बुंदेलखंड का मशहूर बुंदेली राई नृत्य | Famous Bundeli Rai dance of Bundelkhand | Gaon Connection
राई नृत्य बुंदेलखंड का एक पारंपरिक लोक नृत्य है, जो भारत के मध्य क्षेत्र में स्थित उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में प्रचलित है और इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा माना जाता है। राई नृत्य अक्सर त्योहारों, विवाहों और अन्य आनंदोत्सवों में प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें उत्साह, तालमेल और ऊर्जा से भरपूर गतियाँ शामिल होती हैं। महिलाएं पारंपरिक रंगीन परिधानों में वृत्त बनाकर जटिल पांव चाल, हाथों की भावपूर्ण मुद्राओं और शरीर की मनोहर हरकतों के साथ नृत्य करती हैं, जो समुदाय की खुशी और उमंग को दर्शाता है। सरसों के दाने के तश्तरी में गोल-गोल घूमने की तरह ही कलाकार ढोलक, नगड़िया, झीका, मंजीरा, हारमोनियम, ढपली, लोटा, रामतूला जैसे पारंपरिक वाद्यों की थाप पर थिरकते हैं। झांसी और आसपास की महिलाएं गुलाबी, पीले, हरे और नीले रंग के बुंदेली वस्त्र पहनकर मुस्कराते हुए अपने साथी की ओर देखते हुए घूमती हैं। बुंदेलखंड के 140 से अधिक लोकनृत्य रूपों में राई नृत्य फसल की खुशी, विवाह और युद्ध में विजय के अवसरों पर पीढ़ियों से किया जाता रहा है। पश्चिमी और बॉलीवुड प्रभाव के कारण यह कला लुप्त होने लगी थी और रोजगार के अभाव में कलाकारों ने वाद्ययंत्र दीवारों पर टांग दिए थे तथा मजदूरी करनी पड़ी थी, लेकिन प्रशासन ने लोक कलाकारों, गायकों और वादकों को रोजगार देने की दिशा में कदम बढ़ाए। बुंदेलखंड का लोक संगीत भी अत्यंत समृद्ध है—अल्हा-खंड में अल्हा-ऊदल जैसे वीरों की गाथाएं गाई जाती हैं, कजरी में सावन के विरह और प्रेम की पीड़ा व्यक्त होती है, झूला गीत उत्सवों में गाए जाते हैं, बिरहा में जुदाई की वेदना सुनाई देती है, सोहर में नवजात शिशु के जन्म का उल्लास मनाया जाता है और लोकगीतों में जीवन, प्रेम और सामाजिक मुद्दों को अभिव्यक्त किया जाता है। ढोलक, हारमोनियम, मंजीरा और तबले जैसे वाद्य इन गीतों का आधार हैं, जो बुंदेलखंड की सांस्कृतिक विविधता, इतिहास और जीवनशैली की झलक प्रस्तुत करते हैं। बुंदेली राई, बुंदेली लोक संस्कृति, फाग, और अन्य लोकधुनें आज भी इस क्षेत्र की अद्भुत परंपरा को जीवंत बनाए रखती हैं।