आत्मनिर्भरता की राह पर किन्नर मोहिनी, गहने बेच और कर्ज़ लेकर खोला कड़कनाथ मुर्गी फार्म

35 साल की मोहिनी किन्नर की उम्र के ज्यादातर दिन दूसरों की खुशियों में नाचते-गाते बधाई मांगते ही गुजरे। लेकिन कुछ समय पहले उन्होंने एक मुर्गी फार्म खोला है। मोहिनी को उम्मीद है अगर वो इस काम में सफल हो जाती हैं तो शायद उनके समाज दूसरे लोग भी मांगना छोड़कर बिजनेस की तरफ बढ़ेंगे।

Divendra SinghDivendra Singh   19 March 2021 7:26 AM GMT

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आत्मनिर्भरता की राह पर किन्नर मोहिनी, गहने बेच और कर्ज़ लेकर खोला कड़कनाथ मुर्गी फार्ममोहिनी का ज्यादातर समय अब कड़कनाथ मुर्गी फार्म पर ही बीतता है। फोटो: दिवेंद्र सिंह

माल (लखनऊ)। दूसरों की खुशियों में दुआ देकर बधाई मांगने वाली मोहिनी किन्नर के हाथ आजकल दूसरों के आगे कम फैलते हैं, उनका ज्यादातर समय अपने हाथों से मुर्गियों को दाना देने में जाता है। आत्मनिर्भरता की तरफ कदम बढ़ाते हुए मोहिनी ने पिछले साल कड़कनाथ मुर्गी फार्म खोला है। मोहिनी की कोशिश है कि उनका ये काम सफल हो जाए ताकि उनके समाज के दूसरे लोग भी बिजनेस की तरफ आगे बढ़ें।

मोहिनी बताती हैं, "हमारे समाज में लोग कोई दूसरा काम नहीं कर पाते, नाच-गाकर और बधाई में ही पूरी ज़िन्दगी कट जाती है, लेकिन मैंने आज अपना खुद का बिजनेस शुरू किया है, आज नहीं तो कल इसका फायदा तो मिलेगा ही। क्या पता मुझे देखकर दूसरी बहनों को भी एक उम्मीद मिल जाए, वो भी अपना कुछ काम शुरू कर दें।"

उत्तर प्रदेश के लखनऊ जिला मुख्यालय से करीब 35 किमी दूर मलिहाबाद के नई बस्ती भिठौरा गांव में आम के बाग में टीन शेड और तिरपाल के सहारे मोहिनी किन्नर (35 वर्ष) ने कड़कनाथ मुर्गी फार्म शुरू किया है। 10 मुर्गियों से उन्होंने इसकी शुरुआत की थी और आज 500 से ज्यादा मुर्गे मुर्गियां उनके फार्म पर हैं।

मोहिनी को उम्मीद है कि उनकी इस कोशिश से उनके समाज के और लोग भी आगे आयेंगे। फोटो: दिवेंद्र सिंह

मुर्गी पालन की शुरुआत के बारे में मोहिनी कहती हैं, "यहां के आम के बाग़ में कई लोगों को मुर्गी पालन करते देखा था, हमेशा से ही मुझे जानवरों से प्यार रहा है। शुरू में दस बच्चे (चूजे) लेकर आई और उन्हें एक बड़े से लोहे के पिंजड़े में घर में ही रखा। उसके बाद और भी बच्चे लेकर आयी तो मकान मालिक ने कहा की घर में कैसे इन्हें रखोगी, मैंने कहा की मेरे पास और कहां जगह नहीं है तो उन्होंने यहां अपनी बाग़ में मुझे जगह दे दी, दस बच्चों से शुरुआत की थी और आज पांच सौ मुर्गे-मुर्गियां हो गयीं हैं।

पांच सौ मुर्गे-मुर्गियों को खरीदने और पूरा मुर्गी फार्म तैयार करने में मोहिनी ने चार लाख से अधिक रुपए खर्च कर दिए हैं। पैसे इकट्ठे करने के लिए मोहिनी ने अपने गहने बेच दिए और फिर भी कम पड़े तो डेढ़ लाख रुपए ब्याज पर कर्ज लेकर ये व्यवसाय शुरू किया।

मोहिनी के लिए यहां तक पहुंचना इतना आसान नहीं था, तीन साल पहले आगरा से लखनऊ आई मोहिनी अपनी कहानी बताती हैं, "आगरा में अच्छे से गुजर बसर हो जाती थी, वहीं पर अपने परिवार के साथ अपने घर में रहती थी, लेकिन अपने समाज के ही कुछ लोगों ने मेरे घर पर कब्ज़ा कर लिया। मज़बूरी में आगरा छोड़ना पड़ा और लखनऊ आ गयी।"

लखनऊ आने के बाद यहां की किन्नर गुरु ने मोहिनी को माल क्षेत्र देखने को दे दिया, क्योंकि किन्नर समाज में सबका एरिया बंटा होता है। लखनऊ आने के बाद मोहिनी के सामने सबसे मुश्किल काम था अपने लिए एक घर तलाशना। मोहिनी बताती हैं, "लखनऊ आई तो एरिया तो मिल गया लेकिन यहां पर कोई किराए पर घर देने को तैयार नहीं था। मुश्किल से एक घर मिला तो यहां के दबंग लोगों ने हमारे मकान मालिक को धमकी देनी शुरू कर दी की किन्नरों को घर दे दिया है, ये लोग चोरी करते हैं, लूट कर भाग जाएंगे, लेकिन हमारे मकान मालिक ने हमें रहने दिया। उसके बाद भी लोग डराते धमकाते रहे, लेकिन हम यहीं पर तीन साल से रह रहे हैं।"

मुर्गियों को हरी घास देती हैं, जिससे लागत में कमी आए। फोटो: दिवेंद्र सिंह

मोहिनी कहती हैं, "मेरी जितनी जिंदगी भर की कमाई थी सब इसी में लगा दिया, अब तो कुछ बचा ही नहीं। अभी भी दिन भर जहाँ बधाई लेकर जाती हूँ, जो भी कमाई होती है, लौटकर सब अपने इन्हीं बच्चों के दाने और दवा पर खर्च कर देती हूँ और आगे भी ऐसे ही करती रहूंगी। क्या पता मुझे देखकर दूसरी बहनों को भी एक उम्मीद मिल जाए, वो भी अपना कुछ काम शुरू कर दें।"

साल 2011 की जनगणना के अनुसार देश में ट्रांसजेंडर समुदाय की आबादी लगभग 487803 है। देश में ट्रांसजेंडर समुदाय को समान्य अधिकार दिलाने के लिए साल 2019 में सामाजिक न्‍याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने ट्रांसजेंडर व्‍यक्तियों के (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक 2019 भी पारित किया है। इसके विधेयक के तहत कई प्रावधान किए गए हैं, जैसे किसी ट्रांसजेंडर व्‍यक्ति के साथ शैक्षणिक संस्‍थानों, रोजगार, स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं आदि में भेदभाव नहीं किया जाएगा, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की पहचान को मान्‍यता और उन्हें स्वयं के कथित लिंग की पहचान का अधिकार प्रदान करना, माता-पिता और परिवार के नजदीकी सदस्‍यों के साथ रहने का प्रावधान, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए कल्याणकारी योजनाओं और कार्यक्रम बनाने का प्रावधान। ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिए उन्‍हें सलाह देने, उनकी देख-रेख और मूल्यांकन उपायों के लिए राष्ट्रीय परिषद का प्रावधान। लेकिन ज्यादातर लोगों को किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल पाता है।

मुर्गी पालन व्यवसाय अच्छे से चल जाने के बाद भी क्या वो आगे भी बधाई और नाच गाने का काम करती रहेंगी, इस सवाल के जवाब में मुर्गियों को घास खिलाते हुए मोहिनी हंसकर कहती हैं, "नाचना गाना तो हमारे लिया पूजा की तरह है, अगर दूसरों के लिए दुआ करना ही हमारा काम है, लेकिन अपना बिजनेस शुरू करने से क्या पता लोगों के मन हम जैसे लोगों के लिए इज्जत आ जाए, कि हम भी दूसरों की तरह ही हैं और दूसरा काम भी शुरू कर सकते हैं।"

मोहिनी के साथ उनका आठ साल का बेटा सोनू। फोटो: सीआईएसएच

मोहिनी ने चार लड़कियों और दो लड़कों की भी गोद लिया है, जिनमें से दो लड़कियों की शादी भी कर दी है। अभी आठ साल का सोनू मोहिनी के साथ रहता है, जबकि दो बेटियां और एक बेटा उनकी बहन के पास आगरा में रह रहे हैं। मोहिनी के मुताबिक वो जो कर रही हैं सब इन्हीं बच्चों के लिए ही है। माल में मोहिनी के ग्रुप में 7 और लोग हैं, जिनकी वो गुरु हैं। मोहिनी कहती हैं इन सब ने ये काम शुरु करने में मेरा साथ दिया है और उम्मीद है यहीं हम सबकी कोई राह निकलेगी।

केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ के फार्मर फर्स्ट परियोजना के तहत मलिहाबाद के आम बागों में कई लोगों ने कड़कनाथ, कैरी निर्भीक, कैरी देवेंद्र, कैरी अशील जैसी देशी किस्मों की मुर्गे-मुर्गी पालन की शुरुआत की थी। आज यहाँ पर दर्जनों किसान देसी किस्म की मुर्गी पालन कर रहे हैं। इसी संस्थान, से मोहिनी को मुर्गी पालन का प्रशिक्षण भी मिला है।

फोटो: दिवेंद्र सिंह

केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक डॉ शैलेन्द्र राजन ने बताया, "आम बागवानों की आय बढ़ाने के लिए मलिहाबाद प्रखंड के तीन गाँव में फार्मर फर्स्ट परियोजना चलाया जा रहा है। बागवानों को बागों में पाली जाने वाली मुर्गी की नस्ल जैसे कैरी निर्भीक, कैरी देवेन्द्र, अशील, कड़कनाथ इत्यादि दी गयी। ये मुर्गियां बाग़ में चरती हैं और अपना खाना कीटों, खरपतवारों के बीजों और सड़े-गले अनाज, सब्जियों और हरे चारे से प्राप्त कर लेती हैं इनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अधिक होने के कारण इसको पालने में खर्च कम आता है। जबकि ब्रायलर मुर्गो की तुलना में प्रति मुर्गों की कीमत 1000 रुपये से अधिक हो सकती है।"

उन्होंने बताया की फार्मर फर्स्ट परियोजना के अंतर्गत छोटे व सीमांत किसान, महिलाओं, बंजारों और किन्नरों को भी जोड़कर उनको स्वरोजगार के लिए प्रेरित करके आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया जा रहा है।

    

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