बच्चों को मोबाइल और लैपटॉप देने के बाद उन पर निगाह जरूर रखें
गाँव कनेक्शन | May 10, 2019, 07:53 IST
अगर आपको लगता है कि बच्चे आपसे भावनात्क रूप से थोड़ा अलग हो रहे हैं तो उनके पीछे न पड़कर उनकी जरुरतों को समझें, इंटरनेट की दुनिया कभी न खत्म होनी वाली है इसलिए उसके फायदे और नुकसान दोनों बताएं
सोलह साल का रोहन पढ़ाई में बहुत अच्छा था। खेल-कूद में भी उसने कई पुरस्कार जीते थे। दसवीं की परीक्षा में 90 प्रतिशत अंक लाने पर उसको एक अच्छा वाला मोबाइल फ़ोन उपहार के रूप में मिला। उसके बड़े भाई ने उसको प्ले स्टेशन भी दिया। धीरे-धीरे उसने सभी सोशल मीडिया की साइट्स पर अपना अकाउंट खोल लिया और प्ले स्टेशन पर हर समय खेल खेलना शुरू कर दिया।
जब घर वाले उसे टोकते थे तब घर में चीखना-चिल्लाना और मारपीट की नौबत आ जाती थी। छह माह बाद हुई परीक्षा में रोहन के 40 प्रतिशत अंक आए। उसकी सेहत भी ख़राब हो गई और वह हमेशा चिड़चिड़ा रहने लगा। उसकी नींद भी पूरी नहीं होती थी। परिवार वालों ने फिर मनोचिकित्सक और मनोवैज्ञानिक की सलाह ली।आज रोहन पहले से बेहतर है।
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प्रतीकात्मक तस्वीर साभार: इंटरनेट
यह आपके घर में भी हो सकता है। बच्चों को मोबाइल,लैपटॉप देने के बाद कड़ी निगाह रखें। उनके सोशल मीडिया के साइट्स को नियमित रूप से चेक करें। उनकों दोस्तों के साथ बाहर निकलने के लिए प्रोत्साहित करें। उनको पार्क जाना, साइकिल चलाना और व्यायाम के लिए प्रेरित करें।
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अगर घर का माहौल अच्छा है और परिवार के सदस्य नियमित रूप से व्यायाम करते हैं सौशल मीडिया पर सिर्फ जरूरी समय बिताते हैं तो बच्चों को भी सेहतमंद रखने की प्रेरणा मिलती है। अपना समय बच्चों के साथ व्यतीत करें। वर्चुअल और रियल दुनिया का फर्क उनको बताएं।
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अगर आपको लगता है कि बच्चे आपसे भावनात्क रूप से थोड़ा अलग हो रहे हैं तो उनके पीछे न पड़कर उनकी जरुरतों को समझें। यह उम्र का एक पड़ाव भी हो सकता है। इंटरनेट की दुनिया कभी न खत्म होनी वाली है। इसलिए उसके फायदे और नुकसान दोनों बताएं।
रात को सोने से पहले सारे गैजेट्स बच्चों से ले लें। बचपन से ही उनको कहानी या किताबें पढ़ने की आदत डालें, जिससे खाली समय में फोन के बदले किताब पढ़ें। प्यार से माहौल को संभालें और अगर आपको लगता है कि दिक्कत बढ़ रही है तो डॉक्टर की सलाह लें।
डॉ. शाज़िया सिद्दकी, मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञ एवं विश्लेषक
7607358897
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जब घर वाले उसे टोकते थे तब घर में चीखना-चिल्लाना और मारपीट की नौबत आ जाती थी। छह माह बाद हुई परीक्षा में रोहन के 40 प्रतिशत अंक आए। उसकी सेहत भी ख़राब हो गई और वह हमेशा चिड़चिड़ा रहने लगा। उसकी नींद भी पूरी नहीं होती थी। परिवार वालों ने फिर मनोचिकित्सक और मनोवैज्ञानिक की सलाह ली।आज रोहन पहले से बेहतर है।
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यह आपके घर में भी हो सकता है। बच्चों को मोबाइल,लैपटॉप देने के बाद कड़ी निगाह रखें। उनके सोशल मीडिया के साइट्स को नियमित रूप से चेक करें। उनकों दोस्तों के साथ बाहर निकलने के लिए प्रोत्साहित करें। उनको पार्क जाना, साइकिल चलाना और व्यायाम के लिए प्रेरित करें।
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अगर घर का माहौल अच्छा है और परिवार के सदस्य नियमित रूप से व्यायाम करते हैं सौशल मीडिया पर सिर्फ जरूरी समय बिताते हैं तो बच्चों को भी सेहतमंद रखने की प्रेरणा मिलती है। अपना समय बच्चों के साथ व्यतीत करें। वर्चुअल और रियल दुनिया का फर्क उनको बताएं।
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अगर आपको लगता है कि बच्चे आपसे भावनात्क रूप से थोड़ा अलग हो रहे हैं तो उनके पीछे न पड़कर उनकी जरुरतों को समझें। यह उम्र का एक पड़ाव भी हो सकता है। इंटरनेट की दुनिया कभी न खत्म होनी वाली है। इसलिए उसके फायदे और नुकसान दोनों बताएं।
रात को सोने से पहले सारे गैजेट्स बच्चों से ले लें। बचपन से ही उनको कहानी या किताबें पढ़ने की आदत डालें, जिससे खाली समय में फोन के बदले किताब पढ़ें। प्यार से माहौल को संभालें और अगर आपको लगता है कि दिक्कत बढ़ रही है तो डॉक्टर की सलाह लें।
डॉ. शाज़िया सिद्दकी, मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञ एवं विश्लेषक
7607358897
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