"बच्चों के साथ बिताए पलों को यादों की पोटली में सहेज कर रख लेती हूँ"

अर्चना पांडेय, यूपी के बहराइच ज़िले के जरवल ब्लॉक के उच्च प्राथमिक विद्यालय, भौली में शिक्षिका हैं। टीचर्स डायरी में वो अपने स्कूल के बच्चों के बारे में बता रही हैं।

Archana PandeyArchana Pandey   31 May 2023 11:08 AM GMT

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बच्चों के साथ बिताए पलों को यादों की पोटली में सहेज कर रख लेती हूँ

ये फेयरवेल पार्टी क्या होती है मैडम जी?

पिछले महीने एग्जाम के आखिरी दिन, जब आठवीं कक्षा के बच्चो को पास बुलाकर, उनसे स्कूल में छोटी सी पार्टी का प्लान शेयर किया तो पार्टी के नाम से सभी की आँखे चमक सी गयी थी। जवाब में मैंने कहा, आगे की पढ़ाई के लिए नए स्कूल में एडमिशन लेने से पहले इस स्कूल में सब लोग मिलकर तुम सबका विदाई समारोह मनाएंगे, तो खुशी से सब चहक पड़े, बोले वाह, हम सब खूब मस्ती करेंगे।

बच्चों के जाने के बाद, फुर्सत में थोड़ी देर बैठी तो, बरबस ही उनके साथ बिताया वक़्त फ्लैशबैक के रुप में चल पड़ा। नमस्ते मैडमजी, अब जा रहे घर.. गुंजा की आवाज़ से तंद्रा टूटी, और चेहरे पर एक स्माइल सी आ गयी.. उन्हें हँसते चहकते देखकर।

अपने नन्हे पंख फैलाकर विशाल से नीले आसमान में उड़ने को तैयार मेरे स्कूल की बड़ी होती चिराइयों को देखकर आज बहुत भावुक महसूस कर रही थी.. अब कुछ दिन इस बैच के बच्चों की बहुत याद आएगी। फिर ये अपने नए स्कूल में पढ़ाई में व्यस्त हो जाएंगे, और मैं भी नई क्लास के बच्चों में ख़ुद को रमा लूंगी। वैसे पूरी की पूरी यादों की पोटली है इन सबके साथ..

स्कूल में पहुँचते ही अंशू, नैंसी और निशा का चुपके से मेरे स्कूटी की चाभी लेकर बास्केट में कभी खट्टे-मीठे बेर, तो कभी अपने हाथों से सिल बटने पर पीस कर लायी चटनी, और कभी कभी प्रेमवश अपने खेतों में उगाई हरी सब्जी का रख आना।


डाँटने पर ये कहना कि मैडम जी ई बहुत ताज़ी है, लई जाओ न.. अच्छा अब आगे से ना लाइब.. और तभी गुंजा का आकर ऊपर से हरी धनिया रखना। मेरे घूरने पर ये कहकर बात को नॉर्मल करना की मैडम जी उ का कहत है आप इंग्लिश में.. हाँ, कॉम्प्लिमेंटरी.. जी वहै समझ के रख लीन जाए.. हाय, मेरी प्यारी मासूम बच्चियाँ।

सोचती हूँ ये वही क्लास है? जो सरप्राइज टेस्ट के नाम से एक साथ पेटदर्द का बहाना करती थी, तो अक्सर शैतान शिवा का लीक पेन को अपने दोस्त रोहित की शर्ट में पोंछना, फिर झगड़ा होने पर उसे सुलझाने को हाज़िर जवाब पंकज का मैडम जी को आवाज़ लगाकर कहना... मैडम जी ई शिवैय्या फिर से झगड़ा कै लिहिन आयी के सुलझावा जाए।

रिजल्ट वाले दिन प्रवेश का ये कहना कि "मैडम जी हमका फेल कई दीन जाए, फिर हम एक साल अउर हियाँ पढ़ लेब।"

मेरी सबसे ज्यादा आज्ञाकारी होनहार अंशू का नम आँखों से ये कहना कि जब हम आगे की पढ़ाई के लिए अपने नए स्कूल जाएंगे तो रोज इसी रास्ते से निकलेंगे, और अपनी मैडम जी को दूर से देखकर खुश हो लेंगे। इमोशनल कर गया सब कुछ।

आँखे डबडबा आईं, सच अथाह प्रेम मिला है इन बच्चियों से.. इतना कि छुट्टियों पर भी मेरा जब घर जाना होता था तो ये लड़कियाँ अपनी भाभी और दीदी के मोबाइल से फोन पर अपनी मैडम जी के हालचाल लेना नहीं भूलती थी।


और इसी क्लास का कुंदन, सच मे कुंदन जैसा है, इसका अपने हाथ की घड़ी मे एक बजने पर हमेशा की तरह सबको पछाडकर दौड़ते हुए मेरे पास आना और कहना मैडम जी आपका हेलमेट पानी की बोतल, बैग और सामान हम ले चलें। ये अहसास कराता है कि ये प्यारे बच्चे अपनी मैडम के लिए कुछ भी कर सकते हैं।

इन सबके बीच कैसे भूल सकती हूँ कि सबकी निगाहों से खुद को बचाकर स्कूल के बरामदे के पिलर के पीछे खुद को समेटकर छिपकर खड़े रोहित का गुड आफ्टरनून बोलना.. फिर गोबरौरा गाँव के बच्चों का अपनी साइकल से मेरी स्कूटी के पीछे-पीछे भागना।

जाने क्या था इन बच्चों के प्यारे से छोटे से मासूम से दिल में...। पार्टी खत्म होने के बाद अभी तक एक दूसरे के साथ हँसी-ठिठोली और मस्ती करते ये बच्चे एकाएक, अब स्कूल के बरामदे में चुपचाप शांत से खड़े थे। शायद उन्हें भी विछोह का एहसास हो चला था। यही जीवन है मेरे बच्चों.. और मैं कहाँ जा रही हूं? इसी स्कूल में रहूँगी, कभी कुछ पूछना हो या जब बहुत याद आये.. आ जाना मुझसे मिलने.. इतना कहकर समझाया उन सभी को और खुद को भी।

आखिर में बस इतना ही तुम सबके लिए.. कि खुश रहो मेरी बच्चियों.. तुम्हारे हर सपने सच हो... ऐसे ही जीवन मे नित नई उड़ान भरती रहो।

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