कोरोना काल में इंसानियत के लिए 'ऑक्सीजन' बने काशी के अमन कबीर

गरीबों व जरूरतमंदों के लिए देवदूत साबित हुए अमन। कोरोना काल में वे इंसानियत को बचाने के लिए लोगों को ऑक्सीजन दिलाने से लेकर कोरोना से मरने वालों का खुद अंतिम संस्कार कराते हैं। पिछले साल लगे लॉकडाउन के बाद से लगातार चल रही उनकी मदद करने की मुहिम।

Anand kumarAnand kumar   12 May 2021 12:05 PM GMT

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वाराणसी (उत्तर प्रदेश)। कोरोना के इस भयावह दौर में खत्म होती इंसानियत और संक्रमण के डर से शव की अंतिम यात्रा से पांव खींचते परिजनों के बीच एक शख्स ऐसा भी है, जिसने इंसानियत को भी मरने नहीं दिया है और कोरोना से मरने वालों का अंतिम संस्कार भी करा रहे हैं। हम बात कर रहे हैं वाराणसी के दारानगर में रहने वाले 26 वर्षीय अमन यादव 'कबीर' की, जो जरूरतमंदों के लिए देवदूत बन गए हैं।

बनारस में कुछ लोग आपदा को अवसर बनाकर जीवन रक्षक दवाइयों से लेकर ऑक्सीजन की कालाबाजारी करके पैसा कमाने में जुटे हैं तो वहीं अमन कबीर जैसे युवा कोरोना काल में जरूरतमंदों के बीच रहकर उनके मरीजों के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था कराने से लेकर कोरोना से मरने वालों का अंतिम संस्कार भी खुद करते हैं।

अमन कबीर ने गांव कनेक्शन को बताया, "अभी थोड़ी देर पहले एक फोन आया। फोन के दूसरे ओर से आवाज आई, भैया एक लोग हैं उनका कोरोना से निधन हो गया और उन्हें कोई छूने वाला नहीं है। ऐसे में मैं और मेरे दोस्त कोरोना शव को गंगा घाट तक पहुंचा देते हैं और जब उनके परिवार का कोई सदस्य शव को आग नहीं देना चाहता है तो हम ही पूरे विधि-विधान से शव का अंतिम संस्कार करते हैं।"


अमन कबीर ने पिछले साल लॉकडाउन की घोषणा के तीसरे दिन से ही जरूरतमंदों की मदद करना शुरू कर दिया था। वे कहते हैं, "लोगों की सेवा के लिए वाराणसी के तत्कालीन आईजी विजय सिंह मीणा जी ने मेरा पास बनवाया। इसके बाद से अभी तक मैं एक दिन भी घर पर नहीं रहा."

अपनी बाइक एम्बुलेंस लेकर बनारस की सड़कों पर दौड़ते अमन कबीर ने सभी धर्म के लोगों की मदद की हैं। वे कहते हैं, "हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई समेत सभी धर्म के लोगों की मदद करने का अवसर हमें मिला। सभी धर्म के लोगों का हमने अंतिम संस्कार किया। सभी धर्म के गुमशुदा लोगों को ढूंढकर उनके परिजनों से मिलवाया।"

यह सब करने में कोरोना संक्रमण का डर नहीं लगता है आपको? इस सवाल के जवाब में अमन कबीर कहते हैं, "मेरे लिए सबसे जरूरी है किसी जरूरतमंद की मदद करना। अगर मेरी वजह से किसी एक आदमी को ऑक्सीजन मिल जा रहा है या मैं किसी को अस्पताल में भर्ती करा दे रहा हूं तो यही मेरे लिए डर पर विजय है।"

एक रुपये की मुहिम के तहत कर रहे मदद

युवा समाजसेवी अमन कबीर एक रूपये की मुहिम के तहत जरूरतमंदों की मदद कर रहे हैं। वे गांव कनेक्शन को बताते हैं, "एक रुपये की मुहिम के तहत हम सोशल मीडिया के जरिए लोगों से एक रुपये की मदद मांगते हैं। लोग गूगल पे, फोनपे या पेटीएम के जरिए हमें एस रुपये देते हैं। इन्हीं पैसों के माध्यम से हमने आज तक 60 लोगों का अंतिम संस्कार कराया है। इसमें अज्ञात शव भी शामिल हैं। कई ऐसे लोगों का भी अंतिम संस्कार किया है, जिन परिवारों के पास पैसे भी नहीं थे। हाल ही में एक विक्षिप्त महिला के पति का अंतिम संस्कार कराया, जिनके पति का निधन कोरोना से हुआ था।"


उन्होंने आगे बताया, "मैं आपसे झूठ नहीं बोलूंगा, मेरा एक रुपया भी नहीं लगता है। काशी समेत पूरे भारत से लोग मुझे एक रुपये की मुहिम के तहत आर्थिक मदद करते हैं। इसी के जरिए मैं लोगों की मदद कर पाता हूं."

काशी के सैलानियों की भी करते हैं मदद

अमन कबीर केवल काशी के लोगों की ही मदद नहीं करते, बल्कि काशी में दूसरे देशों से आए सैलानियों की भी मदद करते हैं। एक घटना का जिक्र करते हुए वे गांव कनेक्शन को बताते हैं, "फ्रांस से डेविश बनारस घूमने आए थे। कोरोना काल में उनकी तबीयत बिगड़ने लगी। उन्हें सांस लेने में परेशानी होने लगी थी और उनके अगल-बगल के लोगों ने उन्हें डरा दिया था कि उन्हें कोरोना हो गया है, जिससे वह डरकर अपने ही कमरे में अकेले रहने लगे। इसकी सूचना हमें जब मिली तब हम उन्हें ई-रिक्शा से अस्पताल लाएं और डॉक्टर से दिखाने बाद उन्हें दवा दिलावाई। कुछ दिन बाद उन्हें आराम मिल गया।"

पुलिस भी मांगती है मदद

बनारस में कई बार पुलिस की तरफ से लावारिस शवों के अंतिम संस्कार कराने के लिए समाज सेवी अमन कबीर को ही फोन जाता है। एक फोन पर ही वो अपनी बाइक एम्बुलेंस लेकर जरूरतमंद की मदद करने के लिए पहुंच जाते हैं। वे गांव कनेक्शन को बताते हैं, "जब भी मुझे मदद के लिए फोन आता है, तो मैं मना नहीं करता हूं। कई बार पुलिस थाने से लावारिस शवों के अंतिम संस्कार कराने के लिए फोन आया है। मैं उनके द्वारा बताए गए पते पर जाकर शव को लेता हूं फिर गंगा घाट में जाकर अंतिम संस्कार कर देता हूं।"


कई चुनौतियां का करना पड़ा है सामना

अमन कबीर 2007 से काशी की सड़कों पर लावारिस पड़े लोगों की मदद कर रहे हैं। इस सेवा कार्यों में किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा? इसके जवाब में वे बताते हैं कि शुरुआत में कई लोगों ने मुझे पागल समझना शुरू कर दिया। फिर धीरे-धीरे लोगों की सोच में बदलाव आने लगा और वे मदद करने के लिए आगे आने लगे। पहले लोगों की मदद करने में पैसों की दिक्कत आती थी, उस वक्त अपनी पॉकेट मनी से मदद करता था। अब एक रुपये मुहिम के तहत काशी की जनता की ओर से आर्थिक मदद मिल जाती है और लोगों की सेवा करने में कोई परेशानी नहीं आती है।

मां से मदद करने की मिलती हैं प्रेरणा

लोगों की सेवा करने की प्रेरणा अमन को अपनी मां से मिलती हैं। वे बताते हैं कि आज के समय इस सेवा कार्य में मेरी माताजी बहुत मदद करती हैं। कोरोना काल में बाहर जाकर लोगों की मदद करने के लिए मेरी माता जी कहती हैं। जब कभी लोगों की सेवा करने के लिए बाहर नहीं जा पाता हूं तो मेरी मां मुझे बाहर जाकर जरूरतमंदों की मदद करने के लिए कहती हैं।


पिता ने जंजीरों से बांधा, फिर भी हौसला न टूटा

अमन कबीर के पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं। अमन ने बताया, "शुरूआत में मैं जब लोगों की मदद करने के लिए बाहर जाता था तो मेरे पिताजी विरोध करते थे। वे मुझे डांटते थे, लेकिन जब मैं नहीं मानता था तो वो मेरे पैर को जंजीरों से बांध देते थे, लेकिन मैंने गरीबों और असहायों की सेवा करना नहीं छोड़ा।"

भविष्य में बनाएंगे एनजीओ

अमन कबीर ने अभी तक कोई एनजीओ नहीं बनाया है, लेकिन उन्होंने भविष्य में एनजीओ बनाने की उम्मीद जताई है। उनका कहना है कि अगर एक रुपये की मुहिम बड़े स्तर पर आ जाएगी तो लोगों को डोनेशन का हिसाब देना पड़ेगा। इसके लिए हम अपनी टीम के साथ एक एनजीओ बनाएंगे, ताकि हम लोगों को डोनेशन के एक-एक रूपये का हिसाब दे सकें।

अमन कबीर से सम्पर्क करने के लिए उनका फोन नंबर- 8687553080

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