कितनी दालों को पहचान पाते हैं आप?

Deepak Acharya | Apr 25, 2019, 09:51 IST
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हिंदुस्तान की कोई ऐसी रसोई नहीं जहां दाल ना पकायी जाती हो। दाल का नाम सुनते ही हमें अरहर, मूंग, उड़द, चना, मसूर से बनी स्वादिष्ट दालों के नाम जरूर याद आते हैं लेकिन बहुत कम लोग ऐसे हैं जो इन दालों को देखते ही पहचान पाते हैं। आम तौर पर सभी जानते हैं कि दालों में प्रचूर मात्रा में प्रोटीन्स पाए जाते हैं और ये सेहत के लिए टॉनिक की तरह काम करती हैं लेकिन इनके कई ख़ास अन्य औषधीय गुण भी हैं जिन्हें आमतौर पर लोग नहीं जानते। यहाँ तक कि एक थाली में कच्ची दालों को एक साथ सजाकर रख दिया जाए तो बहुत कम लोग होंगे जो इन दालों को पहचान पाएंगे।

उड़द, मूंग, अरहर, मसूर आदि के बीजों से प्राप्त होने वाली दालें भारतीय किचन का एक प्रमुख हिस्सा है, इनकी खेती पूरे भारत में होती है। छिल्कों वाली उड़द को काली उड़द और बगैर छिल्कों की उड़द को सफेद उड़द के नाम से बाजार में जाना जाता है।

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दाल के रूप में उपयोग में लिए जाने वाली सभी दलहनों में अरहर का प्रमुख स्थान है। अरहर को तुअर या तुवर भी कहा जाता है। अरहर के कच्चे दानों को उबालकर पर्याप्त पानी में छौंककर स्वादिष्ट सब्जी भी बनाई जाती है। आदिवासी अंचलों में लोग अरहर की हरी-हरी फलियों में से दाने निकालकर उन्हें तवे पर भूनकर भी खाते हैं। इनके अनुसार यह स्वादिष्ठ होने के साथ-साथ पौष्टिक भी होते हैं।

मसूर की गुलाबी दाल को भी एक अत्यंत पौष्टिक दाल के रूप में जाना जाता है। इसमें भी विटामिन्स, खनिज लवण खूब पाए जाते हैं और ख़ास बात ये कि इसमे कोलेस्ट्रॉल नगण्य मात्रा में होता है। इसमें कैल्सियम, पोटेशियम, लौह तत्व, मैग्नेशियम, मैंगनीज जैसे तत्व आदि भी भरपूर पाए जाते है और आदिवासी अंचलों में इसे बतौर औषधि कई हर्बल नुस्खों में उपयोग में लाया जाता है।

मूंग की दाल भी खूब स्वादिष्ट और पौष्टिक होती है। इसके साबुत दानों को लोग बतौर स्प्राउट्स खाते हैं और ये शक्तिवर्धक होती है इसके साबुत दानों को तोड़कर दाल बनाई जाती है जिसका इस्तेमाल खिचड़ी बनाने में भी होता है और यह भी अनेक माइक्रो और मैक्रो न्यूट्रिएंट्स से भरपूर होती है।

चना भी पौष्टिक होने के साथ साथ ऊर्जा देने वाला होता है। इसकी दाल भारतीय रसोई में अनेक व्यंजनों को तैयार करने में इस्तेमाल की जाती है। इसके आटे को बेसन कहा जाता है। बेसन का इस्तेमाल बतौर पारंपरिक कॉस्मेटिक्स के तौर पर किया जाता है।

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इंटरनेट युग मे बच्चे गाड़ियों के लोगो जरूर पहचान जाते हैं लेकिन दालों और अनाजो की पहचान उन्हें नहीं है। सभी पेरेंट्स की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि आने वाली पीढ़ी को हमारी सांस्कृतिक और खाद्य शैली से परिचित करवाएं। बाजार ले जाकर बच्चों को दालों, अनाजों आदि से परिचित करवाएं ताकि उन्हें औपचारिक ज्ञान के अलावा अनौपचारिक तौर से भी बेहतर बनाया जा सके।

'हर्बल आचार्य' के आने वाले किसी एपिसोड में दालों के औषधीय गुणों पर विस्तृत चर्चा भी करी जाएगी। देखते रहें इस शो को और 'गाँव कनेक्शन' के यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब भी करें।

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