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ये हैं जाधव पायेंग, जिन्हें कहा जाता है Forest Man of India
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ये हैं जाधव पायेंग, जिन्हें कहा जाता है Forest Man of India

साल 1979 में असम के माजुली द्वीप पर 16 साल के जादव पायेंग ने एक ऐसा नज़ारा देखा जिसने उनकी ज़िंदगी बदल दी। भीषण सूखे में सैकड़ों सांप मर गए थे। उसी दिन से जादव ने ठान लिया कि वह इस बंजर ज़मीन को हराभरा करेंगे।बिना किसी मदद के उन्होंने अकेले पेड़ लगाना शुरू किया। आज उनका यह प्रयास एक जंगल में बदल गया है जो न्यूयॉर्क के सेंट्रल पार्क से भी बड़ा है। इस जंगल में 100 से ज़्यादा प्रजातियों के पेड़, पक्षी, हिरण, गैंडे, बाघ और हाथियों का बसेरा है।जादव पायेंग हमें सिखाते हैं कि एक अकेला इंसान भी दुनिया बदल सकता है – बस इरादे और मेहनत की ज़रूरत है।

साल 1979 में असम के माजुली द्वीप पर 16 साल के जादव पायेंग ने एक ऐसा नज़ारा देखा जिसने उनकी ज़िंदगी बदल दी। भीषण सूखे में सैकड़ों सांप मर गए थे। उसी दिन से जादव ने ठान लिया कि वह इस बंजर ज़मीन को हराभरा करेंगे।बिना किसी मदद के उन्होंने अकेले पेड़ लगाना शुरू किया। आज उनका यह प्रयास एक जंगल में बदल गया है जो न्यूयॉर्क के सेंट्रल पार्क से भी बड़ा है। इस जंगल में 100 से ज़्यादा प्रजातियों के पेड़, पक्षी, हिरण, गैंडे, बाघ और हाथियों का बसेरा है।जादव पायेंग हमें सिखाते हैं कि एक अकेला इंसान भी दुनिया बदल सकता है – बस इरादे और मेहनत की ज़रूरत है।

अनोखा गाँव : सायरन बजते ही टीवी-मोबाइल बंद
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अनोखा गाँव : सायरन बजते ही टीवी-मोबाइल बंद

आज की दुनिया में सोशल मीडिया और स्क्रीन टाइम हमारी ज़िंदगी का बड़ा हिस्सा बन गया है। लेकिन महाराष्ट्र के सांगली ज़िले का वडगाँव गाँव हमें एक अनोखा सबक दे रहा है।यहाँ हर रोज़ शाम 7 बजे एक सायरन बजता है, और उसके साथ ही गाँव के लोग मोबाइल, टीवी बंद करके अपने परिवार, किताबों और पड़ोसियों के साथ समय बिताते हैं। यह पहल न सिर्फ़ डिजिटल डिटॉक्स है, बल्कि रिश्तों को जोड़ने और जीवन को संतुलित करने का एक खूबसूरत तरीका है।यह कहानी बताती है कि कभी-कभी ज़िंदगी की असली खूबसूरती स्क्रीन से बाहर होती है।

आज की दुनिया में सोशल मीडिया और स्क्रीन टाइम हमारी ज़िंदगी का बड़ा हिस्सा बन गया है। लेकिन महाराष्ट्र के सांगली ज़िले का वडगाँव गाँव हमें एक अनोखा सबक दे रहा है।यहाँ हर रोज़ शाम 7 बजे एक सायरन बजता है, और उसके साथ ही गाँव के लोग मोबाइल, टीवी बंद करके अपने परिवार, किताबों और पड़ोसियों के साथ समय बिताते हैं। यह पहल न सिर्फ़ डिजिटल डिटॉक्स है, बल्कि रिश्तों को जोड़ने और जीवन को संतुलित करने का एक खूबसूरत तरीका है।यह कहानी बताती है कि कभी-कभी ज़िंदगी की असली खूबसूरती स्क्रीन से बाहर होती है।

जब उस दिन जब अचानक से बाघ सामने आ गया, फिर आगे क्या हुआ?
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जब उस दिन जब अचानक से बाघ सामने आ गया, फिर आगे क्या हुआ?

जब उस दिन जब अचानक से बाघ सामने आ गया, फिर आगे क्या हुआ? बता रहीं दुधवा टाइगर रिजर्व की फॉरेस्ट गार्ड संध्या वर्मा

जब उस दिन जब अचानक से बाघ सामने आ गया, फिर आगे क्या हुआ? बता रहीं दुधवा टाइगर रिजर्व की फॉरेस्ट गार्ड संध्या वर्मा

जहाँ खेती बनी कारोबार: बस्तर के आदिवासियों को आत्मनिर्भर बना रही है ‘मुनाफे की खेती’
जहाँ खेती बनी कारोबार: बस्तर के आदिवासियों को आत्मनिर्भर बना रही है ‘मुनाफे की खेती’

By Gaon Connection

कभी हिंसा और कर्ज़ के लिए पहचाना जाने वाला बस्तर आज मुनाफे की खेती का नया चेहरा बन रहा है। राजाराम त्रिपाठी के मॉडल ने आदिवासी किसानों को धान-गेहूँ से आगे सोचने की ताक़त दी है, कम लागत, ज़्यादा मुनाफा और प्रकृति के साथ जीने का रास्ता।

कभी हिंसा और कर्ज़ के लिए पहचाना जाने वाला बस्तर आज मुनाफे की खेती का नया चेहरा बन रहा है। राजाराम त्रिपाठी के मॉडल ने आदिवासी किसानों को धान-गेहूँ से आगे सोचने की ताक़त दी है, कम लागत, ज़्यादा मुनाफा और प्रकृति के साथ जीने का रास्ता।

पद्मश्री किसान चेरुवायल के रमन: जिन्होंने खेती को मुनाफ़ा नहीं, विरासत माना
पद्मश्री किसान चेरुवायल के रमन: जिन्होंने खेती को मुनाफ़ा नहीं, विरासत माना

By Gaon Connection

पद्मश्री चेरुवायल के रमन- एक आदिवासी किसान, जिन्होंने पिछले 35 वर्षों से देसी बीजों को बचाने को अपना जीवन बना लिया। जब हाइब्रिड बीजों की दौड़ में पारंपरिक किस्में ग़ायब हो रही थीं, तब रमन चुपचाप धान, सब्ज़ियों, पशु नस्लों और स्वाद की विरासत को सहेजते रहे।

पद्मश्री चेरुवायल के रमन- एक आदिवासी किसान, जिन्होंने पिछले 35 वर्षों से देसी बीजों को बचाने को अपना जीवन बना लिया। जब हाइब्रिड बीजों की दौड़ में पारंपरिक किस्में ग़ायब हो रही थीं, तब रमन चुपचाप धान, सब्ज़ियों, पशु नस्लों और स्वाद की विरासत को सहेजते रहे।

जब समंदर से लड़ने उतरीं महिलाएं: ओडिशा के तट पर हरियाली का सुरक्षा कवच
जब समंदर से लड़ने उतरीं महिलाएं: ओडिशा के तट पर हरियाली का सुरक्षा कवच

By Gaon Connection

बंगाल की खाड़ी के किनारे बसे ओडिशा के गाँव हर साल समंदर के ग़ुस्से का सामना करते हैं। साइक्लोन आते हैं, खेत डूब जाते हैं, घर उजड़ जाते हैं। लेकिन इन्हीं तटों पर महिलाओं ने एक ऐसा जंगल खड़ा किया है, जो सिर्फ पेड़ों का समूह नहीं, बल्कि एक जीवित सुरक्षा कवच है।

बंगाल की खाड़ी के किनारे बसे ओडिशा के गाँव हर साल समंदर के ग़ुस्से का सामना करते हैं। साइक्लोन आते हैं, खेत डूब जाते हैं, घर उजड़ जाते हैं। लेकिन इन्हीं तटों पर महिलाओं ने एक ऐसा जंगल खड़ा किया है, जो सिर्फ पेड़ों का समूह नहीं, बल्कि एक जीवित सुरक्षा कवच है।

एक पेड़-पूरा गाँव: उत्तराखंड के हर्षिल की मिसाल, जहाँ विकास ने प्रकृति से समझौता किया
एक पेड़-पूरा गाँव: उत्तराखंड के हर्षिल की मिसाल, जहाँ विकास ने प्रकृति से समझौता किया

By Divendra Singh

जब देश के अलग-अलग हिस्सों में सड़क, खनन और विकास के नाम पर जंगल कट रहे हैं, उसी समय उत्तराखंड के हर्षिल गाँव ने एक अलग रास्ता चुना। कहानी है एक देवदार की और उस पूरे गाँव की, जिसने तय किया कि विकास का मतलब प्रकृति की बलि नहीं होता।

जब देश के अलग-अलग हिस्सों में सड़क, खनन और विकास के नाम पर जंगल कट रहे हैं, उसी समय उत्तराखंड के हर्षिल गाँव ने एक अलग रास्ता चुना। कहानी है एक देवदार की और उस पूरे गाँव की, जिसने तय किया कि विकास का मतलब प्रकृति की बलि नहीं होता।

Cyclone से लड़ती ओडिशा के गाँव की महिलाएं
3:55
Cyclone से लड़ती ओडिशा के गाँव की महिलाएं

By Gaon Connection

बंगाल की खाड़ी में जब साइक्लोन आते हैं, तो गाँव, खेत और घर सब कुछ बहा ले जाते हैं। लेकिन इन तबाहियों के बीच एक खामोश सुरक्षा कवच खड़ा है, मैन्ग्रोव और ऑस्ट्रेलियन पाइंस के जंगल।

बंगाल की खाड़ी में जब साइक्लोन आते हैं, तो गाँव, खेत और घर सब कुछ बहा ले जाते हैं। लेकिन इन तबाहियों के बीच एक खामोश सुरक्षा कवच खड़ा है, मैन्ग्रोव और ऑस्ट्रेलियन पाइंस के जंगल।

माँ की याद में शुरू हुई केले की खेती, 400+ किस्मों तक पहुँचा सपना
माँ की याद में शुरू हुई केले की खेती, 400+ किस्मों तक पहुँचा सपना

By Gaon Connection

केरल के तिरुवनंतपुरम ज़िले के परसाला गाँव में एक ऐसा खेत है, जहाँ केला सिर्फ फसल नहीं बल्कि संस्कृति, स्मृति और संरक्षण का प्रतीक है। कभी कोच्चि में वेब डिजाइनिंग कंपनी चलाने वाले विनोद सहदेवन नायर ने माँ के निधन के बाद कॉर्पोरेट दुनिया छोड़कर खेती को अपनाया। आज उनके खेत में भारत ही नहीं, दुनिया भर से लाई गई 400 से ज़्यादा केले की दुर्लभ किस्में उग रही हैं।

केरल के तिरुवनंतपुरम ज़िले के परसाला गाँव में एक ऐसा खेत है, जहाँ केला सिर्फ फसल नहीं बल्कि संस्कृति, स्मृति और संरक्षण का प्रतीक है। कभी कोच्चि में वेब डिजाइनिंग कंपनी चलाने वाले विनोद सहदेवन नायर ने माँ के निधन के बाद कॉर्पोरेट दुनिया छोड़कर खेती को अपनाया। आज उनके खेत में भारत ही नहीं, दुनिया भर से लाई गई 400 से ज़्यादा केले की दुर्लभ किस्में उग रही हैं।

जहाँ लोग रिटायर होकर आराम ढूंढते हैं, वहाँ जगत सिंह ने जंगल उगा दिया
जहाँ लोग रिटायर होकर आराम ढूंढते हैं, वहाँ जगत सिंह ने जंगल उगा दिया

By Gaon Connection

रुद्रप्रयाग के एक छोटे से गाँव में, एक BSF जवान ने एक महिला की दर्दनाक मौत को सिर्फ याद नहीं रखा, उसने उसे बदलाव की जड़ बना दिया। सेवानिवृत्ति के बाद जहाँ लोग आराम की तलाश करते हैं, वहीं जगत सिंह चौधरी, जिन्हें लोग प्यार से ‘जंगली दादा’ कहते हैं, ने अपनी बंजर ज़मीन पर जंगल उगा दिया।

रुद्रप्रयाग के एक छोटे से गाँव में, एक BSF जवान ने एक महिला की दर्दनाक मौत को सिर्फ याद नहीं रखा, उसने उसे बदलाव की जड़ बना दिया। सेवानिवृत्ति के बाद जहाँ लोग आराम की तलाश करते हैं, वहीं जगत सिंह चौधरी, जिन्हें लोग प्यार से ‘जंगली दादा’ कहते हैं, ने अपनी बंजर ज़मीन पर जंगल उगा दिया।

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