सायटिका के इलाज के लिए ख़ास ये पांच जड़ी बूटियां

गाँव कनेक्शन | Dec 24, 2016, 20:04 IST
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दीपक आचार्य

तेज़ भागती दौड़ती जिंदगी में हम खूब सारी पूंजी जरूर एकत्र कर लेते हैं, भोग विलासिता के संसाधन खोज निकालते हैं लेकिन बदले में अनेक स्वास्थ्य समास्याओं को भी आमंत्रित कर देते हैं। सायटिका ऐसा एक रोग है जो अनियंत्रित जीवन शैली, भाग-दौड़ और लगातार एक ही जगह पर कई घंटो तक बैठकर काम करने की उपज माना जाता है। जो लोग ऐसी नौकरियां करते हैं जहां एक ही जगह पर घंटो बैठकर कार्य करना होता है, लगातार एक ही स्थिति में बैठे रहने से कमर के पिछ्ले और निचले हिस्से पर नसों का खिंचाव आने लगता है और आहिस्ता आहिस्ता यह सायटिका का रूप धारण कर लेता है।

जिन लोगों की दैनिक जीवनशैली सामान्य और सुचारू होती है वे इस समस्या से कभी रूबरू नहीं होते हैं, जो अच्छी बात है। सायटिका वास्तव में पुठ्ठे और पैरों में होने वाले जबरदस्त दर्द का नाम है और यह दर्द पीठ के निचले हिस्से में नसों में होने वाले दबाव की वजह से होता है जो ठंड के मौसम में ज्यादा तेज दर्द के रूप में उभर जाता है। सायटिक अक्सर शरीर के एक ही हिस्से में ज्यादा होता है। पातालकोट घाटी के हर्बल जानकार कुछ जड़ी- बूटियों का उपयोग कर इस दर्द के निवारण के उपाय सुझाते हैं, चलिए जानते हैं 5 ऐसी ही चमत्कारिक असरदार जड़ी-बूटियों के बारे में और उनसे जुड़े कुछ हर्बल नुस्खों के बारे में जिससे इस समस्या पर काबू पाया जा सकता है।

पातालकोट घाटी : जड़ी-बूटियों का ख़जाना

मध्यप्रदेश की पातालकोट घाटी में गोंड और भारिया जनजाति के वनवासी सैकड़ों सालों से सतपुड़ा के घने और प्राकृतिक जंगलों के बीच निवास कर रहे हैं। वनों के करीब रहकर इन आदिवासियों ने वनसंपदा को ही अपनी हर मूलभूत आवश्यकताओं के लिए सर्वोपरी रखा है। वनों और वन्य जीवों के साथ इन आदिवासियों का सामंजस्य देखते ही बनता है। इन वनवासियों ने पीढ़ी-दर-पीढ़ी चले आ रहे पारंपरिक हर्बल ज्ञान को बखूबी सीखा है, निभाया है और अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में इस ज्ञान का बेजा इस्तेमाल भी किया है। इन वनवासी हर्बल जानकारों के द्वारा उपयोग में लायी जाने वाली वनस्पतियों की जानकारी बाहरी दुनिया (शहरी, अर्ध शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों) के लोगों को जरा भी नही है। पातालकोट घाटी को जड़ी-बूटियों का खजाना कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। यहां बसे आदिवासी हर्बल जानकार अनेक रोगों को बड़ी सफलता से हर्बल ज्ञान की मदद से सटीकता के साथ ठीक कर देते हैं।

रत्ती

रत्ती एक बहुवर्षीय बेल होती है जिस पर हल्के पीले गुलाबी या बैंगनी रंग के फूल लगते हैं। हर्बल जानकारों के अनुसार रत्ती के बीजों का तेल तैयार किया जाना चाहिए और दर्द वाले अंगों पर इस तेल से मालिश की जानी चाहिए। तेल बनाने के लिए रत्ती के ५० ग्राम बीजों को कुचलकर 200 मिली खाने के तेल में मिलाकर धीमी आंच पर 15 मिनट के गर्म किया जाए और बाद में इसे छान लिया जाए और ठंडा होने पर सायटिका दर्द वाले अंगों पर लगाकर मालिश किया जाए तो आराम मिलता है। आधुनिक शोधों से जानकारी प्राप्त होती है कि इसके बीजों में दर्द निवारक गुण पाए जाते हैं। पातालकोट के अन्य हिस्सों में हर्बल जानकार इसके काले-लाल बीजों (50 ग्राम) और लहसुन की कलियां (10) को एकत्र कर कुचलते हैं, कुचलने से प्राप्त मिश्रण को दर्द वाले हिस्सों पर लगाते है, ऐसा दिन में 3-4 बार किया जाता है, आदिवासियों के अनुसार लगातार एक माह तक ऐसा करने से दर्द से पूरी राहत मिल जाती है।

लहसुन

लहसुन एक चिरपरिचित मसाला है। लहसुन की सूखी कलियां सायटिक के इलाज के लिए अति कारगर होती हैं। करीब 40 ग्राम सूखी कलियों को कुचलकर आधा लीटर दूध में मिला दिया जाता है और इस दूध को गर्म किया जाता है जब तक कि यह आधा (250 मिली) शेष ना बचे। इस 250 मिली दूध को दो हिस्सों में बांट दिया जाए और एक हिस्से को सुबह और दूसरे हिस्से को शाम को रोगी को पिलाया जाना चाहिए। इसके अलावा हर्बल जानकार कहते हैं कि रोगी को 4 कच्ची लहसुन की कलियों को भी प्रतिदिन सुबह खाली पेट चबाना चाहिए। माना जाता है कि यह फार्मुला सायटिका रोग में काफी राहत प्रदान करता है।

लेंडी पिप्पल

दक्षिण भारत में उगाया जाने वाला लेंडी पिप्पल अंग्रेजी भाषा में लाँग पेप्पर के नाम से जाना जाता है। लेंडी पिप्पल के बीजों (15 ग्राम) को 100 मिली पानी में 5 मिनट के लिए उबाला जाता है और छान लिया जाता है। करीब 10 मिली इस द्रव के साथ चुटकी भर कर्पूर और सोंठ चूर्ण मिला लिया जाए और दर्द वाले हिस्सों पर मालिश की जानी चाहिए। इसी प्रक्रिया को प्रतिदिन 3-4 बार दोहराया जाए और हर बार पूर्व में तैयार द्रव को इस्तमाल किया जा सकता है।

हल्दी

घर-घर में प्रचलित हल्दी ना सिर्फ एक मसाला है बल्कि सायटिका के इलाज के लिए अति उपयोगी माना जाता है। हल्दी, लेंडी पिप्पल और लहसुन की समान मात्रा लेकर कुचल लिया जाए और जरूरत पड़ने पर इसमें थोड़ी मात्रा में पानी भी मिलाया जाए ताकि यह एक पेस्ट की तरह हो जाए। इस पेस्ट को दर्दवाले हिस्सों पर दिन में 2-3 बार लगाकार मालिश करने से आराम मिलता है। दर्द से ग्रस्त रोगियों को प्रतिदिन 2-3 गिलास हल्दी का पानी भी पीना चाहिए। हल्दी का पानी तैयार करने के लिए एक गिलास पानी में आधा चम्मच हल्दी चूर्ण मिला लिया जाए और इसे पिया जाए, फायदा करता है।

पारिजात

पारिजात एक मध्यम आकार का पेड़ होता है जिस पर हल्के सफेद और नारंगी रंग के पुष्प लगते हैं और इसके फूलों का भगवान की पूजा-पाठ अर्चन के लिए अति महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे हरश्रिंगार के नाम से भी जाना जाता है। हर्बल जानकारों के अनुसार पारिजात सायटिका के लिए एक एक बेहद उपयोगी औषधि है। वनवासियों के अनुसार, इस पेड़ की छाल को अन्य पौधों या उनके अंगों के साथ मिलाकर उपचार हेतु कुछ ऐसे फार्मुले बनाए जाते हैं जो कि इस रोग से रोगी को अतिशीघ्र निजात दिलाने में मददगार साबित होते है।

ज्यादातर आदिवासी इस पेड़ की छाल का काढ़ा तैयार कर इस काढे से रोगग्रस्त हिस्सों पर मालिश करते हैं। इस फार्मुले को तैयार करने के लिए आदिवासी पारिजात की 200 ग्राम छाल लेते हैं, इसके बारीक-बारीक टुकड़े तैयार कर इसे 3 लीटर पानी में मिला देते हैं। इस पानी में 10 ग्राम अदरख, 5 ग्राम लहसुन और करीब 15 ग्राम कपूर भी मिला देते हैं और सारे मिश्रण को तब तक उबालते हैं जब तक कि यह एक चौथाई शेष ना बचे। जब ऐसा हो जाए तो इसे छान लेते हैं और इस काढे से सायटिका से होने वाले दर्दवाले हिस्सों में मालिश की जाती है, लगातार 15 दिनों तक दिन में दो बार ऐसा करने से फर्क आसानी से दिखाई या महसूस होता है।

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