वाराणसी में क्यों नष्ट कर दी गईं 15 टन मछलियां?

Divendra Singh | Jan 13, 2021, 09:00 IST
एनजीटी ने थाई मांगुर को पालने और बेचने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है, फिर भी लोग चोरी से इसे पाल रहे हैं।
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वाराणसी में मत्स्य विभाग के अधिकारियों ने 15 टन मछलियों के बच्चों को नष्ट कर दिया, मछलियों के बच्चे थाई मांगुर किस्म के थे, जिनके पालन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली थाई मांगुर पालन को पूरे देश में प्रतिबंधित किया गया है। राष्ट्रीय हरित क्रांति न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने साल 2000 को ही इसके पालन पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन फिर से 20 जनवरी 2019 ने इस बारे में निर्देश भी दिए थे कि सभी प्रदेशों और केंद्र शाषित राज्यों में थाई मांगुर पालन को प्रतिबंधित किया जाए और जहां भी इसका पालन हो रहा हो उसे नष्ट किया जाए।

इसके बावजूद देश के अलग-अलग राज्यों में चोरी से थाई मांगुर का पालन किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश, मत्स्य विभाग के उप निदेशक डॉ. हरेंद्र प्रसाद गाँव कनेक्शन को बताते हैं, "वाराणसी जिले में मत्स्य विभाग के अधिकारियों को जानकारी मिली कि ट्रक में थाई मांगुर मछलियां लायी जा रहीं हैं, अधिकारियों ने पुलिस की मदद से ट्रक को पकड़ा तो उसमें 15 टन थाई मांगुर के बच्चे मिले, जिसे पश्चिम बंगाल से हापुड़ ले जा रहे थे। पश्चिमी यूपी में चोरी से लोग इसका पाल रहे हैं, जबकि कई बार पकड़े भी जा चुके हैं।"

भारत सरकार ने साल 2000 में ही थाई मांगुर के पालन और बिक्री पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया गया था, लेकिन इसके बावजूद भी मछली मंडियों में इसकी खुले आम बिक्री हो रही थी। थाईलैंड में विकसित की गई मांसाहारी मछली की विशेषता यह है कि यह किसी भी पानी (दूषित पानी) में तेजी से बढ़ती है, जहां दूसरी मछलियां पानी में ऑक्सीजन की कमी से मर जाती है, लेकिन यह फिर भी जिंदा रहती है। थाई मांगुर छोटी मछलियों समेत यह कई अन्य जलीय कीड़े-मकोड़ों को खा जाती है। इससे तालाब का पर्यावरण भी खराब हो जाता है।

डॉ हरेंद्र प्रसाद आगे बताते हैं, "थाई मांगुर पर्यावरण के लिए खतरनाक होती हैं, ये तालाब में रहने वाली दूसरे मछलियों को भी खा जाती हैं, इसीलिए एनजीटी ने इसे पूरी तरह से बैन कर दिया है। कई तरह की मछलियों को थाई मांगुर ने नष्ट कर दिया है, ये मछलियां गंदे से गंदे पानी में भी रह सकती हैं, अगर मछलियां गंदगी में रहेंगी तो इंसानों के लिए भी तो नुकसान दायक होंगी।"

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वाराणसी में एक बार फिर 22 जनवरी को 20 टन थाई मांगुर सीड को नष्ट कर दिया गया।

फरवरी, 2020 में महाराष्ट्र में 32 टन थाई मांगुर मछलियों को नष्ट कर दिया गया था। इससे पहले भी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में थाई मांगुर को नष्ट किया गया था।

थाई मांगुर का वैज्ञानिक नाम Clarias gariepinus है, जिसे अफ्रीकन कैट फिश के नाम से भी जाना जाता है। मछली पालक अधिक मुनाफे के चक्कर में तालाबों और नदियों में प्रतिबंधित थाई मांगुर को पाल रहे है क्योंकि यह मछली चार महीने में ढाई से तीन किलो तक तैयार हो जाती है जो बाजार में करीब 80-100 रुपए किलो मिल जाती है। इस मछली में 80 फीसदी लेड और आयरन के तत्व पाए जाते है।

राष्ट्रीय मत्स्य आंनुवशिकी ब्यूरो के तकनीकी अधिकारी अखिलेश यादव बताते हैं, ''इसको खाना इंसानों के लिए भी नुकसानदायक होता है, लोगों को जागरुक करने के लिए अभियान भी चलाया जाता है लेकिन चोरी छिपे लोग इसे पाल भी रहे हैं और बाजार में बिक भी रही है। क्योंकि इसको पालने में ज्यादा खर्च नहीं आता, इसलिए लोग इसके बच्चों को बाहर से मंगाकर पालते हैं।"

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