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ओडिशा के इस टीचर को इसलिए चलता फिरता ब्लड बैंक कहने लगे हैं लोग

Darshan Sharma | Aug 30, 2023, 11:13 IST
ओडिशा के नुआपड़ा निवासी किशोर परीडा सिर्फ एक आदर्श टीचर नहीं हैं मरीजों की जान भी बचाते हैं। पिछले 30 साल में वो 88 बार रक्तदान कर चुके हैं। कोई उन्हें चलता फिरता ब्लड बैंक कहता है तो कोई ब्लड एंबेसडर के नाम से पुकारता है।
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नुआपाड़ा (ओडिशा)। क्लास में जब भी परीडा सर बच्चों को रक्तदान के बारे में बताते हैं उनसे फिर पूछते भी हैं कि क्या तुम लोग रक्तदान करोगे? तो सारे बच्चे एक स्वर में उत्तर देते हैं, "हाँ सर"।

इस तरह किशोर परीडा सर भविष्य के रक्तवीर तैयार कर रहे हैं जो बड़े होकर रक्तदान कर दूसरों की जान बचाएँगे। रक्तदान के प्रति परीडा सर में गजब का जुनून है। यही वो कारण है जिसके चलते हज़ारों लोगों की जान भी बची है।

30 साल पहले घटी एक घटना के बाद से परीडा सर दूसरों की जान बचाना अपने जीवन का मकसद मानते हैं। किशोर परीडा उस दिन को याद करके बताते हैं, "साल 1993 की बात है। मेरे दोस्त संतोष सुपकार ने बताया कि इमरजेंसी में एक गर्भवती महिला के लिए रक्त की ज़रूरत है। महिला की हालत नाजुक बनी हुई थी।" दोस्त के कहने पर 18 साल की उम्र में किशोर ने पहली बार रक्तदान किया। महिला की जान बची तो उन्हें अहसास हुआ कि इससे ज़्यादा पुण्य का काम और क्या हो सकता है।

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बस उसी दिन से उन्होंने नियमित रक्तदान करना शुरू किया और दूसरों को भी जागरूक करने लगे। तब से अबतक वे 88 बार रक्तदान कर चुके हैं और दूसरों से रक्तदान करवा कर हजारों लोगों की जान बचा चुके हैं।

शिक्षक किशोर परीडा वर्तमान में कुलियाबंधा उच्च प्राथमिक विद्यालय में नियुक्त हैं। मूलरूप से जिले के मागुरपानी गाँव के रहने वाले हैं। उन्होंने स्थानीय नेशनल कालेज से स्नातक तक की पढ़ाई पूरी की है। राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) और नेहरू युवा केंद्र के सक्रिय सदस्य रह चुके हैं। किशोर ने साल 1998 से 2003 तक एक निजी स्कूल में पढ़ाया। फिर 2005 में सरकारी शिक्षक के रूप में नौकरी लग गई। पढ़ाने के दौरान वे बच्चों को रक्तदान के महत्व भी समझाते हैं।

“मेरे अंदर बचपन से दूसरों की मदद करने की इच्छा रही है। अपने शिक्षकों और एनएसएस से मुझ में सेवाभाव आया है।” किशोर ने गाँव कनेक्शन को बताया।

ब्लड बैंक में होने वाली रक्त की कमी को अकेले एक व्यक्ति पूरा नहीं कर सकता है। ऑपरेशन के समय, दुर्घटना में घायल, एनीमिया से पीड़ित मरीज आदि के लिए रोज़ खून की जरुरत पड़ती है।

किशोर कहते हैं, “ब्लड बैंक में रक्त की कमी होने का एक कारण लोगों में रक्तदान के प्रति जागरूकता का अभाव है।” पहली बार खुद रक्तदान करने के बाद उन्होंने दूसरे लोगों को भी रक्तदान के प्रति जागरूक करना शुरू किया। युवा संगठन, महिला समूह, सामाजिक संस्था आदि के साथ बैठक कर लोगों को इस महादान के फायदों के विषय में बताया और इससे जुड़े भ्रम दूर करने लगे। वे लोगों को समझाते हैं कि, “खून कुएँ के पानी की तरह है। एक बार निकल गया तो नया खून फिर शरीर में बन जाएगा।”

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उनसे पढ़े जो बच्चे बड़े हो गए हैं वो उनसे प्रेरित होकर आज नियमित रक्तदान करते हैं। कुछ बच्चे ऐसे हैं जो बड़े होकर किशोर परीडा जैसा बनना चाहते हैं। बच्चे ही नहीं बल्कि उनके सहकर्मी और उच्च अधिकारी भी उनसे प्रेरित होकर रक्तदान करने लगे हैं।

जिले में शिक्षा विभाग द्वारा समय समय पर रक्तदान शिविर का आयोजन किया जा रहा है जिसमें किशोर के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। नुआपड़ा ब्लाक शिक्षा विभाग द्वारा अलाइव ब्लड बैंक मुहिम शुरू की गई है। जिसके द्वारा विभाग से जुड़े किसी व्यक्ति को कभी भी खून की जरूरत पड़ने पर विभाग से कोई भी तुरंत रक्तदान करेगा।

शिक्षक किशोर परीडा बीते करीब 30 साल से यह काम कर रहे हैं। साल 2002 से इंडियन रेडक्रॉस सोसाइटी के आजीवन सदस्य हैं। वे बताते हैं, "उन्हें रोज़ाना खून के लिए चार-पाँच कॉल आते हैं। कभी कभी यह संख्या और भी बढ़ जाती है। दिन हो या रात वे हर समय लोगों की मदद करने को तैयार रहते हैं। तीन से चार मरीजों के लिए खून की व्यवस्था हो जाती है।"

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“मैं सभी से कहता हूँ; धैर्य रखो, मैं रक्त की व्यवस्था करता हूँ। किसी को कुछ देना नहीं है। किसी को कुछ देना नहीं है का मतलब यह है कि खून के बदले किसी दलाल को पैसे नहीं देने है।” किशोर ने गाँव कनेक्शन को बताया।

किशोर, रक्तदान के लिए कार्य करने वाले संगठनों से जुड़े हुए हैं। इसलिए उनका नंबर आसानी से मिल जाता है। कई बार ब्लड बैंक के कर्मचारी ही किशोर का नंबर दे देते हैं। मरीज के परिजनों से बात करने के बाद या रक्त की आवश्यकता होने की सूचना मिलते ही किशोर डोनर ढूंढना शुरू कर देते हैं।

“मैं अपने फोन पर लोगों के मोबाइल नंबर सेव करने के दौरान नाम के साथ ब्लड ग्रुप भी लिख देता हूँ। इससे जरूरत पड़ने पर ब्लड ग्रुप के हिसाब से डोनर खोजने में आसानी होती है। मोबाइल में एक हज़ार से अधिक नंबर हैं। मैं डोनर को मरीज के विषय में बताता हूँ और रक्तदान करने का निवेदन करता हूँ। क्योंकि डोनर और मरीज परिचित नहीं होते हैं इसलिए कई बार खुद डोनर को ब्लड बैंक तक लेकर जाता हूँ और ब्लड डोनेट करवाता हूँ।" किशोर ने आगे बताया।

किसी डोनर को रक्तदान करने के लिए राजी करना ही मुख्य चुनौती होती है। कई बार मरीजों के परिजन रक्त के लिए इधर- उधर भटकते रहते हैं पर जागरूकता के अभाव में खुद रक्तदान नहीं करते है। किशोर उन्हें समझाते हैं और मोटिवेट करके उनसे रक्तदान करवाते हैं।

किशोर बताते हैं, “एक बार की बात है। मुख्यमंत्री जिला दौरे पर आने वाले थे। किसी भी आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए सभी विभाग अलर्ट पर थे। पर ब्लड बैंक में सीएम के ब्लड ग्रुप का ब्लड उपलब्ध नहीं था। आनन फानन में ब्लड बैंक के एक कर्मचारी ने मुझसे संपर्क किया। तब मैंने तीन यूनिट ब्लड की व्यवस्था की थी।”

खुद बनना पड़ता है उदाहरण

खून की कमी को दूर करने विभिन्न संगठनों द्वारा रक्तदान शिविर का आयोजन किया जाता है। किशोर परीडा अब तक चार सौ से अधिक शिविरों में शामिल होकर सहयोग दे चुके हैं। वे लोगों को मोटिवेट कर इन शिविरों में रक्तदान करवाते हैं। साथ ही रक्तदाताओं का उत्साह बढ़ाने उन्हें मेहमान के तौर पर भी आमंत्रित किया जाता है। “किसी से कुछ करवाने से पहले खुद वह काम करना पड़ता है। खुद उदाहरण बनना पड़ता है तब दूसरों को विश्वास होता है। मैं अपना उदाहरण देकर लोगों से रक्तदान करने की अपील करता हूँ।”,उन्होंने कहा।

कोरोना काल में भी जारी रही सेवा

एक ओर कोरोना काल में जहाँ लोग अपने घरों में दुबके हुए रहते थे वहीं अपनी परवाह किए बिना किशोर दूसरों की मदद के लिए तत्पर रहते थे। कोरोना काल में भी उनकी सेवा निरंतर जारी रही। ब्लड बैंक में रक्त की कमी न हो इसलिए मास्क पहनकर, सैनिटाइजेशन और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे नियमों का पालन करते हुए किशोर ने ब्लड बैंक जाकर खुद रक्तदान किया और दूसरों से भी करवाया। कोरोना काल के दौरान लगातार करीब 25 शिविर आयोजन में किशोर ने अपना योगदान दिया।

इस सेवाकार्य के लिए उन्हें कई सम्मान मिल चुके हैं जिसमें "ब्लड डोनर ऑफ द डिकेड" भी शामिल है। किशोर एक आदर्श शिक्षक हैं। उत्कृष्ट शिक्षक पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में उल्लेखनीय काम के लिए उन्हें दो बार प्रकृति बंधु पुरस्कार भी मिला है। किशोर कहते हैं, “अवार्ड मेरी जिंदगी का मकसद नहीं है। कैसे दूसरों के काम आऊं, कैसे रक्त का अभाव दूर हो, यह कल भी मेरा मिशन था, आज भी है। ”

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