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हादसे के बाद के मानसिक आघात

गाँव कनेक्शन | Sep 16, 2016, 16:01 IST
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कई बार बहुत गहरा सदमा लगने का व बहुत तनावपूर्ण हालात का सामना करने के बाद यह पोस्ट ट्रामैटिक स्ट्रिेस डिसऑडर (पीटीएसडी) अवस्था इंसान में उत्पन्न होती है। मरीज ऐसे में अपने आप को बहुत मजबूर और खौफ में पाता है। वह बार-बार इन चीजों के बारे में सोचता रहता है और उसे इसी के बारे में सपने भी आते हैं।


राम नारायण (50 वर्ष) रेलवे में स्टेशन मास्टर की पद पर तैनात थे। वह पूरे मन से अपनी नौकरी करते थे, एक दिन ड्यूटी करते समय उन्होंने एक व्यक्ति को खुदकुशी करते हुए देख लिया।

आस-पास भीड़ जुट गई और पुलिस आ गई। घटना की जगह खून देख कर उन्हें जोर का चक्कर आया और वह बेहोश होकर गिर गए। उन्हें पास के एक डॉक्टर को दिखाया गया, जिसके बाद वह घर चले गए। पर उसके बाद वह अपने काम पर जाने से बहुत घबराने लगे और रेलवे ट्रैक देखते ही उन्हें चक्कर सा आने लगता था। एक महीने तक ऐसा ही चलता रहा, तब घरवालों ने मनोवैज्ञानिक को दिखाया। एक साल तक इलाज होने के बाद वह अपनी नौकरी दोबारा अच्छे से कर पा रहे हैं।

आमतौर पर इनमें देखाजाता है पीटीएसडी

1. जब भी कोई किसी भयानक हालात का सामना करता है जिसमें मरीज ने बहुत ही करीब से मौत को या बहुत बुरी चोट लगते देखा हो या लगी हो।

2. मरीज को बहुत ही मजबूरी, डर और खौफ का सामना करना पड़ा हो, या बार-बार इस खौफनाक हादसे का अनुभव बताए, उसके विचार या सोच में वही घटना बार-बार आए।

3. उसी हादसे के भयानक सपने बार-बार आना।

4. बार-बार ऐसा लगना कि वह हादसा दोबारा हो रहा है, वैसी ही बातें सुनने या दिखाई देनेे लगना।

5. बहुत ज्यादा मानसिक तकलीफ महसूस करना।

6. दिल की धड़कनें बढ़ जाना, पसीना आना, हाथ पैर ठंडे पड़ जाना।

7. हादसे से जुड़े लोगों का सामना न कर पाना और सामने आने पर अपने आप को असहाय महसूस करना।

8. समय पर नींद न आना, ध्यान न लगा पाना, बेवजह गुस्सा आना, अत्याधिक चौंकना और एकदम से डर जाना।

शालू (25 वर्ष) एक निडर लड़की थी, एक दिन नौकरी खत्म कर लोकल ट्रेन से लौटते समय ट्रेन का एक्सीडेंट हो गया। हादसे में उसे बस हल्की चोटें ही लगी थी, लेकिन उसके दोस्त की मौत हो गई थी। उस दिन उसके मन में ट्रेन का डर बैठ गया, उसने घर से निकलना बंद कर दिया। उसे बार-बार उसी एक्सीडेेंट के सपने आते थे, जिसकी वजह से उसको नींद कम आने लगी। अक्सर जमीन पर बैठे उसको लगता कि जमीन हिल रही है और उसका एक्सीडेंट हो जाएगा।

एक्सीडेंट से जुड़ी सारी बातें याद आती थी जिसके लिए वह आपने आप को कोसती थी कि वह उस दिन टे्रन से क्यों आ रही थी। यह सब सोच कर उसके हाथ पैर ठंडे हो जाते थे। उसे अपने ऊपर बहुत गुस्सा आता था, उसका किसी काम में मन नहीं लगता था, लोगों से मिलने चुलना बंद कर दिया था। यह सब देख कर उसके घर वालों ने उसे मनोचिकित्सक को दिखाया। काफी समय तक इलाज चला और सलाह के बाद आज वह सामान्य जीवन जी रही है।

बच्चों या युवा लोगों में पीटीएसआई के लक्षण अक्सर अपहरण, गंभीर बीमारी, जल जाने, भूकंप के बाद देखने को मिलते हैं। बच्चे अक्सर खेल के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं। ऐसे में अगर घर का माहौल बहुत सर्पोटिव न हो तब तो यह लक्षण और बढ़ जाते हैं।

इस बीमारी का भलीभांति इलाज मौजूद है, ऐसे लक्षण किसी को भी दिखे तो वह बिना देर लगाए मनोचिकित्सक के पास जाए।

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