गाँव की लड़कियों को एक चाय वाला बना रहा खिलाड़ी 

Neetu SinghNeetu Singh   29 Aug 2018 9:15 AM GMT

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गाँव की लड़कियों को एक चाय वाला बना रहा खिलाड़ी 

लखनऊ। राष्ट्रीय स्तर पर बॉक्सिंग चैंपियनशिप खेलने वाले युवा खिलाड़ी का सपना आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से भले ही पूरा न हो पाया हो लेकिन उसके इरादे आज भी बुलंद हैं। चाय बेचने को मजबूर ये युवा अब ग्रामीण क्षेत्र की लड़कियों को 'मैं भी बनूंगी मैरीकॉम' बनाने का सपना पूरा करने में जुट गया है।

आयुष वैश्य (22 वर्ष) लखनऊ के सदर बाजार कैंट में रहते हैं, यहीं पर ये अपना चाय का ठेला लगाते हैं। आयुष ने बताया, "बचपन से देखता आया हूं घर का पूरा खर्चा पापा की चाय की दुकान से चलता है, पिछले साल पापा की तबियत खराब हो गयी, उन्हें एक साथ कई बीमारियां हो गयीं। बहुत इलाज कराने के बाद भी उन्हें बचाया न जा सका, पापा के न रहने के बाद हमारी दुकान टूट गयी।" आयुष के घर में उनकी माँ और दो बहने हैं। आयुष ने प्रदेश स्तर पर पांच गोल्ड और सात सिल्वर मेडल जीते हैं। मुक्केबाजी में देश को मेडल दिलाने की चाहत रखने वाले आयुष पर परिवार की जिम्मेदारी आने की वजह से उनके सपनों को उड़ान नहीं मिल पायी। आयुष खेलने की बजाए चाय का ठेला लगाते हैं जिससे इनके परिवार का खर्चा चलता है।

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आयुष वैश्य चाय बेचकर चलाते हैं घर का खर्चा

"मै देश के लिए मेडल लाना चाहता था, पर घर का खर्चा चलाने के लिए मजबूरी में मुझे चाय बेचनी पड़ रही है, मैं अपना सपना तो नहीं पूरा कर पा रहा हूँ, पर अभी नवरात्रि के पर्व पर बाल चौपाल से जुड़कर गाँव की लड़कियों को 'मै भी बनूंगी मैरीकॉम' का सपना पूरी कराने की कोशिश कर रहा हूँ, आयुष ने बताया, "हर दिन प्राथमिक स्कूल में दो घंटे का समय निकालकर सिखाने जाऊँगा, एक स्कूल में 15 दिन लगातार सिखायेंगे, लखनऊ के 100 स्कूल में जाकर सिखाने की हमारी योजना है, अकेले इतनी जगहों पर पहुंचने में बहुत समय लगेगा इसलिए अपने साथियों को भी इस पहल में जोडूंगा जिससे हम कम समय में एक साथ ज्यादा स्कूल में पहुंच सकें।"

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लखनऊ के आलमबाग के समर बिहार पार्क के श्रीनगर कस्बे में रहने वाले आनन्द कृष्ण मिश्रा (13 वर्ष) ने झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों को बच्चों को निशुल्क पढ़ाने के लिए बाल चौपाल शुरू की थी। बाल चौपाल की शुरुआत 12 जनवरी साल 2012 को राष्ट्रीय युवा दिवस और विवेकानन्द जी की जयंती पर पहली बार काकोरी ब्लॉक के भवानी खेड़ा गाँव से की गयी थी। 13 वर्षीय आनंद पिछले पांच वर्षों से अब तक सैकड़ों बच्चों को स्कूल पहुंचाने के साथ ही 150 से ज्यादा गाँव में अपनी बाल चौपाल के जरिये हजारों बच्चों से रूबरू हो चुके हैं।

बाल चौपाल ने ग्रामीण क्षेत्र की लड़कियों को 'मै भी बनूंगी मैरीकॉम' बनाने के उद्देश्य से 25 सितम्बर 2017 से लखनऊ के सरोजनीनगर ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय पहाड़पुर में शुरुआत की गयी। आनन्द के पिता अनूप मिश्रा ने बताया, "ग्रामीण परिवेश से जुड़ी प्राथमिक विद्यालयों में पड़ने वाली छात्राओं को पढ़ाई और खेल के साथ-साथ खुद की रक्षा करने के लिए बाक्सिंग और मार्शल आर्ट की शुरुआत आयुष की मदद से की है, लड़कियां खुद अपनी रक्षा कर सकें इसके लिए आत्मरक्षा के गुण सिखाना इनके लिए जरूरी था।" वो आगे बताते हैं, "समय-समय पर और भी कई नामचीन खिलाड़ियों से इन बच्चों को मिलाऊंगा, जिससे ये बच्चे नई-नई चीजें सीख सकें।"

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स्कूल की छात्राएं बाक्सिंग सीखकर हैं खुश

'मै भी बनूंगी मैरीकॉम' कार्यक्रम से बच्चे और टीचर खुश

प्राथमिक विद्यालय पहाड़पुर की छात्राएं और टीचर बाल चौपाल और आयुष के इस योगदान से बहुत खुश हैं। पांचवीं में पढ़ने वाली लक्ष्मी कुमारी ने कहा, "बाक्सिंग सीख रही हूं, बहुत अच्छा लग रहा है, अभी तो दो दिन हुए है ज्यादा नहीं सीखा है।" वहीं पांचवी में पढ़ने वाली कोमल ने बताया, "स्कूल आने में पहले भी बहुत अच्छा लगता था पर अब और भी अच्छा लगने लगा है, खड़े होना ही अभी सीखा है।" विद्यालय में सिर्फ लड़कियां ही नहीं बल्कि लड़के भी बाक्सिंग सीख रहे हैं।

विद्यालय की प्रधानाध्यापिका रश्मि मिश्रा ने कहा, "हमने सोचा नहीं स्कूल के बच्चे इतनी जल्दी बाक्सिंग की चीजों को पकड़ेंगे, अभी शुरुआत हुई है पर जितना सोचा था उससे ज्यादा इनकी रूचि दिखी, ये हर स्टेप को बहुत जल्दी कैच कर रहे हैं, इससे लड़कियां शारीरिक रूप से अभी मजबूत हो जायेंगी जिससे इन्हें आने वाले समय में अपनी सुरक्षा करने में कोई परेशानी नहीं होगी।"

आयुष को बाक्सिंग में प्रदेश स्तर पर पांच गोल्ड और सात सिल्वर मेडल मिल चुके हैं

बेटियां आत्म सुरक्षा के लिए हो रहीं तैयार

मै खेल से जुड़ा रहना चाहता हूं, अभी हाल ही में आॅल इण्डिया इंटर यूनिवर्सिटी बॉक्सिंग चैंपियनशिप 2016-17 पंजाब में भी खेल चुके हैं। आयुष ने कहा, "हर दिन लड़कियों के साथ होने वाली छेड़खानी की घटनाओं को पढ़ता रहता हूं, लड़कियां अपनी आत्मरक्षा खुद कर सकें इसके लिए इन्हें बाक्सिंग सिखा रहा हूँ, मैं अपना सपना पूरा नहीं कर पाया तो क्या हुआ पर अगर मैं हजारों लड़कियों को फ्री में बाक्सिंग सिखा पाया तो मुझे लगेगा मेरा सपना पूरा हो गया, अभी दो महीने पहले एक जिम में नौकरी मिल गयी है, दोपहर दो बजे राटा आठ बजे तक वहां सिखाता हूं, सुबह आठ से 12 बजे तक चाय बेचता हूं, जिससे घर का खर्चा चल पाता है।"

ये हैं मैरीकॉम, पांच बार विश्व में मुक्केबाजी प्रतियोगिता की विजेता रही हैं।

ये हैं मैरीकॉम

मैंगते चंग्नेइजैंग मैरी कॉम जिन्हें मैरीकॉम के नाम से जाना जाता है, ये भारतीय महिला मुक्केबाज हैं। जहां मुक्केबाजी का खेल पुरुषों के लिए माना जाता था वहीं मैरीकॉम ने ये खेल खेलकर ये साबित कर दिया कोई खेल पुरुष या महिला के लिए नहीं बंटा होता है, खेल-खेल होता है जिसे कोई भी खेल सकता है। ये पांच बार विश्व में मुक्केबाजी प्रतियोगिता की विजेता रही हैं। मैरीकॉम का जन्म मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में एक गरीब किसान के परिवार में हुआ था। ये अब तक 10 राष्ट्रीय खिताब जीत चुकी हैं। भारत सरकार ने साल 2003 में इन्हें अर्जुन पुरस्कार एव 2006 में पद्मश्री से सम्मानित किया है। जुलाई 2009 में इनके भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान 'राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार' भी मिल चुका है।

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