मनरेगा कन्वर्जेंस स्कीम के तहत इंटरक्रॉपिंग से बढ़िया उत्पादन तो मिला ही स्वास्थ्य में भी आया है सुधार

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के सहयोग से ग्रामीण रोजगार योजना के रूप में बिरसा हरित ग्राम योजना 2020 में शुरू की गई। ये योजना उन किसानों को दोहरा लाभ प्रदान कर रही है जो अपनी परती जमीन पर खेती कर रहे हैं साथ में मजदूरी भी कर रहे हैं।

Manoj ChoudharyManoj Choudhary   16 Jun 2022 1:35 PM GMT

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मनरेगा कन्वर्जेंस स्कीम के तहत इंटरक्रॉपिंग से बढ़िया उत्पादन तो मिला ही स्वास्थ्य में भी आया है सुधार

ग्रामीण विकास विभाग खेतों के सुधार और तालाबों के विकास के लिए धन देता है, जबकि किसानों को अपने खेतों में काम करने के लिए मजदूरी का भुगतान किया जाता है। सभी फोटो: मनोज चौधरी

बाराबंकी (पूर्वी सिंहभूम), झारखंड। 51 वर्षीय लक्ष्मी नारायण सिंह का तीन एकड़ खेत है जो साल में ज्यादातर खाली पड़ा रहता था। पूर्वी सिंहभूम जिले के बाराबंकी गाँव के रहने वाले वो और उनकी 46 वर्षीय पत्नी सविता सिंह मुश्किल से एक साल में धान की एक फसल ही उगा पाते हैं।

हालांकि, पिछले एक साल से उनकी जिंदगी बदल गई है। वे लोग न सिर्फ पूरे साल अलग अलग तरह की फसलों की खेती करते हैं, बल्कि अपने खेतों में काम करके मजदूरी भी कमाते हैं। ये सब केंद्र सरकार की महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के सहयोग से झारखंड सरकार की बिरसा हरित ग्राम योजना, जिसे ग्रामीण रोजगार योजना के रूप में 2020 में शुरू किया गया था, की वजह से हो पाया है। इस योजना के तहत परती भूमि पर पेड़ लगाए जा रहे हैं और किसानों को उनके खेत से अतिरिक्त कमाई के लिए फलदार पेड़ उपलब्ध कराए जा रहे हैं।

51 वर्षीय किसान ने गाँव कनेक्शन को बताया, "मैंने हाल ही में लिवर में कुछ समस्याएं महसूस की हैं और मेरी जमीन पर इंटरक्रॉपिंग के माध्यम से होने वाली आय से अपना सही तरीके से इलाज कर पा रहा हैं। जमीन से अतिरिक्त आय विवाह और अन्य पारिवारिक मामलों को ठीक से व्यवस्थित करने में मदद कर रही है। हमें उम्मीद है कि इन आय पैदा करने वाली परियोजनाओं की मदद से जीवन में सुधार जारी रहेगा।''


बाराबंकी पंचायत के ग्राम रोजगार सेवक शेखर चंद्र वर्मा ने गाँव कनेक्शन को बताया कि लक्ष्मी नारायण सिंह की जमीन को जून 2020 में बिरसा हरित ग्राम योजना के तहत विकसित किया गया था और वहां मिश्रित खेती शुरू की गई थी। वर्मा ने बताया,"इससे पहले मिट्टी की खराब गुणवत्ता की वजह से जमीन का उपयोग नहीं किया जा रहा था और जमीन के मालिक ने लंबे समय से इस पर खेती नहीं की थी। उन्हें इंटरक्रॉपिंग अपनाने के लिए प्रेरित और शिक्षित किया गया था।"

बाराबंकी गाँव के लक्ष्मी नारायण और सविता की तरह, पूरे राज्य में बड़ी संख्या में लोग इस योजना का लाभ रे रहे हैं, जिसकी वजह से उनके जीवन में काफी सुधार हुआ है। किसान कई फसलें उगा रहे हैं, मछलियां पालने और उन्हें बेचने के लिए तालाब बना रहे हैं, और उनके परिवार अपने खेत में उगाए गए पौष्टिक भोजन का सेवन कर रहे हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में कुपोषण की समस्या को भी एड्रेस कर रहा है।

ग्रामीण विकास विभाग खेतों के सुधार और तालाबों के विकास के लिए धन देता है, जबकि किसानों को अपने खेतों में काम करने के लिए मजदूरी का भुगतान किया जाता है।

ग्रामीण विकास मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2022-23 में झारखंड में मनरेगा के तहत कुल 4.43 मिलियन सक्रिय कार्यकर्ता पंजीकृत हैं, जबकि सरकार ने राज्य के 24 जिलों में 4,391 पंचायतों के लिए 90 मिलियन रुपये का बजट आवंटित किया है। जनजातीय आबादी वाले जिलों में चालू वित्त वर्ष में अब तक औसतन प्रत्येक कार्यकर्ता को 224 रुपये प्रतिदिन मिलते हैं और कुल मिलाकर 111,770 कार्य पूरे हो चुके हैं।

गैर-सरकारी संगठन ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया फाउंडेशन (टीआरआईएफ) राज्य सरकार को मनरेगा परियोजनाओं के उचित कार्यान्वयन में मदद कर रहा है।


ट्राइफ के राज्य कार्यक्रम अधिकारी निहार रंजन ने कहा कि उनकी भूमिका मनरेगा परियोजनाओं के उचित कार्यान्वयन के लिए संबंधित विभागों के लिए प्लानिंग, एड्वोकेसी, मूल्यांकन, निगरानी, दिशानिर्देश और सपोर्ट करना है। उन्होंने कहा कि वे प्रत्येक परियोजना को चलाते समय चुनौतियों का समाधान प्राप्त करने के साथ-साथ प्रशिक्षण,डिजाइन मॉड्यूल और क्षमता में सुधार करते हैं।

झारखंड में मनरेगा की 10 विभिन्न श्रेणियों जैसे ग्रामीण संपर्क, जल संरक्षण, पारंपरिक जल निकायों का नवीनीकरण, बाढ़ नियंत्रण, सूखा प्रूफिंग, नहरें, सिंचाई सुविधाएं, भूमि विकास, ग्रामीण पेयजल, मत्स्य पालन, ग्रामीण स्वच्छता के तहत 250 से अधिक प्रकार के कार्य कराए जा रहे हैं। .

विश्व में सबसे बेहतर

यह बताते हुए कि इस योजना से किसानों को क्या लाभ होता है, वर्मा ने कहा: "ग्रामीण विकास विभाग ने लक्ष्मी नारायण सिंह को फलों के पेड़ मुफ्त दिए और किसान को उनके खेत में लगाने के लिए मजदूरी भी दी। इसके अलावा, उन्हें मनरेगा के तहत 15 फीट की दूरी पर लगाए गए इन पेड़ों की देखभाल के लिए भुगतान भी किया गया था। इसमें सिंचाई, चारदीवारी बनाना आदि शामिल था। "

लक्ष्मी नारायण और उनकी पत्नी द्वारा अपनी भूमि पर आम, अमरूद, पपीता आदि सहित फलों के 50 से अधिक पौधे लगाए गए, और उन्हें फलों के पेड़ों के दरमियान में भिंडी, बैंगन, ककड़ी आदि सहित सब्जियों की खेती करने के लिए कहा गया।

वर्मा ने कहा, "इस इंटरक्रॉपिंग से किसान को एक वर्ष में लगभग 25,000 रुपये का लाभ कमाने में मदद मिली है। इसके अलावा, उनकी पत्नी सविता ने दूसरी एक एकड़ जमीन पर इंटरक्रॉपिंग की और एक साल में सब्जियां बेचकर लगभग 50,000 का लाभ कमाया।" उन्होंने बताया, "अगले साल से जब फलों के पेड़ फलने लगेंगे तो ये लोग और अधिक कमाएंगे।"


सविता सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया , "जून 2020 से वे साल में दो बार खेती कर रहे हैं और गर्मी के मौसम में सिंचाई की उचित सुविधा उपलब्ध होने पर तीन बार खेती करने को तैयार हैं।" उन्होंने कहा, "सरकार को साल में तीन बार फसल शुरू करने के लिए सिंचाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए। अगर गर्मी के मौसम में उनके खेतों को पर्याप्त पानी मिलता है तो किसान अधिक कमाएंगे।"

उन्होंने अपने परिवार की जीवन शैली को बेहतर बनाने के लिए इस योजना को धन्यवाद दिया। सविता ने कहा, "मेरे दो बेटे हैं, एक सातवीं कक्षा में और दूसरा दसवीं कक्षा में पढ़ रहा है। हमें उन्हें अच्छी शिक्षा दिलाने में आर्थिक कठिनाई का सामना करना पड़ रहा था। लेकिन मिश्रित खेती परियोजनाओं से होने वाली कमाई की मदद से, दोनों बच्चों का शैक्षणिक भविष्य बेहतर होने की उम्मीद है।"

ग्रामीण महिलाओं पर खास ध्यान

पूर्वी सिंहभूम के कमलाबेरा गांव की रीमा महतो, बरनाली महतो, माधुरी महतो और संध्या महतो राज्य की कई ग्रामीण महिलाओं में शामिल हैं, जो अपने घरों के करीब छोटी जमीनों पर सब्जी की खेती कर रही हैं। राज्य सरकार का ग्रामीण विकास विभाग ग्रामीण महिलाओं के लिए 'दीदी बारी' और 'दीदी बगिया योजना' चलाता है। महिलाओं को इन खेतों से बिना पैसा खर्च किए पर्याप्त पौष्टिक सब्जियां मिलती हैं, बल्कि उन्हें अपने खेतों में मजदूर के रूप में काम करने के लिए मजदूरी मिलती है।

विभाग बाराबंकी पंचायत के तहत 24 दीदी बाड़ी के प्रत्येक लाभार्थी को 24,500 रुपये और श्रम मजदूरी के तौर पर 17,000 रुपये प्रदान करता है।

कमलाबेरा गांव की रीमा महतो ने गांव कनेक्शन को बताया, "उन्हें अब इस बात की चिंता नहीं है कि घर के लोगों को खिलाने के लिए रोजाना क्या पकाएं क्योंकि उन्हें अपने ही खेत से पर्याप्त सब्जियां मिलती हैं, जो पिछले कई सालों से बंजर थी।

एक दूसरी ग्रामीण महिला माधुरी महतो ने बताया, "अब हम अपने खेतों में काम करते हैं और अब हम अपने पतियों पर आर्थिक रूप से निर्भर नहीं हैं क्योंकि हम सब्जियां बेचते हैं। और अपने बच्चों को भी पौष्टिक भोजन खिलाते हैं।"

जमशेदपुर के पूर्व ब्लॉक प्रोग्राम मैनेजर विकास महतो ने बताया कि दीदी बारी और अन्य मनरेगा परियोजनाएं ग्रामीण महिलाओं के लिए बेहतर कमाई के अवसर सुनिश्चित कर रही हैं।

महतो ने बताया,"परिवार के पुरुष सदस्यों ने महिलाओं का सम्मान करना शुरू कर दिया है क्योंकि महिलाएं अब पैसा कमा रही हैं। दीदी बाड़ी जैसी परियोजनाओं से ग्रामीण महिलाओं और जवान होते बच्चों को पौष्टिक भोजन मिल रहा है। महिला श्रमिकों की मदद से कई परियोजनाओं को सफलतापूर्वक लागू किया गया है।" उन्होंने बताया कि महिलाएं दिहाड़ी मजदूरों के तौर पर काम करने में ज्यादा दिलचस्पी लेती हैं क्योंकि उन्हें मनरेगा के तहत पुरुषों के बराबर मजदूरी मिलती है।

पूर्वी सिंहभूम जिले के एडीश्नल प्रोजेक्ट मैनेजर अरविंद कुमार ने बताया कि अकुशल मजदूरों को प्रतिदिन 225 रुपये, जबकि अर्धकुशल और कुशल श्रमिकों को क्रमश: 329 रुपये और 439 रुपये प्रतिदिन मिलते हैं. उन्होंने कहा कि पुरुष और महिला श्रमिकों को समान वेतन मिलता है, इसलिए जिले में पुरुष श्रमिकों की तुलना में महिला श्रमिकों की संख्या अधिक है।

हालांकि दिहाड़ी मजदूरों ने ग्रामीण विकास विभाग से दैनिक मजदूरी बढ़ाने और समय पर भुगतान की अपील की है.

अनेक फायदे

केशीकुदर गांव की सुरू सिंह ने अपने खेत पर तालाब बनवा कर फायदा उठा रहे हैं। उनके परिवार के सदस्यों और अन्य ग्रामीणों को खेत में काम करके मजदूरी के अवसर मिले जबकि उन्होंने अपनी जमीन की मिट्टी बेचकर पैसा कमाया। सुरू सिंह ने बताया,"तालाब निकट भविष्य में जल संरक्षण और उचित सिंचाई सुनिश्चित करेगा। मैं जल्द ही अपने तालाब में मत्स्य पालन शुरू करूंगा और उम्मीद है कि मेरे परिवार की वित्तीय स्थिति में सुधार होगा।"

टीआरआईएफ के राज्य कार्यक्रम अधिकारी निहार रंजन ने बताया कि झारखंड के 24 जिलों में से हर एक जिले में बिरसा हरित ग्राम योजना, दीदी बाड़ी योजना, दीदी बगिया योजना आदि जैसी विभिन्न परियोजनाओं के तहत किसानों की कई सफल कहानियां हैं। उन्होंने बताया, 'एक तरफ जहां किसान अपनी जीवन शैली में सुधार कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ ग्रामीण महिलाओं को उनके घरों के पास मौजूद छोटे-छोटे खेतों से पौष्टिक सब्जियां मिल रही हैं। ग्रामीण महिलाएं भी अपनी जमीन पर नर्सरी बना रही हैं और पैसा कमा रही हैं।

निहार रंजन ने बताया कि मनरेगा के तहत विभिन्न परियोजनाओं से ग्रामीण आबादी को काफी फायदा हुआ है। रंजन ने कहा कि टीआरआईएफ की टीम के सदस्य ग्रामीणों को बेहतर कमाई के अवसर सुनिश्चित करने के लिए नीतियों और परियोजनाओं को डिजाइन करते हैं, हर परियोजना में एक विशेष स्थान पर मजदूरी करने से दैनिक मजदूरी के अवसर के अलावा आजीविका में सुधार सुनिश्चित करते हैं।

यह कहानी ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया फाउंडेशन (TRIF) के सहयोग से की गई है।

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