समझ आ जाता है कि एक नागरिक के नाते उन्हें पैसे के सही उपयोग का ज्ञान होना चाहिए।"

परिमल पाठशाला
साहू का फोकस बच्चों के भोजन, व्यक्तिगत सोच-विचार, पर्यावरण, और मासिक धर्म स्वच्छता जैसे विषयों पर है। हफ्ते के हर दूसरे दिन किसी न किसी टॉपिक पर विस्तृत चर्चा होती है ताकि बच्चों को अच्छे से समझ आए। प्रकृति, पर्यावरण और स्वास्थ्य हमारे लिए बहुत जरूरी हैं, इसलिए हम इन मुद्दों पर ध्यान देते हैं।

सह-पाठ्यचर्या संबंधी गतिविधियाँ
हफ्ते में हम कुछ न कुछ गतिविधि करते हैं, जैसे नृत्य, गाना, नाटक। कभी-कभी हम बच्चों को पास के गाँव में लेकर जाते हैं, जहाँ वे जागरूकता कार्यक्रम करते हैं। इससे बच्चों को भी सीखने का मौका मिलता है और वे खुद भी कुछ नया सीख जाते हैं। यहाँ के लोकल भाषा, जो कि कुई है, उसी में बच्चे नाटक प्रस्तुत करते हैं।

बच्चे गाँव के लोगों से बात करते हैं और उन्हें समझाते हैं कि वे पर्यावरण को कैसे साफ रखें और मच्छरदानी लगाकर सोएं ताकि बीमारियों से बचा जा सके।

बाल मैगज़ीन
"बच्चे जो कुछ गाँव वालों से बातचीत में सीखते हैं या अवेयरनेस प्रोग्राम में करते हैं, या किसी हफ्ते में यदि कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम होता है, तो उस पर वॉल मैगज़ीन के लिए आर्टिकल लिखते हैं।"

बाल अदालत
हर रविवार को बाल अदालत का आयोजन होता है। कभी-कभी बच्चों के बीच झगड़ा हो जाता है, जो भी पूरे हफ्ते हुआ होता है, उसे हम रिकॉर्ड करते हैं। फिर, जज के सामने पूरे सबूतों के साथ पेश किया जाता है, जैसे असली अदालत में होता है। यहाँ बच्चों को शपथ ग्रहण से लेकर बहस करना सिखाया जाता है। बाल अदालत का आयोजन इसलिए करते हैं ताकि बच्चों को क़ानून और धाराओं का ज्ञान हो। अगर कोई गलती करता है, तो उसे समझ आता है कि उनके साथ आगे क्या हो सकता है। अगर उनके साथ कुछ गलत होता है, तो वे अपने लिए सही कदम उठा सकें। इससे बच्चों के आपसी झगड़े भी सुलझ जाते हैं और उन्हें अदालत और क़ानून की समझ मिल जाती है।

आमअ बैंक
"बच्चे यहाँ से उधार ले सकते हैं और घर से पैसे आने के बाद उसे बिना ब्याज के वापस कर सकते हैं। बच्चों के पैसे चोरी हो जाते थे, इसलिए हमने आमअ बैंक की शुरुआत की, जिसमें बच्चे अपने पैसे बैंक में सुरक्षित रखते हैं। जब उन्हें पैसे चाहिए होते हैं, तो वे यहाँ से ले सकते हैं। बच्चे ही इस बैंक के अकाउंटेंट, कैशियर और मैनेजर बनते हैं।"

को-ऑपरेटिव स्टोर
"स्कूल और कॉलेज के पास जो दुकानें होती हैं, वे अपना फायदा देखती हैं। लेकिन हमने इस विचार को बदलते हुए बच्चों के फायदे के लिए एक को-ऑपरेटिव स्टोर शुरू किया। यहाँ लाभ-हानि को ध्यान में न रखते हुए, बच्चों के दैनिक उपयोग के सामान कम पैसों में उपलब्ध कराए जाते हैं। सारे सामान हम होलसेल में लाते हैं और उसी होलसेल प्राइस में बच्चों को बेचते हैं ताकि उन्हें मार्केट प्राइस से कम कीमत पर चीज़ें मिल सकें। और अच्छी बात यह है कि इसे बच्चे ही मैनेज करते हैं।"

प्रोजेक्ट वर्क
शनिवार को बच्चों को प्रोजेक्ट दिया जाता है, और वे सोमवार को उसे पूरा करके लाते हैं। इसमें कभी हैंडक्राफ्ट जैसे राखी बनाना या कोई और चीज़ हाथ से बनाना होता है।

बिजली और इंटरनेट की कमी
ओडिशा के अधिकांश भाग में इंटरनेट और बिजली नहीं होती। इसे मैंने अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। मैं दूर-दूर के इलाकों में जाकर वीडियो डाउनलोड करता हूँ और स्कूल में बच्चों को दिखाता हूँ ताकि उनकी पढ़ाई में सहूलियत हो। बच्चों के लिए मैं हमेशा प्रतिबद्ध रहता हूँ।

"यदि पढ़ाई करने का मन नहीं है, तो भी मैं उन्हें आगे बढ़ने के तरीके सिखाता हूँ। मैंने उन्हें खेती और फिनाइल बनाना सिखाया है।"
किसी भी प्रोफेशन को न छोड़ते हुए, उनके बच्चों ने शॉर्ट फिल्म भी बनाई है, जिसे खुद ही शूट करके "कल्लोला शॉर्ट फिल्म" (Kallola Short Film) यूट्यूब चैनल पर प्रकाशित किया गया था।

अभिभावक राजा सरकार गाँव कनेक्शन से कहते हैं, “इतने इंटरेस्ट लेकर प्रैक्टिकली समझाते हैं। मैंने अपनी बेटी से पूछा, ‘तुम ये सब कहाँ से समझे हो?’ उसने कहा कि हमारे स्कूल के टीचर द्विती सर हमें सब कुछ सरलता से समझाते हैं। पहले तो मैं क्लास में जवाब नहीं दे पाती थी, न ही प्रश्न पूछ पाती थी, पर अब मुझमें आत्मविश्वास आ गया है, क्योंकि सर हमसे जो भी एक्टिविटीज करवाते हैं, उनसे मैं सीख गई हूँ।"

10वीं क्लास की छात्रा वनश्री मंदंगी कहती हैं, "बहुत अच्छा लग रहा है कि सर को राष्ट्रपति पुरस्कार मिल रहा है। सर हमेशा सरल भाषा में पढ़ाई को समझाते हैं और जो अलग-अलग एक्टिविटीज कराते हैं, उनसे हम सब कुछ समझ जाते हैं।”

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