नीली क्रांति योजना के तहत केज कल्चर को मिलेगा बढ़ावा 

Diti BajpaiDiti Bajpai   17 April 2018 4:26 PM GMT

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नीली क्रांति योजना के तहत केज कल्चर को मिलेगा बढ़ावा झारखंड राज्य ने केज कल्चर तकनीक को एक नई पहचान दी।                        साभार: इंटरनेट

लखनऊ। देश के झारखंड राज्य ने केज कल्चर तकनीक को एक नई पहचान दी। अब इस तकनीक के जरिए भारत में मछली पालन को बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि भारत सरकार की चलाई जा रही नीली क्रांति योजना के तहत पूरे भारत में इस तकनीक को जल्दी शुरू किया जाएगा।

केज कल्चर यानि पिंजरे में मछली पालन। डैम और जलाशयों में निर्धारित जगह पर फ्लोटिंग ब्लॉक बनाए जाते हैं। सभी ब्लॉक इंटरलॉकिंग रहते हैं। ब्लॉकों में 6 गुना 4 के जाल लगते हैं। जालों में 100-100 ग्राम वजन की पंगेशियस मछलियां पालने के लिए छोड़ी जाती हैं। मछलियों को प्रतिदिन आहार दिया जाता है। फ्लोटिंग ब्लॉक का लगभग तीन मीटर हिस्सा पानी में डूबा रहता है और एक मीटर ऊपर तैरते हुए दिखाई देता है।

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देश में चल रही नीली क्रांति योजना के तहत वर्ष 2022 तक मछली उत्पादन 15 मिलियन टन तक पहुंचाना है। ऐसे में केज कल्चर तकनीक काफी सहायक हो सकती है।

मत्स्य विभाग उत्तर प्रदेश के सहायक निदेशक डॉ हरेंद्र प्रसाद बताते हैं, “राष्ट्रीय विकास नीति के तहत प्रदेश में रिंहद डैम और बढ़वार डैम में केज कल्चर तकनीक को पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया था, लेकिन इस प्रोजेक्ट को रोक दिया गया। लेकिन नीली क्रांति के तहत फिर से नीति बनाकर भेजी गई है। उत्तर प्रदेश केज कल्चर को फिर से शुरू होने से खाली पड़े जलाशयों में मछली उत्पादन किया जा सकता है। इससे रोजगार के साधन भी उपलब्ध होंगे।”

देश के डेढ़ करोड़ लोग अपनी आजीविका के लिए मछली पालन व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। सभी प्रकार के मछली पालन (कैप्चर एवं कल्चर) के उत्पादन को साथ मिलाकर 2016-17 में देश में कुल मछली उत्पादन 11.41 मिलियन तक पहुंच गया है। इस तकनीक को पूरे देश में लागू करने से वर्ष 2022 तक मछली उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।

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केज कल्चर के फायदे के बारे में डॉ हरेंद्र प्रसाद बताते हैं, “जो जल क्षेत्र खाली पड़े है उनमें इस तकनीक का प्रयोग करके मछली का ज्यादा से ज्यादा उत्पादन किया जा सकता है और इसमें मछली पालक का पानी और बिजली का कोई खर्चा भी नहीं होता है। झारखंड के केज कल्चर मॉडल को तेलंगाना और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य ने भी अपनाया है।

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कृषि मंत्रालय भारत सरकार के आकड़ों के मुताबिक देश में करीब 100 लाख टन मछली का उत्पादन होता है। इसमें 30 लाख टन समुद्री मछली और 70 लाख टन गैर समुद्री मछली का उत्पादन हो रहा है। इसमें आंध्र प्रदेश करीब 20 लाख टन मछली का उत्पादन कर रहा है। इसके बाद बंगाल और बिहार का नंबर आता है।

झारखंड में केज कल्चर से मछली उत्पादन को राष्ट्रीय पहचान मिल रही है। मत्स्य विभाग, झारखंड के निदेशक रवि शंकर बताते हैं, “प्रति केज चार से पांच टन मछली उत्पादन किया जा रहा है। इसके लिए कई प्रदेश में कई तरह की योजनाएं भी चल रही है। साथ ही किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जाता है। प्रदेश के करीब नौ हजार को किसानों को प्रशिक्षण भी दिया गया है। अभी तिलैया डैम, चांडिल डैम, कोनार, मसानजोर, सुंदर जलाशय अजय बराज सहित कई जलाशयों में कुल 2800 केज कल्चर मौजूद हैं। यहां कतला, रोहू सहित अन्य मछलियों का उत्पादन होता है।

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