By shivangi saxena
देशभर में 13 सितंबर को नीट और 1 से 6 सितंबर के बीच जेईई की परीक्षाओं का आयोजन किया जाना है। इस सन्दर्भ में नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (NTA) ने एक जरूरी नोटिस जारी कर दिया है जिसके अनुसार अब तिथियों में किसी भी तरह के फेर-बदल की उम्मीद नहीं है। इस साल जेईई के लिए 8 लाख और नीट के लिए 16 लाख से ज़्यादा छात्रों ने रजिस्ट्रेशन कराया है।
देशभर में 13 सितंबर को नीट और 1 से 6 सितंबर के बीच जेईई की परीक्षाओं का आयोजन किया जाना है। इस सन्दर्भ में नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (NTA) ने एक जरूरी नोटिस जारी कर दिया है जिसके अनुसार अब तिथियों में किसी भी तरह के फेर-बदल की उम्मीद नहीं है। इस साल जेईई के लिए 8 लाख और नीट के लिए 16 लाख से ज़्यादा छात्रों ने रजिस्ट्रेशन कराया है।
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मीटिंग के दौरान जहां सरकार कानूनों में संशोधन की बात कर रही थी, वहीं किसान नेता कानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़े रहें। बैठक के दौरान किसानों ने 'Yes' या 'No' का प्लाकार्ड भी दिखाया।
मीटिंग के दौरान जहां सरकार कानूनों में संशोधन की बात कर रही थी, वहीं किसान नेता कानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़े रहें। बैठक के दौरान किसानों ने 'Yes' या 'No' का प्लाकार्ड भी दिखाया।
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खेतिहर मजदूरों और उनके बच्चों को कहना है कि कृषि कानून लागू होने के बाद किसानों के हाथ में इतना पैसा नहीं बचेगा कि वे मज़दूर किराए पर रख सकें। ऐसे मे लाखों खेतिहर मजदूर बेरोज़गार हो जाएंगे।
खेतिहर मजदूरों और उनके बच्चों को कहना है कि कृषि कानून लागू होने के बाद किसानों के हाथ में इतना पैसा नहीं बचेगा कि वे मज़दूर किराए पर रख सकें। ऐसे मे लाखों खेतिहर मजदूर बेरोज़गार हो जाएंगे।
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बिहार में आई बाढ़ से लाखों लोग परेशान हैं, लेकिन मछली पालक किसानों की अपनी ही परेशानियां हैं। तालाब में मछली पालने वाले किसानों की मछलियां बाढ़ के पानी में बह गईं और उन्हें आर्थिक नुकसान पहुंचा है।
बिहार में आई बाढ़ से लाखों लोग परेशान हैं, लेकिन मछली पालक किसानों की अपनी ही परेशानियां हैं। तालाब में मछली पालने वाले किसानों की मछलियां बाढ़ के पानी में बह गईं और उन्हें आर्थिक नुकसान पहुंचा है।
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देश में जारी कोरोना महामारी के बीच तमाम उद्योग-धंधों पर असर पड़ा है। दशहरे के समय में राजधानी दिल्ली में रावण का पुतला बनाने का व्यवसाय हर साल काफी चलता है, लेकिन कोरोना संकट के कारण इस साल यह व्यवसाय भी संकट में है। पुतला बनाने वाले कारीगर दो जून की रोजी-रोटी के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं।
देश में जारी कोरोना महामारी के बीच तमाम उद्योग-धंधों पर असर पड़ा है। दशहरे के समय में राजधानी दिल्ली में रावण का पुतला बनाने का व्यवसाय हर साल काफी चलता है, लेकिन कोरोना संकट के कारण इस साल यह व्यवसाय भी संकट में है। पुतला बनाने वाले कारीगर दो जून की रोजी-रोटी के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं।
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कोरोना ने जीने के तरीकों में बदलाव किया है, इसके साथ ही लोगों के यातायात और अन्य तरीकों में भी बदलाव हुए हैं। दिल्ली के कैब ड्राइवर अब्दुल कादिर ने इन जरूरतों को महसूस किया और अपने कैब में मास्क, सैनिटाइजर, साबुन, डस्टबिन जैसी सभी सुविधाओं को उपलब्ध कराया है। अब सोशल मीडिया पर उनकी खूब तारीफ की जा रही है।
कोरोना ने जीने के तरीकों में बदलाव किया है, इसके साथ ही लोगों के यातायात और अन्य तरीकों में भी बदलाव हुए हैं। दिल्ली के कैब ड्राइवर अब्दुल कादिर ने इन जरूरतों को महसूस किया और अपने कैब में मास्क, सैनिटाइजर, साबुन, डस्टबिन जैसी सभी सुविधाओं को उपलब्ध कराया है। अब सोशल मीडिया पर उनकी खूब तारीफ की जा रही है।
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कोरोना के प्रकोप ने दिहाड़ी मजदूरों और रिक्शा चालकों को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। इस वायरस ने उनकी रोज़ी-रोटी पर गहरा असर डाला है। अनलॉक होने के बावजूद लोग वायरस के डर से रिक्शों पर बैठने से कतरा रहे हैं, जिससे उनकी आय प्रभावित हो रही है।
कोरोना के प्रकोप ने दिहाड़ी मजदूरों और रिक्शा चालकों को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। इस वायरस ने उनकी रोज़ी-रोटी पर गहरा असर डाला है। अनलॉक होने के बावजूद लोग वायरस के डर से रिक्शों पर बैठने से कतरा रहे हैं, जिससे उनकी आय प्रभावित हो रही है।
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खुले आसमान और सरसराती हवा, ओस के बीच हजारों किसान आंदोलन में शामिल होने के लिए पिछले एक पखवाड़े से दिल्ली के सिंघु, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर डेरा डाले हुए हैं। उनका कहना है कि उन्हें ठंड के कारण भले ही कई दिक्कतें आ रही हैं लेकिन वे बिना कानून वापस कराये अपने घरों को नहीं लौटने वाले हैं।
खुले आसमान और सरसराती हवा, ओस के बीच हजारों किसान आंदोलन में शामिल होने के लिए पिछले एक पखवाड़े से दिल्ली के सिंघु, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर डेरा डाले हुए हैं। उनका कहना है कि उन्हें ठंड के कारण भले ही कई दिक्कतें आ रही हैं लेकिन वे बिना कानून वापस कराये अपने घरों को नहीं लौटने वाले हैं।
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निजीकरण होने के बाद आईटीआई कॉलेजों की वार्षिक फीस 480 रुपये से बढ़कर 18000 रुपये से अधिक हो जाएगी, जिसका भार सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों पर पड़ेगा, जो लॉकडाउन की वजह से पहले ही आर्थिक तंगी के हालात में हैं।
निजीकरण होने के बाद आईटीआई कॉलेजों की वार्षिक फीस 480 रुपये से बढ़कर 18000 रुपये से अधिक हो जाएगी, जिसका भार सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों पर पड़ेगा, जो लॉकडाउन की वजह से पहले ही आर्थिक तंगी के हालात में हैं।
By shivangi saxena
दिल्ली की सीमाओं पर ढाई महीने से चल रहे आंदोलन में शामिल किसानों के सामने बिजली-पानी जैसी समस्याएं हैं। लेकिन इस आंदोलन का अहम हिस्सा बनी महिलाओं की चुनौतियां पुरुषों की तुलना में कहीं ज़्यादा हैं। सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक उन्हें हर पल एक नई चुनौती का सामना करना पड़ता है।
दिल्ली की सीमाओं पर ढाई महीने से चल रहे आंदोलन में शामिल किसानों के सामने बिजली-पानी जैसी समस्याएं हैं। लेकिन इस आंदोलन का अहम हिस्सा बनी महिलाओं की चुनौतियां पुरुषों की तुलना में कहीं ज़्यादा हैं। सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक उन्हें हर पल एक नई चुनौती का सामना करना पड़ता है।