धूल-धूएं के बीच फर्ज़ निभाती है ट्रैफिक पुलिस

गाँव कनेक्शन | Dec 14, 2017, 18:36 IST

ईश्वरी शुक्ला, कम्युनिटी जर्नलिस्ट

लखनऊ। ट्रैफिक पुलिस हर दिन धुएं और धूल के बीच गाड़ियों को नियंत्रित करती है, ये इनका हर दिन का काम है। लगातार वाहनों का शोर और खतरनाक जहरीली गैसों को सहना इनके रोज के काम का हिस्सा बन चुका है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश के बड़े शहरों में निर्धारित मानकों से वायु प्रदूषण का स्तर दो-तीन गुना अधिक है। इस बारे में बाबा भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रो. नवीन अरोड़ा बताते हैं, “हवा में मौजूद प्रदूषण के कण बारिश के मौसम में तो बैठ जाते हैं पर हवा चलती है तो ये और भी तेजी से अपना काम करते हैं। हवा में मौजूद ये हानिकारक कण बहुत महीन होते हैं।” लखनऊ की सड़क पर मौजूद 10 लाख वाहनों में हर रोज 200 नए वाहन जुड़ जाते हैं। मोटर वाहनों से निकलने वाले धुआं से कार्बन मोनोआक्साइड जैसी जहरीली गैस निकलती है, जिसके कारण फेफड़ों में खराबी, हड्डियों में कमजोरी आना, शरीर में ऑक्सीजन की कमी और हृदय पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

आगरा यूनिवर्सिटी के समाजशास्त्री डॉ. मोहम्मद अरशद बताते हैं, “लखनऊ जैसे शहर में लोग ट्रैफिक रूल्स को हल्के में ले लेते हैं और ये भी एक वजह है जिससे पुलिसकर्मियों को मानसिक रूप से दिक्कत का सामना करना पड़ता है। आठ से साढ़े आठ घंटे की नौकरी के बाद भी इनके लिए परिवार के साथ अच्छा समय बिताना मुश्किल होता है। इसपर भी एक शोध की जरूरत है। अगर इनके काम करने की अवधि को कुछ कम किया जाए और ट्रैफिक रूल्स को तोड़ने वालों के लिए कड़े नियम हों तो समस्या सुधरेगी।”

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साधारण मास्क खतरों की ओर धकेल रहे

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के श्वसन चिकित्सा विभाग के विभागाध्यक्ष और भारतीय चेस्ट सोसाइटी के अध्यक्ष प्रो. डॉ सूर्यकांत त्रिपाठी कहते हैं, “लोगों को लगता है कि मास्क लगा लेंगे तो जैसे कि अमृत पी लेंगे। ये साधारण मास्क केवल चार से पांच फीसदी ही काम करता है। नाम मात्र के ये साधारण मास्क उन्हें खतरों की ओर ही धकेल रहे हैं।” वो आगे बताते हैं, “साल में एक बार तो इन कर्मचारियों के लिए पीएफ़टी यानी की पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट फेफड़ा और स्वास्थ से सम्बन्धी कई बीमारियों का पता लगाने के लिए किया जाना चाहिए।

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