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लखनऊ में केजीएमयू और लोहिया में शुरू होगी किडनी ट्रांसप्लांट की सुविधा

गाँव कनेक्शन | Nov 05, 2016, 18:00 IST
KGMU Lucknow
लखनऊ। अब किडनी ट्रान्सप्लांट के मरीजों को पीजीआई में दर-दर भटकना नहीं पड़ेगा क्योंकि जल्द ही केजीएमयू और लोहिया अस्पताल में भी किडनी ट्रान्सप्लांट की सुविधा शुरू होगी। अस्पताल प्रशासन ने इसका खाका तैयार कर लिया गया है। यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो इस महीने से मरीजों को इसकी सुविधा मिलनी शुरू हो जाएगी। वर्तमान में किडनी ट्रांस्पलांट की सुविधा केवल पीजीआई में ही उपलब्ध थी। कई बार पीजीआई में गुर्दा प्रत्योपण के मरीजों की अधिक संख्या होने के कारण मरीजों को इलाज के भटकना है।

आपको बताते चलें कि पहले केजीएमयू में मरीजों के लिए गुर्दा प्रत्यारोपण की सुविधा थी लेकिन नेफ्रोलोजिस्ट न होने के कारण यहां गुर्दा प्रत्यारोपण का काम ठप पड़ गया था। पीजीआई में बीते कुछ दिनों पहले कई नेफ्रोलॉजिस्ट के संस्थान छोड़कर चले गए हैं संस्थान छोड़ने पर किडनी ट्रांसप्लांट पर संकट खड़ा हो गया है।

संस्थान में आर्गन ट्रांसप्लांट की सुविधा जल्द शुरू हो जाएगी। इसके लिए शताब्दी के थर्ड फ्लोर पर आईसीयू का निर्माण कार्य लगभग पूरा हो गया है। नवंबर के अंतिम सप्ताह तक शासन की मंजूरी मिलने के बाद मरीजों को यह सुविधा दी जाएगी।

संस्थान में आर्गन ट्रांसप्लांट की सुविधा जल्द शुरू हो जाएगी। इसके लिए शताब्दी के थर्ड फ्लोर पर आईसीयू का निर्माण कार्य लगभग पूरा हो गया है। नवंबर के अंतिम सप्ताह तक शासन की मंजूरी मिलने के बाद मरीजों को यह सुविधा दी जाएगी।
डॉ. एससी तिवारी सीएमएस, केजीएमयू (लखनऊ)

इस तरह से प्रदेश में एसजीपीजीआई, लोहिया संस्थान और केजीएमयू को मिलाकर तीन ऐसे संस्थान होंगे, जहां मरीजों को किडनी ट्रांसप्लांट की सुविधा मिल सकेगी। लोहिया संस्थान के निदेशक प्रो. दीपक मालवीय ने बताया कि संस्थान में वर्तमान समय में तीन यूरोलॉजिस्ट और एक नेफ्रोलॉजिस्ट हैं। साथ ही 14 बेड की किडनी ट्रांसप्लांट यूनिट, आईसीयू व मॉड्यूलर ऑपरेशन थिएटर बनकर तैयार हैं। यूरोलॉजी और नेफ्रोलॉजी दोनों विभागों में फैकल्टी के अलावा रेजीडेंट डॉक्टर भी हैं। इससे मरीजों की 24 घंटे देखरेख हो सकती है।

एसजीपीजीआई में दो-दो साल की वेटिंग

एसजीपीजीआई प्रदेश का एक मात्र संस्थान है जहां किडनी प्रत्यारोपण की सुविधा है इसके चलते यहां पर किडनी ट्रांसप्लांट की लंबी वेटिंग चलती है। संस्थान में दो-दो साल की वेटिंग चलती है। इसके चलते कई मरीजों की ट्रांसप्लांट से पहले ही मृत्यु हो जाती है। पीजीआई एक साल में 120 से 130 ट्रांसप्लांट कर पाता है। यहां पर चार से साढ़े चार सौ की वेटिंग हमेशा रहती है।

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