अंगदान करने में गाँव के लोग सबसे आगे
Darakhshan Quadir Siddiqui | Jan 17, 2017, 12:40 IST
लखनऊ। विदेशों के मुकाबले हमारे देश में अंगदान को लेकर जागरूकता कम है। यही वजह है कि हर साल हज़ारों लोग अंग का इंतजार करते हुए मौत को गले लगा लेते हैं। केजीएमयू के ट्रामा सेन्टर में अंगदान को लेकर यह खुलासा हुआ है कि लोगों में तरह-तरह के भ्रम हैं, जिसके चलते लोग अंगदान नही करते हैं। मगर पढ़े-लिखे लोगों के मुकाबले कम पढ़े लिखे और गांव वाले अधिक अंगदान को लेकर जागरूक हैं।
केजीएमयू में अंगदान के लिए लोगों को प्रेरित कर रहे ट्रांसप्लान्ट कोर्डिनेटर पीयूष श्रीवास्तव का कहना है कि अब तक जितने भी अंगदान हुए हैं, उनमें 60 प्रतिशत लोग गाँव से हैं। उनका कहना है कि शहर से जो लोग होते हैं, उनको समझाना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। उनके सवाल बहुत ज्यादा होते हैं। उनकी काउन्सिलिंग करने में वक्त लगता है, उस पर भी वह अंगदान को राजी होंगे या नहीं, ये जरूरी नहीं। वहीं गांव वालों को अगर उनके मरीज की असल हकीकत बता दी जाए तो वह अंगदान को जल्दी राज़ी हो जाते हैं।
वह आगे बताते हैं कि ऐसे में गाँवों में अंगदान के प्रति जागरूकता देखने को मिलती है। हर साल लाखों लोग किडनी लीवर और दिल की खराबी होने की वजह से अंग के इंतजार में गंवा देते हैं। जबकि इनको वक्त रहते अंग मिल जाए तो बचाया जा सकता है।
अंगदान के इस मामले में हम दुनिया के कई देशों से पिछड़े हुए हैं। आंकड़ों की मानें तो भारत में प्रति 10 लाख लोगों में अंगदान करने वालों की संख्या एक से भी कम (.34) है। फोर्टिस ऑर्गन रिट्रीवल एंड ट्रांस्प्लांट (फोर्ट) के आंकड़ों की मानें, तो भारत में 1,75,000 लोगों को किडनी के प्रत्यारोपण की जरूरत है, लेकिन यह 5,000 लोगों को ही मिल पाती है। हर साल 50,000 लोगों को दिल के प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ती है, लेकिन वर्ष 2015 में कुल 110 हृदय ही प्रत्यारोपित हो पाये। बात करें लीवर प्रत्यारोपण की, तो जहां हर साल लगभग एक लाख जरूरतमंदों में से महज एक हजार को ही यह मिल पाता है। वहीं, करीब 20,000 फेफड़ों की जरूरत के बदले पिछले वर्ष महज 37 ही पूरे हो पाये।
आईएमए ने देश में अंगदान को बढ़ावा देने के लिए पूछना न भूलें नाम से एक मुहिम शुरू की है, जिसमें अस्पताल में हो रही नियमित मौतों में उनके परिवार वालों से आंख और अंगदान के लिए पूछें, इससे अंगदान को बढ़ावा मिलेगा और जो लोग अंग प्रत्यारोपण के इंतजार में अपनी जिन्दगी गवां रहे हैं, उन्हें बचाया जा सकेगा। आइएमए के अध्यक्ष पीके गुप्ता का कहना है कि इस मुहिम से अंगदान को बढ़ावा मिलेगा और अंग की तस्करी भी कम हो जाएगी।
केजीएमयू में अंगदान के लिए लोगों को प्रेरित कर रहे ट्रांसप्लान्ट कोर्डिनेटर पीयूष श्रीवास्तव का कहना है कि अब तक जितने भी अंगदान हुए हैं, उनमें 60 प्रतिशत लोग गाँव से हैं। उनका कहना है कि शहर से जो लोग होते हैं, उनको समझाना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। उनके सवाल बहुत ज्यादा होते हैं। उनकी काउन्सिलिंग करने में वक्त लगता है, उस पर भी वह अंगदान को राजी होंगे या नहीं, ये जरूरी नहीं। वहीं गांव वालों को अगर उनके मरीज की असल हकीकत बता दी जाए तो वह अंगदान को जल्दी राज़ी हो जाते हैं।
वह आगे बताते हैं कि ऐसे में गाँवों में अंगदान के प्रति जागरूकता देखने को मिलती है। हर साल लाखों लोग किडनी लीवर और दिल की खराबी होने की वजह से अंग के इंतजार में गंवा देते हैं। जबकि इनको वक्त रहते अंग मिल जाए तो बचाया जा सकता है।