आठ साल में सूखे रेगिस्तान में बना दिया मिनी फूड पार्क, अब यूएस और जर्मनी जैसे देशों तक भेजते हैं फल

आठ साल पहले तक अशोक जांगू बीमा कंपनी में एजेंट का काम करते थे, लेकिन उन्हें हमेशा से खेती के लिए कुछ करना था। बस वहीं से उनकी शुरूआत हुई अब तो अब तो जांगू के खेत से अनार यूएस व जर्मनी तक जा रहे हैं। गाय का घी भी विदेशों तक जा रहा है।

Laxmikanta JoshiLaxmikanta Joshi   11 July 2022 12:13 PM GMT

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आठ साल में सूखे रेगिस्तान में बना दिया मिनी फूड पार्क, अब यूएस और जर्मनी जैसे देशों तक भेजते हैं फल

अशोक जांगू यहां की खाद्य सामग्री देश से लेकर विदेशों में पहुंच रही हैं। एक-एक कर 268 किसान जांगू से जुड़ चुके हैं। फोटो: अरेंजमेंट/पिक्साबे

जोधपुर (राजस्थान)। जहां दूर-दूर तक मीठा पानी नहीं। सूने पड़े खेत। पलायन की मजबूरी, मजदूरी के अलावा कोई चारा नहीं। वहां पहले अनार, खीरा, पपीता और अब पूरा फूड पार्क ही बना दिया। मात्र आठ साल में ही रेगिस्तान में इस असंभव को संभव कर दिखाया है मैट्रिक तक पढ़े 39 वर्षीय अशोक जांगू ने।

अब तो अशोक जांगू यहां की खाद्य सामग्री देश से लेकर विदेशों में पहुंच रही हैं। एक-एक कर 268 किसान जांगू से जुड़ चुके हैं। राजस्थान के नागौर जिले के अलाय गाँव निवासी अशोक जांगू वर्ष 2015 से पहले भारतीय जीवन बीमा निगम के एजेंट थे। कमीशन अच्छा खासा मिल रहा था। अधिक पॉलिसी करने पर कई बार टॉप किया। लेकिन मन में टीस थी, अपने क्षेत्र में खेती को लेकर कुछ करने की क्योंकि खुद के पुश्तैनी खेत हैं। अब समस्या थी पानी को लेकर, क्योंकि आसपास के करीब 300 गाँवों में एक भी मीठे पानी का ट्यूबवेल नहीं।

अशोक जांगू बताते हैं, "साल 2015 से पहले मेरी जिन्दगी रईसी वाली थी। लेकिन, अचानक मन खेती में उतरने का हुआ। मैंने जिन्दगी की शुरुआत फिर से जीरो से की। जहां खेती शुरू की है, उस गाँव के नजदीकी 300 गाँवों में मीठा पानी नहीं है। इसलिए एक करोड़ लीटर का पानी का डैम बनाया। पूरा खारे पानी से भरते हैं फिर तले के अंदर उसे जमा देते हैं। फिर मोटर लगाते हैं। खारा पानी भारी होता है, वह नीचे जम जाता है। यह किसी चैलेंज से कम नहीं था।"

वो आगे कहते हैं, "रिश्तेदारों से लेकर परिचितों ने मजाक उड़ाया।। समाज से पूरी तरह कट गया। कहीं आना-जाना नहीं। पूरे दिन खेत और डेम में ही रहता। एकबारगी तो लगा कि व्यर्थ मेहनत कर रहा हूं। फिर सोचा कि अगर मैं पीछे हट गया था तो इन 300 गाँवों में कभी खेती नहीं होगी। मेरी मेहनत पर कई लोगों की उम्मीद टिकी हुई है।"


अब तो जांगू के खेत से अनार यूएस व जर्मनी तक जा रहे हैं। गाय का घी भी विदेशों तक जा रहा है। रसोईघर में काम आने वाली अधिकांश खाद्य सामग्री अब जांगू के खेत में हो रही है। इनकी बिक्री के लिए अब तक दो आउटलेट खोल चुके हैं।

वो बताते हैं, "मैंने अनार से खेती शुरू की। जोरदार सफलता मिली। मैंने ग्रीन हाउस में अनार व पपीता उगाए। यह जानकार दुख होता था कि गाँव से जाने वाले दूध का ही घी विभिन्न ब्रांडों के नाम से शहरों से होकर फिर गाँव आ रहा है। मैंने सोचा कि घी तो गाँव से ही शहर की तरफ जाना चाहिए। मैंने देसी गाय के घी का काम शुरू किया।"

"आज करीब 3000 रुपए प्रति लीटर के भाव से विदेशों तक घी पहुंच रहा है। तेल व खाद्य सामग्री के कई ब्रांड अब उपलब्ध करवा रहा हूं। भारत की कई कम्पनियों को बल्क में आपूर्ति करता हूं, जहां से खाद्य सामग्री विदेशों तक पहुंच रही है। अब मैंने दो विदेशी कम्पनियों से करार किया है, "उन्होंने आगे बताया।

अपनी सफलता के मंत्र के बारे में वो बताते हैं, "मेरी सफलता का मंत्र यही है कि मार्केटिंग मैं खुद करता हूं। आप क्या करते हैं? क्या करने वाले हैं? क्या किया है? उसकी खासियत क्या है? यह आप ही दूसरों को बेहतर बता सकते हैं। अब आप देखिए कि पहले मेरे इलाके में दूर दराज तक अनार नहीं थे। अब कई किसानों ने एक-दो, एक-दो पेड़ उगा दिए हैं।"

युवाओं के लिए संदेश

युवाओं के लिए जांगू का संदेश है कि वे खेती में आए लेकिन यह नहीं सोचे कि एक साथ दुगुना या चौगुना कमा लेंगे। धैर्य रखें, पूरी तरह से खेती को समझें और साथ में मार्केट को भी, डिमांड क्या है, उसके अनुसार उपज होगी तो जोरदार बिक्री रहेगी। अभी दो कच्ची घाणी है, जिसे आठ करेंगे। छह -सात खेतों की 600-700 बीघा पुश्तैनी जमीन है। खेती में तपना पड़ता है खपना पड़ता है और लडऩा पड़ता है।

अनार से इसलिए शुरूआत

जांगू के अनुसार कुछ भी नया काम करते हैं तो जेहन में रहता है कि सपोर्ट में कुछ इनकम चलती रहे ताकि खर्चा निकले। क्योंकि अनार के पौधे 40 वर्ष तक चलते हैं और पांच-छह वर्ष में सर्पोटिंग कमाई शुरू हो जाती है। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अनार की खेती में 80 प्रतिशत फेल और मात्र 20 ही सफल होते हैं क्योंकि अनार के पौधे उपलब्ध करवाने वाली कम्पनी व फर्म आश्वस्त करती है कि दो से ढाई वर्ष में अनार लग जाएंगे लेकिन ऐसा होता नहीं है। लोग धैर्य खो देते हैं। कम से कम चार से पांच वर्ष का इंतजार करना ही पड़ेगा। जांगू ने अनार के सभी पौधों को पूरी तरह जैविक रखा और जैविक अनार का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सर्टिफिकेशन भी करवाया गया।

वर्ष 2016 में जांगू ने 60 बीघा जमीन में करीब 6000 अनार के पौधे लगाए। सभी फोटो: अरेंजमेंट

वर्ष 2016 में जांगू ने 60 बीघा जमीन में करीब 6000 अनार के पौधे लगाए। सबसे पहले 10 लाख रुपए के अनार हुए। इसमें पहला मुनाफा बतौर दो से ढाई लाख रुपए प्रापत किए। पिछले साल 2021 को ही लें तो जांगू ने 400 क्विंटल अनाज की पैदावार ली। इसमें इन्हें 22 से 23 लाख का मुनाफा हुआ जबकि लागत राशि 60 लाख रुपए आई।

नहीं लिया अनुदान, खुद से स्थापित किया पूरा नेटवर्क

जांगू का नजरिया सरकारी अनुदान को लेकर अलग है। वे कहते हैं, "अनुदान लेने वाले किसान ज्यादा सक्सेज नहीं है। कई बार ग्रामीण काश्तकारों की फाइल बैंकों में फेंक दी जाती है। इसलिए मैं इसके चक्कर में पड़ा ही नहीं। हां, जैविक खेती में वर्ष 2019 में जब पूरा राजस्थान टॉप किया, तब एक लाख रुपए की राशि व प्रशस्ति पत्र जरूर मिला। कृषि इंडस्ट्री हो गई है। यह शोर खूब सुन रहे हैं कि कृषि इनकम अब दुगुनी होनी चाहिए। किसकी? यह तो कोई समझाए, पंजाब की या धोरों के किसानों की। धोरों में तो कुछ है नहीं। किसान को जानते ही नहीं। इनकम का कोई सोर्स ही नहीं है तो वह दुगुनी कैसे होगी? इसलिए नीति क्षेत्र के अनुसार होनी चाहिए।

फूड पार्क में एक करोड़ का निवेश

जांगू ने कालड़ी गांव में मिनी फूड पार्क बनाया है। कालड़ी वह गांव है, जहां बारिश के अलावा हरी घास भी नहीं मिलती है। जांगू ने करीब एक करोड़ का निवेश कर मिनी फूड पार्क बनाया है, जहां वे कच्चा घाणी तेल, दाल, जीरा व गेहूं की प्रोसेसिंग कर रहे हैं। असल में यह फूड पार्क जांगू के खेत में ही है, जहां उन्होंने 25 बाई 50 के तीन बड़े बड़े हॉल बनाकर कार्य चालू किया है। यहां देसी गाय का बिलौने वाला घी भी तैयार किया जाता है। जबकि सभी खाद्यान्न आर्गेनिक सर्टिफाइड है। खाद्य पदार्थों की बिक्री के लिए विदेश के कई कम्पनियों से करार किया है। जांगू के अनुसार रसोई में खाद्यान्न के रूप में काम आने वाली अधिकांश सामग्री यहां फूड पार्क में उगाने का प्रयास है, जिसमें 80 फीसदी सफलता मिल चुकी है। वैसे नागौर में फूड पार्क को लेकर लोग लम्बे समय से उम्मीद लगाए बैठे हैं। राज्य सरकार ने कई बार इस संबंध में घोषणाएं भी की, लेकिन हुआ कुछ नहीं। जांगू ने मिनी फूड पार्क विकसित कर दिखाया।


जैविक में राजस्थान से नम्बर वन, पूरे देश में टॉप 10 में शामिल

वर्ष 2019 में राजस्थान सरकार ने जांगू को बतौर प्रगतिशील किसान एक लाख रुपए का पुरस्कार दिया तो इस साल यूएसए की कम्पनी ने सम्पूर्ण भारत के टॉप-10 किसानों में जांगू का चयन किया है।

खारे पानी को देसी तकनीक से बनाया खेती लायक

न केवल जांगू के गांव बल्कि आसपास के 300 गांवों में मीठे पानी का प्रबंध नहीं है। ऐसे में जांगू ने करीब एक करोड़ लीटर पानी एकत्र करने के लिए डेम बनाया। बारिश से जितना पानी भर जाता, उसके अलावा ट्यूबवेल से भरते। फिर खारे पानी को मीठा करने के लिए देसी तकनीक अपनाई। सिंचाई के लिए डेम के ऊपर का पानी लेने के लिए पम्प के टायर बांधा। चूंकि खारा पानी वजनी होता है और ऐसे में फ्लोराइड युक्त पानी नीचे बैठ गया। फिर ऊपर के पानी से अनार की खेती शुरू की।

रोजाना 250 किलो घी, प्रति लीटर भाव 3200 रुपए

जांगू के पास 103 गाय हैं। इसके अलावा बीकानेर के लूणकरणसर में एक प्लांट लगाया है। लूणकरणसर के कई किसानों के पास 150 से 200 बीकानेरी राठी गाय हैं। प्रतिलीटर 3200 से 3300 के भाव से बेंगलूरू की एक कम्पनी के मार्फत घी विदेशों में जाता है। सर्वाधिक खपत जर्मनी में होती है। हालांकि रिटेल में इनका घी नहीं बिकता है।


एकत्रित करते हैं अश्वगंधा के बीज, खेजड़ी पर लगाया गिलोय

जांगू औषधीय पौधों को लेकर भी कार्य कर रहे हैं। नागौरी अश्वगंधा देश भर में प्रसिद्ध है, लेकिन अब मुश्किल से मिलती है। जांगू किसानों के साथ घूम-घूम कर इसके बीज एकत्रित कर बोते हैं। वहीं गिलोय अधिकाधिक रूप से हो, इसके लिए डेजर्ट में लगे खेजड़ी के पेड़ पर इसे बेल के रूप में लगा रहे हैं। इसके अलावा मोरिंग के पेड़ भी इनके खेत में लगे हैं। खेत में जांगू ने ग्रीन हाउस भी तैयार किया है, जहां मांग के अनुसार फसल उगाते हैं। मसलन बाजार में खीरा की मांग हुई तो खीरा उगाया। अब पपीता के पौधे लगाए हैं। गत वर्ष इन्होंने पालक को सूखाकर उसका पाउडर बनाया और फिर उसे विदेशों में निर्यात कर दिया। अब अनार की जैविक पौध भी तैयार की है। इनके खेत में गुगल के 3000 प्लांट, मोरिंगा के 20000, खेजड़ी के 200 प्लांट है। गौमूत्र से जीवामर्त व गौ अर्क तथा खाद निर्मित करते हैं।

नोखा में खोला पहला स्टोर

जांगू ने विभिन्न खाद्य सामग्री की बिक्री के लिए राजस्थान के बीकानेर जिले की नोखा मंडी में पहला स्टोर खोला। फिर नागौर और जोधपुर में प्रस्तावित है। जोधपुर के लिए कई लोगों से बातचीत चल रही है। पहले बाहर की कम्पनियों को किसी दूसरी कम्पनी के मार्फत बल्क में माल भेजते थे। अब स्वयं ही विदेशों में खाद्य सामग्री की पैकिंग के जरिए आपूर्ति कर रहे हैं। जांगू से क्षेत्र के 468 किसान प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं, जो आर्गेनिक खेती करते हैं। जिनसे उपज लेते हैं फिर प्रोसेस कर आर्गेनिक सर्टिफाइड कर बाहर भेजते हैं।

जैविक खेती सस्ती

जांगू मानते हैं कि ऑर्गनिक कृषि के साथ मिट्टी की उर्वरा अच्छी हो गई, बाजार पर निर्भरता कम हुई, स्वयं के फॉर्म पर उपलब्ध संसाधनों का उपयोग कर जैविक खेती आरम्भ की, जिससे पर्यावरण संतुलन के साथ ही कृषि लागत में कमी आई तथा कृषि उत्पाद की गुणवता बहुत अच्छी प्राप्त होने लगी। कम लागत में अधिक मुनाफा होने लगा है। वर्ष 2015 से जांगू का खेत निजी संस्था से जैविक प्रमाणित है। जांगू कहते हैं कि रसायनों पर ही किसान 20 से 25 रुपए खर्च करते हैं, उनके ये रुपए सीधे तौर पर बच रहे हैं।

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