महिलाओं में सामान्य हैं ये पांच बीमारियाँ

Payal Jain | Jul 18, 2019, 11:10 IST
कई ऐसी भी महिलाएं हैं जो इन बीमारियों के अवगत ही नहीं है, या पता होने के बावजूद ध्यान नहीं देतीं...
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लखनऊ। देश भर में कितनी महिलाएं हैं, जो इन बीमारियों से अवगत ही नहीं हैं और जो अवगत हैं वो इन पर ध्यान नही देती हैं, जबकि ज्यादातर महिलाओं में ये बीमारियां सामने आती हैं। स्तन कैंसर, सर्वाइकल कैंसर, विटामिन डी एफिसियेंसी, पी.ओ.सी. (पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम), एनीमिया यह वो खतरनाक बीमारियाँ हैं, जिन्हें महिलाएं पहचान नहीं पाती हैं और इसका शिकार हो जाती हैं।

स्तन कैंसर

स्तन कैंसर को समझाना बहुत ही आसान है, महिलाएं स्वयं ही लक्षण समझ सकती हैं। महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. शिल्पी राय बताती हैं, "महिलाएं खुद अपने स्तन के आकार में बदलाव महसूस कर सकती हैं और साथ ही उसमें होने वाली गांठ, स्तन में दर्द महसूस होना, स्तन से खून आना, स्तन में सूजन और उसका लाल होना, इसके लक्षण नज़र आते हैं।"

वर्ष 2012 की एक सर्वेक्षण के रिपोर्ट के अनुसार पूरे विश्व में स्तन कैंसर के साढ़े दस लाख नये मरीज पाए गये, जिसमें स्तन कैंसर से 3.73 लाख की मृत्यु हुई। भारत में पिछले वर्ष स्तन कैंसर होने की औसतन उम्र 30 से 50 वर्ष तक पाई गयी।

"स्तन में गांठ होना जरूरी नहीं कि कैंसर हो लेकिन फिर भी गांठ के महसूस होने पर तुरंत अपने स्थानीय अस्पताल में मेमोग्राफी कराएं। यह एक प्रकार का एक्स-रे होता है जो शुरुआती समय में ही बीमारी का पता लगा लेता है। मेमोग्राफी में चावल के दाने बराबर शुरुआती गांठ का भी पता चल जाता है। बीमारी का सही वक्त पर पता लगने पर जरूरी नहीं कि स्तन को निकला जाये बल्कि उसका इलाज भी संभव हैं," डॉ. शिल्पी ने बताया।

स्तन कैंसर से बचने के उपाय

- समय-समय पर महीने में एक बार अपने स्तन की जांच करें।

- रजोनिवृत्ति के बाद हार्मोन के इलाज से बचें।

- रजोनिवृत्ति के बाद मोटापे से बचें।

- व्यायाम करें और योग करें।

- जिन लोगों के घर में स्तन कैंसर हुआ है उनके घर में स्तन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है इसलिए स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहें।

- बढ़ती उम्र में बच्चे होने से स्तन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।

- जिन्हें बच्चे नहीं होते उनको भी स्तन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है, बच्चों को स्तनपान जरुर करवाएं और परिवार को जल्दी पूरा कर लें।

- हार्मोन थेरेपी से बचें

सर्वाइकल कैंसर

सर्वाइकल कैंसर के बारे में डॉ. शिल्पी बताती हैं, "स्तन कैंसर के आलावा महिलाओं में सबसे अधिक होने वाला कैंसर है, सर्वाइकल कैंसर। यह गर्भाशय के निचले हिस्से में ग्रीवा की कोशिकाओं में पैदा होता है। प्रमुख रूप से यह कैंसर पेपीलोमा वायरस के कारण होता है, जिसे एचपीवी (ह्यूमन पेपीलोमा वायरस) भी कहा जाता है।"

आंकड़ों के अनुसार, भारत में ग्रीवा कैंसर के लगभग 1,22,000 नए मामले सामने आते हैं, जिसमें लगभग 67,500 महिलाएं होती हैं। कैंसर से संबंधित कुल मौतों का 11.1 प्रतिशत कारण सर्वाइकल कैंसर ही है। यह स्थिति और भी खराब इसलिए हो जाती है कि देश में मात्र 3.1 प्रतिशत महिलाओं की इस हालत के लिए जांच हो पाती है, जिससे बाकी महिलाएं खतरे के साये में ही जीती हैं।

"सर्वाइकल प्रॉब्लम कम उम्र की लड़कियों को भी हो जाता है। खास तौर पर सफाई पर ध्यान न देने वाली महिलाओं को इस बीमारी का सामना करना पड़ता है। माहवारी के वक्त सफाई का ध्यान न देना कैंसर जैसी बीमारी का रूप ले लेता है। माहवारी के वक्त दुनिया भर में कितनी महिलाएं ऐसी हैं जो सेनेटरी पैड्स का प्रयोग नहीं करती, जो उनके लिए न जाने कितनी बीमारियाँ पनप जाती हैं और वह चलकर कैंसर जैसी बड़ी बीमारी का रूप ले लती हैं," डॉ. शिल्पी आगे बताती हैं।

विटामिन-डी एफिसियेंसी

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के क्वीन मेरी अस्पताल की प्रोफेसर और महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. अंजू अग्रवाल बताती हैं, "हमारे देश में लगभग 70 प्रतिशत महिलाओं में विटामिन-डी की कमी होती है। इसकी वजह यह है कि महिलाएं अपना सारा वक्त घर के कम में लगा देती हैं और साथ ही वह धूप में जाना पसंद नहीं करती हैं। अगर किसी वजह से उन्हें धूप में जाना पड़ता है तो वह स्कार्फ से खुद को धूप से बचा लेती हैं।"

"महिलाओं को ऐसा लगता है कि वे खुद को धूप से बचाकर अपने आप को सुरक्षित करती हैं लेकिन यह उनकी सबसे बड़ी गलतफहमी है। विटामिन-डी के लिए सूरज ही एक मात्र स्रोत है। अगर महिलाएं धूप में जाने लगें तो महिलाओं में होने वाली इस बीमारी को जड़ से खत्म किया जा सकता है," डॉ. अंजू अग्रवाल आगे बताती हैं।

पी.ओ.सी. (पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम)

आगरा की महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. निधि दीक्षित बताती हैं, "यह एक हार्मोनल सिंड्रोम है, जो कि आपकी अंडाशयों की कार्यप्रणाली को प्रभावित करती है। पी.ओ.सी तब होता है, जब हॉर्मोन व्यवस्था असंतुलित होने लगती है, जिससे ओव्यूलेशन अनियमित हो जाता है। इससे शरीर में कई अन्य बदलाव भी आते हैं। एक अनुमान के अनुसार पालीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम, प्रजनन उम्र की करीब पांच में से 15 प्रतिशत महिलाओं को प्रभावित करता है।"

पी.ओ.सी के लक्षण

इस बीमारी की सबसे बड़ी पहचान में से एक है अचानक से वजन का बढ़ना, माहवारी अनियमित हो जाना, चेहरे पर मुंहासे निकलना और साथ ही गंजापन होना। पी.ओ.सी से प्रभावित महिलाओं के शरीर पर बाल भी अधिक बढ़ने लग जाते हैं। यह हर महिला में अलग-अलग हो सकती है। ये सभी समस्या महिलाओं में बहुत आम हैं और यही वो कारण है जिससे इस बीमारी का पता चलता है। इस बीमारी का सबसे बड़ा लक्षण है कि लगभग 10 में से पांच फीसदी महिलाओं को पी.ओ.सी. के कारण मधुमेह, उच्च, रक्तचाप, हृदय रोग और बांझपन का खतरा हो जाता है।

इस बीमारी का वास्तविक कारण ज्ञात नहीं हैं मगर कहा जाता है कि ये हेरिदिटी होता है यानि यह बीमारी परिवार से मिलती है। शरीर में इंसुलिन हॉर्मोन का सामान्य से उच्च स्तर होना भी पी.ओ.सी से जोड़ा जाता है।

एनीमिया

भारत में लगभग 60 प्रतिशत महिलाएं घर के कम में इतनी व्यस्त हो जाती हैं कि वह खुद पर भी ध्यान नहीं देती हैं। गाँव में वर्षों से चल रही प्रथा, जिसमें अक्सर महिलाएं पतियों के खाने के बाद ही खाना खाती हैं। इसका असर सीधा उनकी सेहत पर पड़ता है। महिलाएं खुद को लेकर इतनी लापरवाही करती हैं, जिससे उनको खून की कमी जैसी अनेक बीमारियों का सामना करना पड़ता है। अक्सर गर्भावस्था के वक्त भी महिलाएं पौष्टिक खाना नहीं खाती जिससे, माँ और बच्चे दोनों को कुपोषण का शिकार होना पड़ता हैं।

डॉ. अंजू अग्रवाल बताती हैं, "गर्भावस्था में महिलाओं को आयरन, विटामिन, मिनरल सबकी ज्यादा जरूरत होती है। भोजन में पोषक तत्वों की कमी महिलाओं को एनीमिक बना देती है। महिलाओं में हीमोग्लोबिन 12 ग्राम होना चाहिए, जबकि पुरुषों में 13.5 ग्राम होनी चाहिए। गर्भावस्था के दौरान खून की कमी से समय से पहले प्रसव दर्द, शिशु का कम वजन या कभी-कभार मौत भी हो जाती है।"

(पायल गाँव कनेक्शन में इंटर्न हैं)

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