क्या आपको भारत की इन 43 नस्ल की गायों के बारे में पता है?

Diti Bajpai | Oct 03, 2019, 13:15 IST
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लखनऊ। गाय का नाम अक्सर सुर्खियों में रहता है लेकिन इनकी नस्लों के बारे में शायद ही किसी को जानकारी होगी। भारत में साहीवाल, गिर, थारपारकर और लाल सिंधी समेत कई अन्य देसी नस्ल है जिनको भारतीय पशु आंनुवशिक संस्थान ब्यूरो में रजिस्टर्ड किया गया है।

भारतीय पशु आंनुवशिक संस्थान ब्यूरो के मुताबिक अपने देश में 43 प्रकार की देसी नस्ल की गायें है। आइये आपको इन सभी देसी नस्ल की गायों के बारे में पूरी जानकारी बताते हैं-

अमृतमहल (कर्नाटक)

इस प्रजाति के गोवंश कर्नाटक राज्य के मैसूर जिले में पाये जाते हैं। इस नस्ल का रंग खाकी, मस्तक तथा गला काले रंग का, सिर और लम्बा, मुँह व नथुने कम चौड़े होते हैं। इस नस्ल के बैल मध्यम कद के और फुर्तीले होते हैं। गायें कम दूध देती है।

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अमृतमहल (कर्नाटक)

बचौर (बिहार)

इस नस्ल के गोवंश बिहार प्रांत के तहत सीतामढ़ी जिले के बचौर एवं कोईलपुर परगनां में पाये जाते हैं। इस जाति के बैलों का प्रयोग खेतों में किया जाता है। इनका रंग खाकी, ललाट चौड़ा, आंखें बड़ी-बड़ी और कान लटकते हुए होते हैं।

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बर्गुर (तमिलनाडु)

बरगूर प्रजाति के गोवंश तमिलनाडु के बरगुर नामक पहाड़ी क्षेत्र में पाये गये थे। इस जाति की गायों का सिर लम्बा, पूँछ छोटी व मस्तक उभरा हुआ होता है। बैल काफी तेज चलते हैं। गायों की दूध देने की मात्रा कम होती है।

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डांगी (महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश)

इस प्रजाति के गोवंश अहमद नगर, नासिक और अंग्स क्षेत्र में पाये जाते हैं। गायों का रंग लाल, काला व सफेद होता है। गायें कम दूध देती हैं।

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गिर (गुजरात)

गिर गाय को भारत की सबसे ज्यादा दुधारू गाय माना जाता है। यह गाय एक दिन में 50 से 80 लीटर तक दूध देती है। इस गाय के थन इतने बड़े होते हैं। इस गाय का मूल स्थान काठियावाड़ (गुजरात) के दक्षिण में गिर जंगल है, जिसकी वजह से इनका नाम गिर गाय पड़ गया। भारत के अलावा इस गाय की विदेशों में भी काफी मांग है। इजराइल और ब्राजील में भी मुख्य रुप से इन्हीं गायों का पाला जाता है।

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हल्लीकर (कर्नाटक)

हल्लीकर के गोवंश मैसूर (कर्नाटक) में सर्वाधिक पाये जाते हैं। इस नस्ल की गायों की दूध देने की क्षमता काफी अच्छी होती है।

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हरियाणा (हरयाणा , उत्तर प्रदेश और राजस्थान)

इस नस्ल की गाय सफेद रंग की होती है। इनसे दूध उत्पादन भी अच्छा होता है। इस नस्ल के बैल खेती में अच्छा कार्य करते हैं इसलिए हरियाणवी नस्ल की गायें सर्वांगी कहलाती हैं।

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कंगायम (तमिलनाडु)

इस प्रजाति के गोवंश काफी फुतीले होते है। इस जाति के गोवंश कोयम्बटूर के दक्षिणी इलाकों में पाये जाते हैं। दूध कम देने के बावजूद भी यह गाय 10-12 सालों तक दूध देती है।



कांकरेज (गुजरात और राजस्थान)

कांकरेज गाय राजस्थान के दक्षिण-पश्चिमी भागों में पाई जाती है, जिनमें बाड़मेर, सिरोही तथा जालौर ज़िले मुख्य हैं। इस नस्ल की गाय प्रतिदिन 5 से 10 लीटर तक दूध देती है। कांकरेज प्रजाति के गोवंश का मुँह छोटा और चौड़ा होता है। इस नस्ल के बैल भी अच्छे भार वाहक होते हैं। अतः इसी कारण इस नस्ल के गौवंश को 'द्वि-परियोजनीय नस्ल' कहा जाता है।

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केनकथा (उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश)

केनकथा गाय का मूल स्थान उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश है। इस नस्ल को केनवारिया के नाम भी जाना जाता है। इनका शरीर का आकार छोटा होता है और इनका सिर छोटा और चौड़ा, कमर सीधी और और कान लटके हुए होते हैं। इस नस्ल की पूंछ की लंबाई मध्यम होती है। इस नस्ल की औसतन लंबाई 103 से.मी. होती है। इस नस्ल के नर का औसतन भार 350 किलो और मादा औसतन भार 300 किलो होता है।

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गओलाओ (महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश)

गओलाओ नस्ल नागपुर, चिंदवाड़ा और वर्धा में पायी जाती है। इनके शरीर मध्यम आकार का और रंग सफेद से सलेटी होता है। इसका सिंर लंबा, मध्यम आकार के कान और छोटे सींग होते हैं। यह गाय प्रति ब्यांत में औसतन 470-725 लीटर दूध देती है। दूध में 4.32 प्रतिशत वसा की मात्रा होती है।

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खेरिगढ़ (उत्तर प्रदेश)

इस प्रजाति के गोवंश खेरीगढ़ क्षेत्र में पाये जाते हैं। गायों के शरीर का रंग सफेद तथा मुँह होता है। इनकी सींग बड़ी होती है। इस नस्ल के बैल फुर्तीले होते हैं और मैदानों में स्वच्छन्द रूप से चरने से स्वस्थ एवं प्रसन्न रहते हैं। इस नस्ल की गायें कम दूध देती है।

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खेरिगढ़ नस्ल का नर

खिलारी (महाराष्ट्र और कर्नाटक)

इस नस्ल का मूल स्थान महाराष्ट्र और कर्नाटक हैं। यह पश्चिमी महाराष्ट्र में भी पाई जाती है।इस प्रजाति के गोवंश का रंग खाकी, सिर बड़ा, सींग लम्बी और पूँछ छोटी होती है। इनका गलंकबल काफी बड़ा होता है। खिल्लारी प्रजाति के बैल काफी शकितशाली होते हैं। इस नस्ल के नर का औसतन भार 450 किलो और गाय का औसतन भार 360 किलो होता है। इसके दूध की वसा लगभग 4.2 प्रतिशत होती है। यह एक ब्यांत में औसतन 240-515 किलो दूध देती है।

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कृष्णा वैली (कर्नाटक)

कृष्णा वैली उत्तरी कर्नाटक की देसी नस्ल है। यह सफेद रंग की होती है। इस नस्ल के सींग छोटे, शरीर छोटा, टांगे छोटी और मोटी होती है। यह एक ब्यांत में औसतन 900 किलो दूध देती है।

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मालवी (मध्य प्रदेश)

मालवी प्रजाति के बैलों का उपयोग खेती तथा सड़कों पर हल्की गाड़ी खींचने के लिए किया जाता है। इनका रंग लाल, खाकी तथा गर्दन काले रंग की होती है। इस नस्ल की गायें दूध कम देती हैं। मध्य प्रदेश के ग्वालियर क्षेत्र में यह नस्ल पायी जाती है।

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मेवाती (राजस्थान, हरयाणा और उत्तर प्रदेश)

मेवाती प्रजाति के गोवंश सीधे-सीधे तथा कृषि कार्य हेतु उपयोगी होते हैं। इस नस्ल की गायें काफी दुधारू होती हैं। इनमें गिर जाति के लक्षण पाये जाते हैं तथा पैर कुछ ऊँचे होते हैं। यह नस्ल राजस्थान के भरतपुर और अलवर जिले, हरियाणा के फरीदाबाद और गुड़गांव जिले और उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले तक फैली हुई है। इसका रंग मुख्य तौर पर सफेद होता है। यह नस्ल एक ब्यांत में औसतन 958 किलो दूध देती है।

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नागोरी (राजस्थान)

इस नस्ल की गाय राजस्थान के नागौर जिले में पाई जाती है। इस नस्ल के बैल भारवाहक क्षमता के विशेष गुण के कारण अत्यधिक प्रसिद्ध है।

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निमरी (मध्य प्रदेश)

निमरी का मूल स्थान मध्य प्रदेश है। इसका रंग हल्का लाल, सफेद, लाल, हल्का जामुनी होता है। इसकी चमड़ी हल्की और ढीली, माथा उभरा हुआ, शरीर भारा, सींग तीखे, कान चौड़े और सिर लंबा होता है। एक ब्यांत में यह नस्ल औसतन 600-954 किलो दूध देती है और दूध की वसा 4.9 प्रतिशत होती है।

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अंगोल (आंध्रप्रदेश)

अंगोल प्रजाति तमिलनाडु के अंगोल क्षेत्र में पायी जाती है। इस जाति के बैल भारी बदन के और ताकतवर होते हैं। इनका शरीर लम्बा, किन्तु गर्दन छोटी होती है। यह प्रजाति सूखा चारा खाकर भी जीवन निर्वाह कर सकती है। इस नस्ल के ऊपर ब्राजील काम कर रही है।

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पोंवर (उत्तर प्रदेश)

इस नस्ल के गोवंश उत्तर प्रदेश के रुहेलखण्ड में पाये जाते हैं। इनके सींगों की लम्बार्इ 12 से 18 इंच तक होती है। इनकी पूंछ लम्बी होती है। इनके शरीर का रंग काला और सफेद होता है। यह गाय कम दूध देती है।

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पुन्गानुर (आंध्रप्रदेश)

पुन्गानुर का मूल स्थानआंध्र प्रदेश का चितूर जिला है। इस नस्ल के पशु छोटे आकार के होते हैं, इनका शरीर सफेद रंग और खाल हल्के भूरे रंग का होता है। इनके सींग छोटे और मुड़े हुए होते हैं। इस नस्ल की मादा का औसतन भार 115 किलो और नर का औसतन भार 225 किलो होता है।यह एक ब्यांत में औसतन 194-1100 किलो दूध देती है।

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राठी (राजस्थान)

भारतीय राठी गाय की नस्ल ज्यादा दूध देने के लिए जानी जाती है। राठी नस्ल का राठी नाम राठस जनजाति के नाम पर पड़ा। यह गाय राजस्थान के गंगानगर, बीकानेर और जैसलमेर इलाकों में पाई जाती हैं। यह गाय प्रतिदन 6 -8 लीटर दूध देती है।

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रेड कंधारी (महाराष्ट्र)

रेड कंधारी महाराष्ट्र के नंदेड़, परभानी, अहमद नगर, बीड और लतूर जिले में पाई जाती है। इनका रंग हल्का लाल या भूरे रंग का होता है। इसके सींग टेढ़े, माथा चौड़ा, कान लंबे, होते हैं। इस नस्ल के नर का औसतन कद 1138 से.मी. और मादा का औसतन कद 128 से.मी. होता है। यह नस्ल एक ब्यांत में औसतन 598 किलो दूध देती है।

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लाल सिंधी प्रजाति: ( पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु)

लाल रंग की इस गाय को अधिक दुग्ध उत्पादन के लिए जाना जाता है। लाल रंग होने के कारण इनका नाम लाल सिंधी गाय पड़ गया। यह गाय पहले सिर्फ सिंध इलाके में पाई जाती थीं। लेकिन अब यह गाय पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और ओडिशा में भी पायी जाती हैं। इनकी संख्या भारत में काफी कम है। साहिवाल गायों की तरह लाल सिंधी गाय भी सालाना 2000 से 3000 लीटर तक दूध देती हैं।

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साहीवाल (पंजाब और राजस्थान)

साहीवाल भारत की सर्वश्रेष्ठ प्रजाति है। यह गाय मुख्य रूप से हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में पाई जाती है। यह गाय सालाना 2000 से 3000 लीटर तक दूध देती हैं जिसकी वजह से ये दुग्ध व्यवासायी इन्हें काफी पसंद करते हैं। यह गाय एक बार मां बनने पर करीब 10 महीने तक दूध देती है। अच्छी देखभाल करने पर ये कहीं भी रह सकती हैं।

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सीरी (सिक्किम और भूटान)

इस नस्ल के गोवंश दार्जिलिंग के पर्वतीय प्रदेश, सिकिकम एवं भूटान में पाये जाते हैं। इनका मूल स्थान भूटान है। ये प्राय: काले और सफेद अथवा लाल और सफेद रंग के होते हैं। सीरी जाति के पशु देखने में भारी होते हैं।

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गंगातीरी (उत्तर प्रदेश और बिहार)

गंगातीरी नस्ल उत्तर प्रदेश और बिहार में पायी जाती है। यह मध्यम आकार की होती है। यह प्रति ब्यांत में औसतन 900-1200 लीटर दूध देती है। इसके दूध में 4.1-5.2 प्रतिशत वसा की मात्रा होती है।

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थारपारकर (राजस्थान)

यह गाय राजस्थान में जोधपुर और जैसलमेर में मुख्य रूप से पाई जाती है। थारपारकर गाय का उत्पत्ति स्थल 'मालाणी' (बाड़मेर) है। इस नस्ल की गाय भारत की सर्वश्रेष्ठ दुधारू गायों में गिनी जाती है। राजस्थान के स्थानीय भागों में इसे 'मालाणी नस्ल' के नाम से जाना जाता है। थारपारकर गौवंश के साथ प्राचीन भारतीय परम्परा के मिथक भी जुड़े हुए हैं।

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उम्ब्लाचेरी (तमिलनाडु)

तामिलनाडू के थिरूवारूर और नागापटीनम जिले में यह नस्ल पाई जाती है। इनका माथा चौड़ा होता है। इस नस्ल के नर का औसतन कद 135 से.मी. और मादा का औसतन कद 105 से.मी. होता है। इस नस्ल की गाय एक ब्यांत में औसतन 495 किलो दूध देती है, जिसकी वसा 4.9 प्रतिशत तक होती है।

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वेचुर (केरल)

वेचूर प्रजाति के गोवंश पर रोगों का कम से कम प्रभाव पड़ता है। इस जाति के गोवंश कद में छोटे होते हैं। इस नस्ल की गायों के दूध में सर्वाधिक औषधीय गुण होते हैं। इस जाति के गोवंश को बकरी से भी आधे खर्च में पाला जा सकता है।

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मोतू (उड़ीसा,छत्तीसगढ़ और आंध्रप्रदेश)

उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और आंध्रप्रदेश में यह नस्ल पाई जाती है। इनका रंग भूरा, सलेटी और सफेद होता है। इनके शरीर का आकरी छोटा, सींग सीधे, पूंछ काली और खुर काले रंग के होते हैं। यह नसल एक ब्यांत में औसतन 100-140 किलो दूध देती है और दूध की वसा 4.8-5.3 प्रतिशत होती है।

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घुमुसरी (उड़ीसा)

घुमुसरी का मूल स्थान उड़ीसा है। इनका रंग सफेद या भूरे रंग का होता हैं। इनके सींग मध्यम आकार के होते हैं जो ऊपर और अंदर की तरफ को मुड़े हुए होते हैं। इसके पहले ब्यांत में गाय की उम्र 42 महीने होनी चाहिए और इसका एक ब्यांत 13 महीने का होता है। यह एक ब्यांत में औसतन 450-650 किलो दूध पैदा करती है, जिसकी वसा 4.8- 4.9 प्रतिशत तक होती है।

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बिन्झार्पुरी (उड़ीसा)

यह नस्ल उड़ीसा के भदरक और केंद्रापारा जिले में पाई जाती है। इनका रंग सफेद होता है, पर यह काले, भूरे या सलेटी रंग में भी मिल सकती है। इस नस्ल के सींग काले और मध्यम आकार के होते हैं, जो ऊपर की तरफ मुड़े होते हैं। यह एक ब्यांत में लगभग 915-1350 किलो दूध देती है। इसके दूध में वसा 4.3-4.4 प्रतिशत होती है।

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खरिअर (उड़ीसा)

खरिअर उड़ीसा के नुआपाड़ा जिले की नस्ल है। यह छोटे आकार की होती है। इसके सींग सीधे, कमर और चेहरे का कुछ हिस्सा गहरे काले रंग का होता है। इस नस्ल की गाय एक ब्यांत में औसतन 450 किलो दूध देती है और दूध की वसा 4-5 प्रतिशत होती है।

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कोसली (छत्तीसगढ़)

कोसली नस्ल की गायें भारत में छत्तीसगढ़ राज्य में पाई जाती हैं। इसका प्रमुख निवास स्थान छत्तीसगढ़ राज्य के मैदानी जिले जैसे रायपुर, राजनांदगांव, दुर्ग और बिलासपुर हैं। इनका आकार छोटा होता हैं। एक मादा का वजन 160-200 कि.ग्रा. और नर का वजन 200-300 कि.ग्रा. तक होता है। कोसली नस्ल की गायों के सींग छोटे आकार के होते हैं।

बद्री (उत्तराखंड)

बद्री गाय केवल पहाड़ी जिलों में पाई जाती है और पहले इसे 'पहाड़ी' गाय के रूप में जाना जाता था। इनका रंग भूरा, लाल, सफ़ेद होता है। इनके कान छोटे से मध्यम आकार की लम्बाई के होते हैं और इनकी गर्दन छोटी एवं पतली होती है। बद्री गायों का प्रतिदिन औसत दुग्ध उत्पादन लगभग 1.12 किग्रा है, लेकिन कुछ गायें 6.9 किग्रा तक दूध का उत्पादन करती हैं। इनका दुग्धकाल 275 दिनों का होता है।

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इन सब के अलावा जम्मू और कश्मीर की लदाखी गाय, असम की लखीमी, महाराष्ट्र और गोवा की कोंकण कपिला, हरियाणा और चण्डीगढ़ की बिलाही, कर्नाटक की मल्नाद गिद्दा, तमिलनाडू की पुल्लिकुलम भी रजिस्टर्ड है।क्या आपको भारत की इन 43 गाय की नस्लों के बारे में पता है?

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