इस गाँव में एक गुरु की बदौलत तैयार हो रहे हैं पहलवान

उत्तर प्रदेश के सीतापुर में एक गाँव को कुश्ती से जाना जाने लगा है। यहाँ के युवा अखाड़े में नाम कर रहे हैं, इसके पीछे उनके 'द्रोणाचार्य' मूलचंद राजवंशी का हाथ है जो चार दशकों से खुद को इस शिक्षा में समर्पित कर दिया है।

Ramji MishraRamji Mishra   15 Sep 2023 6:55 AM GMT

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पाल्हापुर, सीतापुर (उत्तर प्रदेश)। इस छोटे से गाँव के बारे में हर कोई जानता है, किसी से भी पाल्हापुर के बारे में पूछिए तो कहेंगे अच्छा, वो कुश्ती वाला गाँव। यहाँ के ज़्यादातर घरों के बच्चे कुश्ती में हाथ आजमाते हैं, कई लोग तो स्टेट लेवल पर कुश्ती प्रतियोगिताओं में मेडल जीत चुके हैं।

इस अखाड़े को पिछले 40 साल से चला रहे हैं, 65 वर्षीय मूलचंद राजवंशी। सुबह चार से पाँच बजे अलग-अलग उम्र के बच्चे और युवा मिट्टी और कीचड़ के इस अखाड़े में कुश्ती के दाँव सीखने पहुँच जाते हैं। मूलचंद राजवंशी कहते हैं, "कोई देश का नाम रौशन करे और देश के लिए मेडल लाए मैं इसी काम में लगा हूँ।"

यूपी की राजधानी लखनऊ से करीब 90 किलोमीटर दूर सीतापुर अपने पौराणिक और ऐतिहासिक वजहों से प्रसिद्ध है। कहते हैं भगवान राम की पत्नी सीता तीर्थ यात्रा के दौरान उनके साथ यहाँ रही थीं।


करीब चालीस साल पहले मूलचंद इस गाँव में आए फिर यहीं के होकर रह गए। आज उनका बस एक ही सपना है कि बच्चे कुश्ती में देश का नाम करें।

मूलचंद कहते हैं, "इस बार आयुष सिंह, हर्षित शुक्ला, अंकित कुमार और अभय शुक्ला उत्तर प्रदेश में राज्य स्तरीय कुश्ती प्रतियोगिता में हिस्सा लेंगे।" इस गाँव के कई युवा आर्मी में भी भर्ती हो गए हैं।

पाल्हापुर गाँव के 50 वर्षीय छोटेलाल शुक्ल मूलचंद से काफी प्रभावित हैं, वो कहते हैं, "सुबह होते ही पहलवानी करने वाले मूलचंद अपने कुछ सीखने वाले बच्चों के साथ गाँव से 200 मीटर दूर बने अखाड़े की तरफ निकल पड़ते हैं। यह सुबह का चार से पाँच बजे के बीच का समय होता है। दूर से आए बच्चे इनके पास ही रुक जाते हैं।" मूलचंद का बेटा भी इन्हीं के यहाँ कुश्ती सीख रहा है। उनकी बस यही एक ख्वाहिश है कि यहाँ पर एक स्थाई अखाड़े की व्यवस्था हो जाए।"

मूलचंद को जब भी समय मिलता है तो घायल पशुओं को खोज कर उनका इलाज करते हैं। उन्होंने अपना पूरा जीवन कुश्ती को ही समर्पित कर दिया तभी तो उन्होंने शादी नहीं की। वो कहते हैं, "मैं सप्ताह का एक दिन घायल पशुओं को खोजकर उनके इलाज के लिए खर्च करता हूँ। मैंने शादी नहीं की और अपना पूरा जीवन कुश्ती को समर्पित कर दिया।" 65 साल की उम्र में भी मूलचंद 42 किमी दौड़ लगा लेते हैं।


16 साल के आयुष सिंह राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में हिस्सा ले चुके हैं और इसका सारा श्रेय अपने कुश्ती गुरु मूलचंद को देते हैं। वो कहते हैं, "मैं आठ साल से कुश्ती सीख रहा हूँ। इस गाँव में मेरे गुरु जी के पास छोटे से लेकर बड़े बच्चे तक कुश्ती सीखते मिल जाएँगे। हमेशा कम से कम बीस से पच्चीस लोग सीखने वाले बने ही रहते हैं।"

आयुष आगे बताते हैं, "मैंने इनके पास सीखने के बाद 66वीं प्रदेशीय माध्यमिक विद्यालीय कुश्ती प्रतियोगिता 2022 में 60 किलोग्राम भार में प्रथम स्थान प्राप्त किया। मैंने मंडलीय माध्यमिक विद्यालय क्रीड़ा प्रतियोगिता भी दो बार जीती है। एक बार 2022 में और एक बार 2023 में मैंने मंडल में जीत हासिल की है।"

अभय शुक्ल और आयुष कुमार शुक्ल दो सगे भाई हैं और दोनों ने भी काफी मेडल जीते हैं। अभय शुक्ल कहते हैं, "मेरी जल्दी ही कुश्ती प्रतियोगिता होनी है। मुजफ्फरनगर में होने वाली राज्य स्तरीय कुश्ती प्रतियोगिता में 48 किलो वर्ग भार में लखनऊ मंडल टीम की तरफ से प्रतिनिधित्व करेंगे।"

आज मूलचंद जब इन युवाओं को आगे बढ़ते हुए देखते हैं तो उन्हें लगता है कि उनकी तपस्या सफल हुई। मूलचंद कहते हैं, "मुझे कई बार लगता है कि अपने गाँव लौट जाऊँ, लेकिन हर बार बच्चे सीखने आ जाते हैं और मैं फिर रुक जाता हूँ।" "हम हों या ना हों कुश्ती हमारे बाद भी रहेगी इसलिए अखाड़ा होगा तो कुश्ती चलती रहेगी। मैं जीवन में अपने सिखाए बच्चों को देश की तरफ से खेलने और जीतते हुए देखने के लिए लंबे समय से इंतजार कर रहा हूँ। मुझे विश्वास है एक दिन वह जीत कर आएँगे।" मूलचंद ने गहरी साँस लेते हुए आखिर में कहा।

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