प्रदेश में चार लाख 76 हजार पशुओं का होगा टीकाकरण, अभियान शुरू

Ishtyak Khan | Mar 16, 2018, 13:26 IST
पशु टीकाकरण
औरैया। जिन बीमारियों से पशुओं की असमय मौत से किसानों को आर्थिक तंगी से जूझना पड़ता है। उनसे निपटने के लिए प्रदेश में टीकाकरण अभियान शुरू हो चुका है। 15 मार्च से शुरू हुआ अभियान 30 अप्रैल तक चलेगा। जिसमें पूरे प्रदेश के 4 लाख 76 हजार पशुओं का टीकाकरण किया जायेगा। प्रदेश के प्रत्येक जिले में अभियान की शुरूआत जिलाधिकारियों ने हरी झंडी दिखाकर गुरुवार से कर दी है।

दुधारू पशुओ का टीकारण

उम्र - टीका

चार माह - मुंह व खुर पका का टीका पहला डोज

2-4 सप्ताह बाद - मुंह व खुर पका का टीका दूसरा डोज

साल में दो या तीन बार- मुंह व खुर रोग का टीका बूस्टर

(गंभीर रोग ग्रस्त इलाकों के लिए)

छह माह वाले पशु को - एन्थ्रैक्स व ब्लैक् क्र्वाटर टीका

छह माह बाद के पशु को- हेमोरेजिक सेप्टीकेमिया टीका

एक साल के पशु के लिए- बी.क्यू, एचएस व एन्थ्रैक्स

बछडे को चार माह में - प्रथम टीकाकरण

बछडे को पांच माह में - दूसरा टीकाकरण

4-6 माह में - बूस्टर

पशुओ में होने वाली बीमारियां

पशुओं में ब्लैक क्र्वाटर, डेगनाला रोग (पूंछकटवा रोग), खुरपका मुंहपका, हेमोरेजिक सेप्टीसीमिया (एचएस), लिवर फ्लूक (छेरा रोग) और थनैला रोग होते है।

टीकाकरण अभियान में पूरे प्रदेश में 4 लाख 76 हजार पशुओं का टीकाकरण होना है अभियान 15 मार्च शुरू हुआ है जो कि 30 अप्रैल तक चलेगा।
डा यूएल गुप्ता, डिप्टी डायरेक्टर, पशु पाल विभाग उत्तर प्रदेश

खुर और मुंह की बीमारियां

पशुओं में खुर और मुंह में बीमारियां खासकर फटे खुर वाले में बहुत अधिक मात्रा में पाई जाती है इनमें भैंस, बकरी, भेड, गाय और पिग है। इन बीमारियों के चलते किसानों को आर्थिक नुकसान झेलना पडता है। बीमार पशुओं से किसानों की आय कम हो जाती है।

क्या हैं इसके लक्षण

पशुओं को बुखार, दूध में कमी, पैरो व मुख में छाले तथा पैरों में छालों के कारण थनो में शिथिलता, मुख में छालों के कारण झागदार लार का अधिक मात्रा में आना आदि।

बीमारी फैलने के लक्षण

ये वायरस इन प्राणियों के उत्सर्जन व स्राव से फैलते है जैसे लार, दूध व जख्म से निकलने वाला द्रव।

.ये वायरस एक स्थान से दूसरे स्थान पर हवा द्वारा फैलता है व जब हवा में नजी ज्यादा होती है तो तेजी से फैलता है।

ये बीमारी बीमार पशुओं से अधिक पशुओ में फैल जाती है इसका कारण होता है घूमने वाली पशु जैसे श्वान, पक्षी व खेतो में काम करने वाले पशु।

संक्रमित भेड व पिग इन बीमारियों के प्रसार में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।

संकर नस्ल के मवेशी स्थानीय नस्ल के मवेशियों से जल्दी संक्रमण से ग्रसित होते हैं।

बीमारी की वजह से पशुओं की मौत हो जाती है किसानों को अधिक नुकसान उठाना पडता है। खुरपका और मुंहपका टीका लगने से पशुओ में बीमारी की संभावना कम हो जाती है। किसानों के हित को देखते हुए घर-घर जाकर टीकाकरण कराया जा रहा है।
एसपी सिंह बघेल, पशुधन मंत्री, उत्तर प्रदेश

रोग को रोकने का उपाय

स्वस्थ प्राणियो को संक्रमित वाले क्षेत्रों में न ले जाया जाये।

किसी भी संक्रमित क्षेत्र से जानवरों को खरीद कर स्वस्थ पशुओ के साथ न रख जाये।

बीमार पशु का चारा किसी दूसरे पशु को न दिया जाये।

नये खरीदे गये जानवरों को अन्य जानवरों से 21 दिन तक दूर रखना चाहिए।

अन्ना प्रथा को लेकर केंद्रीय कृषि मंत्री व नीति आयोग को किसानों ने बताया दर्द।

ऐसे करें पशुओं का उपचार

बीमार जानवर का मुंह और पैर को एक प्रतिशत पोटैशियम परमैगनेट के घोल से धोया जाये, जख्मों पर एंटीसेप्टिक लोशन लगा कर उपचार करें।

बोरिक, एसिड और ग्लिसरिन पेस्ट को मुख में लगा दें।

बीमार पशुओं को पथ्य आधारित चारा दिया जाये इसके अलावा उन्हें स्वस्थ्य पशुओं से अलग रखा जाये।

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