हाईटेक गौशाला: जहाँ गायों के साथ सपने भी पलते हैं
Gaon Connection | Nov 26, 2025, 17:20 IST
भारत में गाय को सदियों से माता का दर्जा दिया गया है और आज भी अगर कोई गायों को अपनाता है, तो गाय बदले में सेहत और रोज़गार दोनों लौटा सकती है। गुजरात के सूरत ज़िले के नवीपार्डी गाँव में नीलेश अहीर और उनका परिवार यह साबित कर रहा है कि पशुपालन भी एक सफल और आधुनिक बिज़नेस मॉडल बन सकता है।
भारत में गाय को सिर्फ पशु नहीं, माता कहा गया है और उसकी वजह भी है। सदियों से गाय ने जिस परिवार में कदम रखा, वहाँ सिर्फ दूध नहीं दिया… जीविका दी, पोषण दिया, और जीवन चलाने की ताक़त दी। पर क्या आज के समय में पशुपालन से अच्छी कमाई हो सकती है? क्या एक परिवार इससे समृद्ध हो सकता है? गुजरात के सूरत ज़िले के छोटे से गाँव नवी पारडी में खड़े होकर यह सवाल पूछिए… और जवाब अपने आप मिल जाएगा।
यहाँ है एक ऐसी गौशाला… जो पारंपरिक पशुपालन को और आधुनिक टेक्नोलॉजी को एक साथ जोड़ती है। यह गौशाला सिर्फ गायों का घर नहीं — बल्कि एक नया मॉडल है कि कैसे प्रकृति और प्रगति साथ-साथ चल सकती है।
दूर तक नजर जाने पर दिखाई देता है, गिर नस्ल की गायों का झुंड, हवा से बातें करता हुआ, जैसे किसी पिकनिक से लौटकर आया हो। पीछे से आती है खुशियों भरी घंटियों की आवाज़, और सामने खड़े मिलते हैं, नीलेश भाई अहीर, “गीर ऑर्गेनिक फार्म” के युवा चेहरे, जो यह मानते हैं कि भविष्य वही है, जिसमें गाय और धरती दोनों बची रहेंगी।
उनके दादा दशकों पहले सौराष्ट्र से सिर्फ पाँच गायें लेकर आए थे, सपना लेकर कि पशुपालन भी एक सम्मानजनक और स्थायी व्यवसाय बन सकता है। उस सपने को उनके पिता मगन भाई अहीर ने आगे बढ़ाया, और आज उस विरासत को संभाल रहे हैं नीलेश और उनके भाई।
आज उनकी गौशाला में 450 से ज़्यादा देसी गायें हैं और हर गाय सिर्फ दूध ही नहीं, बल्कि जैविक खेती का आधार भी तैयार करती है।
20वीं पशुगणना के अनुसार देश में सबसे ज्यादा संख्या गिर गायों (6857784) की है, दूसरे नंबर पर लाखिमी (6829484), तीसरे नंबर पर साहीवाल (5949674) चौथे नंबर पर बचौर (4345940) पांचवे नंबर पर हरियाणा (2757186) छठे पर कंकरेज (2215537) सातवें पर कोसली (1556674) आंठवें पर खिलारी (1299196) नवें नंबर पर राठी (1169828) और दसवें नंपर पर मालवी (1032968 ) है।
नीलेश आगे समझाते हैं, "5–10 गाय पालना और 500 गाय पालना एक जैसा नहीं है। जैसे-जैसे बढ़ोगे, टेक्नोलॉजी को अपनाना पड़ेगा। गायों को खुला छोड़ना, वो अपने आप खाना खाएँ, पानी पीएँ और दूध देने खुद चलकर आएँ, इसके लिए स्मार्ट सिस्टम चाहिए।”
यहाँ मशीनें हैं… लेकिन इंसानियत भी है। यहाँ टेक्नोलॉजी है… लेकिन परंपरा भी है। यहाँ गायों को स्वच्छ और रसायन-मुक्त आहार मिलता है, दौड़ने-चरने के लिए खुली जगह मिलती है, और अपना अलग इकोसिस्टम बनाने की स्वतंत्रता।
नीलेश के भाई नितिन अहीर बताते हैं, "लोग समझते हैं कि पशुपालन में पैसा नहीं है, इसलिए लोग छोड़ रहे हैं। लेकिन सच उल्टा है। दूध के साथ-साथ गाय गोबर और गौमूत्र देती है, जिससे खाद बनती है। इससे कमाई और रोज़गार दोनों होते हैं।”
आज गीर ऑर्गेनिक फार्म न सिर्फ अपने परिवार का सहारा है, बल्कि आसपास के गाँवों का भी। आस-पास के किसानों को रोजगार मिलता है, जैविक खेती के लिए गोबर और गौमूत्र उपलब्ध कराया जाता है, और पूरे भारत के करीब 500 किसानों से सहयोग-आदान-प्रदान की व्यवस्था चलती है।
400 एकड़ में फैला यह फार्म यह बताता है कि प्रकृति और विज्ञान दुश्मन नहीं, साथी हैं।
फार्म के खुले मैदानों में दौड़ती गायें, हवा में तैरती मिट्टी की खुशबू और मुस्कुराते हुए युवा पशुपालक… यह सब मिलकर एक संदेश देते हैं- अगर हमें अपनी ज़मीन, अपने स्वास्थ्य और आने वाली पीढ़ियों को बचाना है, तो हमें लौटना पड़ेगा धरती की ओर — लेकिन आधुनिक सोच और तकनीक के साथ।
नीलेश भाई अहीर की हाई-टेक गौशाला सिर्फ दूध नहीं पैदा कर रही… बल्कि एक उम्मीद, एक मिसाल, और गाँव से निकली वापसी की राह भी बुन रही है।
यहाँ है एक ऐसी गौशाला… जो पारंपरिक पशुपालन को और आधुनिक टेक्नोलॉजी को एक साथ जोड़ती है। यह गौशाला सिर्फ गायों का घर नहीं — बल्कि एक नया मॉडल है कि कैसे प्रकृति और प्रगति साथ-साथ चल सकती है।
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दूर तक नजर जाने पर दिखाई देता है, गिर नस्ल की गायों का झुंड, हवा से बातें करता हुआ, जैसे किसी पिकनिक से लौटकर आया हो। पीछे से आती है खुशियों भरी घंटियों की आवाज़, और सामने खड़े मिलते हैं, नीलेश भाई अहीर, “गीर ऑर्गेनिक फार्म” के युवा चेहरे, जो यह मानते हैं कि भविष्य वही है, जिसमें गाय और धरती दोनों बची रहेंगी।
नीलेश बताते हैं, "हमारे पापा का विज़न था कि हम लोगों को अच्छा दूध दें। अच्छा फल, सब्ज़ी, अनाज दें। और वो तभी होगा जब गाय ज़्यादा पालेंगे, और उसी की खाद से खेत आबाद करेंगे। हमने इसे बिज़नेस मॉडल बनाया… और आज हम यहाँ हैं।
उनके दादा दशकों पहले सौराष्ट्र से सिर्फ पाँच गायें लेकर आए थे, सपना लेकर कि पशुपालन भी एक सम्मानजनक और स्थायी व्यवसाय बन सकता है। उस सपने को उनके पिता मगन भाई अहीर ने आगे बढ़ाया, और आज उस विरासत को संभाल रहे हैं नीलेश और उनके भाई।
आज उनकी गौशाला में 450 से ज़्यादा देसी गायें हैं और हर गाय सिर्फ दूध ही नहीं, बल्कि जैविक खेती का आधार भी तैयार करती है।
20वीं पशुगणना के अनुसार देश में सबसे ज्यादा संख्या गिर गायों (6857784) की है, दूसरे नंबर पर लाखिमी (6829484), तीसरे नंबर पर साहीवाल (5949674) चौथे नंबर पर बचौर (4345940) पांचवे नंबर पर हरियाणा (2757186) छठे पर कंकरेज (2215537) सातवें पर कोसली (1556674) आंठवें पर खिलारी (1299196) नवें नंबर पर राठी (1169828) और दसवें नंपर पर मालवी (1032968 ) है।
नीलेश आगे समझाते हैं, "5–10 गाय पालना और 500 गाय पालना एक जैसा नहीं है। जैसे-जैसे बढ़ोगे, टेक्नोलॉजी को अपनाना पड़ेगा। गायों को खुला छोड़ना, वो अपने आप खाना खाएँ, पानी पीएँ और दूध देने खुद चलकर आएँ, इसके लिए स्मार्ट सिस्टम चाहिए।”
यहाँ मशीनें हैं… लेकिन इंसानियत भी है। यहाँ टेक्नोलॉजी है… लेकिन परंपरा भी है। यहाँ गायों को स्वच्छ और रसायन-मुक्त आहार मिलता है, दौड़ने-चरने के लिए खुली जगह मिलती है, और अपना अलग इकोसिस्टम बनाने की स्वतंत्रता।
gir cow gujarat dairy (2)
नीलेश के भाई नितिन अहीर बताते हैं, "लोग समझते हैं कि पशुपालन में पैसा नहीं है, इसलिए लोग छोड़ रहे हैं। लेकिन सच उल्टा है। दूध के साथ-साथ गाय गोबर और गौमूत्र देती है, जिससे खाद बनती है। इससे कमाई और रोज़गार दोनों होते हैं।”
आज गीर ऑर्गेनिक फार्म न सिर्फ अपने परिवार का सहारा है, बल्कि आसपास के गाँवों का भी। आस-पास के किसानों को रोजगार मिलता है, जैविक खेती के लिए गोबर और गौमूत्र उपलब्ध कराया जाता है, और पूरे भारत के करीब 500 किसानों से सहयोग-आदान-प्रदान की व्यवस्था चलती है।
400 एकड़ में फैला यह फार्म यह बताता है कि प्रकृति और विज्ञान दुश्मन नहीं, साथी हैं।
फार्म के खुले मैदानों में दौड़ती गायें, हवा में तैरती मिट्टी की खुशबू और मुस्कुराते हुए युवा पशुपालक… यह सब मिलकर एक संदेश देते हैं- अगर हमें अपनी ज़मीन, अपने स्वास्थ्य और आने वाली पीढ़ियों को बचाना है, तो हमें लौटना पड़ेगा धरती की ओर — लेकिन आधुनिक सोच और तकनीक के साथ।
नीलेश भाई अहीर की हाई-टेक गौशाला सिर्फ दूध नहीं पैदा कर रही… बल्कि एक उम्मीद, एक मिसाल, और गाँव से निकली वापसी की राह भी बुन रही है।