फाइलेरिया इंस्पेक्टर ने कोविड के दौरान लोगों की सेवा कर पेश की मिसाल, 30 से ज्यादा शवों का किया अंतिम संस्कार

स्वास्थ्य विभाग में सीनियर फाइलेरिया इंस्पेक्टर केके गुप्ता जिस तरह से कोविड के दौरान लोगों की मदद कर रहे, मानवता के नाते शवों का अंतिम संस्कार वो एक मिशाल बन गया। लोगों की मदद के लिए उन्हें पहले राष्ट्रपति तक से सम्मान मिल चुका है।

Virendra SinghVirendra Singh   17 May 2021 6:11 AM GMT

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बाराबंकी (उत्तर प्रदेश)। कोरोना की दूसरी लहर ने हर तरफ तबाही मचा रखी है। इस बीच दवाओं, इंजेक्शन और ऑक्सीजन को लेकर हो रही कालाबाजारी ने पीड़ितों और उनके तीमारदारों मजबूर भी किया है। ऐसे में कुछ लोग हैं जो लोगों के लिए उम्मीद की किरण बनकर उनके जीवन में नई आशा जगा रहे हैं। इनमें से एक हैं उत्तर प्रदेश में बाराबंकी जिले के केके गुप्ता।

दिन हो या रात इस महामारी में किसी जरूरतमंद की कॉल अगर केके गुप्ता के पास आती है तो वे उसकी मदद के लिए पहुंचते हैं। के. के. गुप्ता स्वास्थ्य विभाग में सीनियर फाइलेरिया इंस्पेक्टर के पद पर तैनात हैं। उनकी कर्मठता को देखते हुए जिलाधिकारी आदर्श सिंह ने उन्हें कोऑर्डिनेटर बनाया है। निजी अस्पताल एल 1 व एल 3 अस्पताल व प्रशासन के बीच तालमेल के लिए के. के. गुप्ता को लगाया गया है।

केके गुप्ता के सेवा भाव का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दहशत के इस माहौल में जब अपने ही अपनों के शव को छोड़ जाते हैं या ऐसे शव जिनका कोई नहीं है, उन शवों का अंतिम संस्कार कराकर के. के. गुप्ता ने मिसाल पेश की है। कोरोना की इस दूसरी लहर में उन्होंने अब तक कोरोना संक्रमित करीब 30 शवों का अंतिम संस्कार कराया है।


केके गुप्ता बताते हैं, "कोरोना की दूसरी लहर में लोगों की सेवा करते-करते मेरा पूरा परिवार संक्रमित हो गया। पत्नी की हालत ज्यादा सीरियस हो गई और उनका आक्सीजन लेवल 48 तक पहुंच गया। हमने 28000 खर्च करके 5 रेमडेसिविर इंजेक्शन की व्यवस्था की। 2 इंजेक्शन लगने के बाद पत्नी की हालत में धीरे-धीरे सुधार होने लगा। इस बीच 6 मई को एक कोविड हॉस्पिटल के इंचार्ज डॉ. बिलाल मुझसे मिले और कहा कि एक बहुत ही गरीब महिला तबस्सुम को रेमडेसिविर इंजेक्शन की जरूरत है। अगर मिल जाए तो उसकी जान बच सकती है। मैंने पत्नी के लिए लाए गए बचे 3 इंजेक्शन डॉक्टर बिलाल को दे दिए। अब तबस्सुम स्वस्थ हैं। "

गुप्ता आगे बताते हैं, "स्वास्थ्य विभाग में ही कार्यकर्ता सुमन गौतम के परिवार में उनके देवर की हालत 4 मई को कोरोना की वजह से बहुत खराब हो गई। उसका ऑक्सीजन लेवल लगातार नीचे गिर रहा था। इस पर मैंने पत्नी के लिए लाए 2 ऑक्सीजन सिलेंडर में से एक उन्हें उपलब्ध करवा दिया।"

पिछले साल का एक वाकया याद करते हुए गुप्ता कहते हैं, "कृष्णानंद राय नाम के एक व्यक्ति की कोबिड की वजह से 9 नवंबर 2020 को मौत हो गई थी उनका अंतिम संस्कार करने के लिए सिर्फ उनके 80 वर्ष के पिताजी और 7 वर्ष का बेटा था। हमने अकेले जुट कर उनका अंतिम संस्कार कराया।"

केके गुप्ता बताते हैं, "पिछले साल लॉकडाउन के बाद मार्च और अप्रैल में प्रवासी मजदूर पलायन कर रहे थे। उस वक्त बाराबंकी रेलवे स्टेशन पर अलग-अलग राज्यों से प्रवासी मजदूर आ रहे थे। तब कई ऐसे मंजर देखे कि मन भर आया और लोगों की मदद करने की ठान ली।"

पिछले लॉकडाउन में बड़ी पीड़ा से गुजरे थे लोग

केके गुप्ता आगे बताते हैं, "हमें स्टेशन पर टेस्टिंग की जिम्मेदारी दी गई थी। 21 मई 2020 को मैंने देखा कि तमिलनाडु एक्सप्रेस से एक महिला बाराबंकी स्टेशन पर उतरी। उनका नाम अंजुमन था, जिनकी गोद में करीब से 7 माह का बच्चा था। अंजुमन लाइन में लगी हुई थी। उन्होंने मुझे बुलाया और कहा भाई साहब इसी तरह हमारे बच्चे को बचा लीजिए 3 दिन से हम सफर कर रहे हैं और बच्चा दूध के लिए रो रहा है। हमने उस महिला को वेटिंग रूम में ले गए और दूध के लिए किसी को भेजा। वह महिला कॉटन के कपड़े को पानी में भिगोकर बच्चे को पानी पिला रही थी। बिना दूध के बच्चा पूरी तरह से सूख चुका था। किसी तरह से दो पैकेट दूध मिला उस महिला को दिया और डॉक्टर बुलवाकर बच्चे की जांच करवाई। फिर उसने फैजाबाद के रुदौली जाने के लिए कहा, तो हमने गाड़ी की व्यवस्था करके उसे उसके घर तक भिजवाया।"


उन्होंने एक और वाकया याद करते हुए बताया, "एक परिवार दिल्ली से अपने घर हैदर गढ़ बाराबंकी के लिए छोटा हाथी (टाटा एस) पर निकला था। रायबरेली और बाराबंकी के बॉर्डर पर उनको एक्सीडेंट हो गया, जिसमें एक महिला का पति और उसके बच्चे की मौत हो गई। महिला का एक हाथ और एक पैर टूट गया था। महिला करीब 8 माह की प्रेग्नेंट थी। उसे लखनऊ के केजीएमयू अस्पताल ले जाया गया, जहां 19 मई को महिला कोरोना पॉजिटिव पाई गई। जैसे ही मुझे जानकारी हुई महिला को बाराबंकी स्थित चंद्रा हॉस्पिटल (कोविड हॉस्पिटल) में एडमिट करवाया और करीब 20 दिन बाद महिला ने एक बच्चे को जन्म दिया।"

आठ फरवरी 2021 को केंद्र सरकार ने लोकसभा में बताया कि साल 2020 में लॉकडाउन के चलते पूरे देश से 10466152 प्रवासी मजदूर अपने घरों को लौटे थे। इनमें से सबसे ज्यादा 32,49,638 प्रवासी उत्तर प्रदेश में लौटे थे। जबकि दूसरे नंबर पर बिहार था, जहां 15,00,612 प्रवासी शहरों से घर को लौटे और तीसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल था. जहां 13,84,693 प्रवासी मजदूर और कामगार शहरों से अपने गांवों को लौटे थे।

2005 में के. के. गुप्ता को मिल चुका है राष्ट्रपति से सम्मान

केके गुप्ता अब तक सैकड़ों लोगों की आर्थिक मदद भी कर चुके हैं। गुप्ता बताते हैं कि हमारी नौकरी का अब तक जो भी पैसा कमाया है उसे हमने समाज सेवा में भी लगाते रहे हैं और अब भी लगा रहे हैं। अब हमारे खाते में 25000 रुपये ही बचे हैं।

के. के. गुप्ता की समाज सेवा को देखते हुए 2005 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने उन्हें सम्मानित किया था। यह सम्मान उन्हें अप्रैल 2005 में महाराष्ट्र से लोगों को लेकर आ रही एक बस के हादसे में 4 लोगों की जान बचाने के लिए मिला था। यह हादसा बाराबंकी में हुआ था और के. के. गुप्ता ने बस के अंदर जाकर 4 लोगों की जान बचाई थी।


के. के. गुप्ता के इस जिंदादिल अंदाज और सेवा-भाव पर बाराबंकी के पुलिस अधीक्षक यमुना प्रसाद भी उनके प्रति सम्मान प्रकट करते हैं। वे कहते हैं, "के. के. गुप्ता जी बहुत ही अच्छा काम कर रहे हैं। मानवता के लिए इन्होंने जो काम किया है वो अभूतपूर्व है। समाज को ऐसे व्यक्तियों की काफी जरूरत है। गुप्ता जी अपना ध्यान न रखते हुए समाज की सेवा कर रहे हैं ये सम्माननीय है।"

वहीं बाराबंकी के मुख्य चिकित्सा अधिकारी बी. के. एस. चौहान कहते हैं, "निश्चित तौर पर के. के. गुप्ता द्वारा किया गया काम सराहनीय है। स्वास्थ्य विभाग का काम जिंदा लोगों का इलाज करना होता है, लेकिन गुप्ता ने अपनी ड्यूटी के साथ उन शवों का भी अंतिम संस्कार कराया, जिनके आगे-पीछे कोई नहीं था। इस आपदा की घड़ी में जरूरतमंदों हर संभव मदद करते हैं, ऐसे लोगों की निश्चित सराहना होनी चाहिए और समाज को इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए।"

आखिर में के. के. गुप्ता कहते हैं, "मैं स्वास्थ्य महकमे में समाज की सेवा करने के लिए ही आया था और जब मुझे ऐसा मौका मिल रहा है तो मैं इसे नहीं गंवाना चाहता हूं। मेरी पत्नी भी संक्रमित हो गईं थी, भगवान ने सब कुछ सही कर दिया। बेटा और मैं भी अब नेगेटिव हो गए हैं। अब फिर मुझसे जो बन पड़ेगा, जिसके लिए, जितनी भी मदद कर पाऊंगा, मैं इसी तरह करता रहूंगा।"

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