By Suvigya Jain
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पानी की समस्या: पिछले साल ठीक-ठीक मानसून के बाद भी कुछ ही महीनों में आधा देश सूखे की चपेट में आ गया था। शायद इस बात को भारतीय नीतिकार भी अब समझने लगे हैं। उन्हें समझ में आने लगा है कि अच्छी बारिश पानी को लेकर निश्चिन्तता नहीं ला पा रही है।
पानी की समस्या: पिछले साल ठीक-ठीक मानसून के बाद भी कुछ ही महीनों में आधा देश सूखे की चपेट में आ गया था। शायद इस बात को भारतीय नीतिकार भी अब समझने लगे हैं। उन्हें समझ में आने लगा है कि अच्छी बारिश पानी को लेकर निश्चिन्तता नहीं ला पा रही है।
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शोधकार्यों को लोग और सरकारें इतना खर्चीला समझती है कि वे इसे जान कर भी अनदेखा करती रहती हैं। लेकिन अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग बढाया जाए तो जिस तरह से ओज़ोन लेयर को नुकसान पहुँचाने वाले क्लोरोफ्लोरो कार्बन के एमिशन (उत्सर्जन) को कम करने में सभी देशों ने भूमिका निभाई थी वैसे ही पर्यावरण की दूसरी समस्याओं से भी सही नीतियों के ज़रिए निपटा जा सकता है।
शोधकार्यों को लोग और सरकारें इतना खर्चीला समझती है कि वे इसे जान कर भी अनदेखा करती रहती हैं। लेकिन अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग बढाया जाए तो जिस तरह से ओज़ोन लेयर को नुकसान पहुँचाने वाले क्लोरोफ्लोरो कार्बन के एमिशन (उत्सर्जन) को कम करने में सभी देशों ने भूमिका निभाई थी वैसे ही पर्यावरण की दूसरी समस्याओं से भी सही नीतियों के ज़रिए निपटा जा सकता है।
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किसान की बदहाली का एक अप्रत्यक्ष कारण यह कुप्रचार भी है कि किसान के उत्पाद का दाम बढ़ाए जाने से महंगाई बढ़ती है। यानी महंगाई रोकने का बोझ भी मरणासन्न किसान पर लदा है। बहरहाल किसान से जुड़े ये मुद्दे न तो हाल ही में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव प्रचार में सुनाई दे रहे हैं ना ही किसी दूसरे मंच से इन्हें उठाया जा रहा है। इसीलिए मीडिया का भी इस तरफ ध्यान नहीं है।
किसान की बदहाली का एक अप्रत्यक्ष कारण यह कुप्रचार भी है कि किसान के उत्पाद का दाम बढ़ाए जाने से महंगाई बढ़ती है। यानी महंगाई रोकने का बोझ भी मरणासन्न किसान पर लदा है। बहरहाल किसान से जुड़े ये मुद्दे न तो हाल ही में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव प्रचार में सुनाई दे रहे हैं ना ही किसी दूसरे मंच से इन्हें उठाया जा रहा है। इसीलिए मीडिया का भी इस तरफ ध्यान नहीं है।
By Suvigya Jain
इस समय भारतीय कृषि के कई उत्पाद अपने बाज़ार ढूंढ पाने में असमर्थ दिख रहे हैं, कई ऐसे उत्पाद हैं जो अधिशेष होने की वजह से अब देश के अंदर नहीं बेचे जा सकते
इस समय भारतीय कृषि के कई उत्पाद अपने बाज़ार ढूंढ पाने में असमर्थ दिख रहे हैं, कई ऐसे उत्पाद हैं जो अधिशेष होने की वजह से अब देश के अंदर नहीं बेचे जा सकते
By Suvigya Jain
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जैविक उत्पादों की बढती मांग को देखते हुए 20 लाख हेक्टेयर ज़मीन पर जैविक खेती को बढ़ावा देने का वायदा उतना बड़ा भले न हो, लेकिन इस तरह की खेती की जटिलता का मसला आड़े जरूर आएगा
जैविक उत्पादों की बढती मांग को देखते हुए 20 लाख हेक्टेयर ज़मीन पर जैविक खेती को बढ़ावा देने का वायदा उतना बड़ा भले न हो, लेकिन इस तरह की खेती की जटिलता का मसला आड़े जरूर आएगा
By Suvigya Jain
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देश की मौजूदा माली हालत के नजरिए से भी कृषि क्षेत्र की अहमियत को समझा जाना चाहिए। यह भी देखा जा सकता है कि देश की आर्थिकी में कृषि का योगदान कम नहीं होता।
देश की मौजूदा माली हालत के नजरिए से भी कृषि क्षेत्र की अहमियत को समझा जाना चाहिए। यह भी देखा जा सकता है कि देश की आर्थिकी में कृषि का योगदान कम नहीं होता।